कहो देबी, कथा कहो – 15
किलै, मैं देबी उस दिन कमरे में अकेला था. कमरे का दरवाजा भी बंद था. गहरे सोच में डूबा था कि सहसा लगा, कमरे में कोई है. कुछ समझता, इससे पहले ही अचानक खम्म से वह सामने आ खड़ा हुआ. मैंने चौंक कर... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 37
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
झलतोला हिमालय का करीबी दोस्त है
पिथौरागढ़ के बेड़ीनाग कस्बे से एक गुमनाम गाँव झलतोला के लिए कच्ची-पक्की सड़क जाती है. इस सफ़र पर आगे बढ़ते हुए हिमालय आपके साथ लगातार चलता रहता है. झलतोला से एक पगडण्डी आपको लम्ब्केश्वर की पहाड़ी... Read more
यह क्रांतिकारी दिन था
साधो हम बासी उस देस के – 3 -ब्रजभूषण पाण्डेय टुच्ची और हमारी सारी उम्मीदें तो बस ग्रू के करम पर टिकी थीं. सो उसकी ख़ुशी में ख़ुश होने का सफल दिखावा करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई दूसरा चारा... Read more
आज भी बरकरार है बौराणी मेले की रंगत
उत्तराखण्ड को अगर पर्वों, उत्सवों और मेलों की भी धरती कहा जाये तो ग़लत नहीं होगा. पूरे प्रदेश में साल भर विभिन्न मौकों पर सैकड़ों मेले आयोजित किये जाते हैं. इनमें से ज्यादातर मेले धार्मिक, सां... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 9 (पिछली क़िस्त : कंचों के खेल ने साबित किया कि मैं कृष्ण जैसा अवतार था) (पोस्ट को लेखक सुन्दर चंद ठाकुर की आवाज में सुनने के लिये प्लेयर के लोड होने की प्रतीक्षा करें.)... Read more
एनआईटी पर जनता के साथ छल करती सरकार
क्या मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत श्रीनगर ( गढ़वाल ) स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( एनआईटी ) के स्थाई परिसर के निर्माण के बारे में जनता के साथ छल कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रह... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 36
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
यूं तो हिमालय का ही सौंदर्य कम नहीं था उस पर पैयाँ के पेड़ का आकर्षण जाड़ों के मौसम में हिमालय पर चार चाँद लगाए हुए है.आइये आपको दिखाते हैं कसारदेवी अल्मोड़ा से कुदरत के इस खूबसूरत करिश्मे को !... Read more
यमराज और बूढ़ी माँ की लोककथा
शाम सामने वाले गदेरों को सुरमई बना रही थी. स्वीली घाम (शाम को ढलते सूरज की हल्की पीली रोशनी) दीवा के डाण्डे को फलांगता चौखम्भा की सबसे ऊंची चोटी को ललाई से बाँधने लगा. दादी लोग गाय, बाछी ,बै... Read more