कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 34
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
बदलते परिवेश का पहाड़ – दूसरी क़िस्त
कथियान कुछ एक दुकानों, ढाबों, चाय के खोमचों और कुछ एक बेमकसद टहलते युवाओं का ठौर है. इन सबों के अलावा एक बारहवी तक का विद्यालय, एक जंगलात महकमें का डाक बंगला इस कस्बेनुमा जगह की भव्यता में च... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 14
डांस ब्वाइज डांस छुट्टी के दिन कई बार मैं अपने साथी बिष्ट के कमरे में भी मिलने चला जाता था. वह मुझे अक्सर एक पुराना गढ़वाली गीत सुनाया करता था- ‘नौ रूपायाक मोत्या बल्द, दस रूपायाक सींग!’ एक... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 33
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
कब तक मुझ से प्यार करोगे? कब तक? जब तक मेरे रहम से बच्चे की तख़्लीक़ का ख़ून बहेगा जब तक मेरा रंग है ताज़ा जब तक मेरा अंग तना है पर इस के आगे भी तो कुछ है वो सब क्या है किसे पता है वहीं की ए... Read more
वरिष्ठ कथाकार व कवि गम्भीर सिंह पालनी पिछले 12 नवम्बर 2018 को हल्द्वानी में डॉ. प्रशान्त निगम के पास अपने स्वास्थ्य की जॉच के लिए पहुँचे. कालाढूँगी रोड स्थित ओपी दा के ओपी मेडिकोज में उनसे म... Read more
बदलते परिवेश का पहाड़ – पहली क़िस्त
मुझे और मेरे सहपाठी रतन सिंह को जिस दिन चकराता से त्यूनी जाना था उसके एक रात पहले चकराता और आस पास के पहाडी क्षेत्रों में ज़बरदस्त बर्फ़बारी हो गयी थी और जिसकी वजह से लोखण्डी से त्यूनी जाने... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 32
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
मूलतः कुमाऊँ के बेरीनाग इलाके के निवासी और हमारे साथी फिल्मकार-पत्रकार विनोद कापड़ी लगातार काफल ट्री पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते आ रहे हैं. उन्होंने अपने बचपन की यादों को साझा करने के अलावा अ... Read more
कैसे बनता है बरेली का मांझा : एक फोटो निबंध
‘कनकौए और पतंग’ शीर्षक अपनी एक रचना में नज़ीर अक़बराबादी साहेब ने पतंगबाज़ी को लेकर लिखा था: गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को “पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां... Read more