वनवासियों की व्यथा : बेदखली
लेख का पिछ्ला हिस्सा यहां देखें : वनवासियों की व्यथा अनुसूचित जनजातियां व घुमंतु वनवासी प्रकृति के साथ अनुकूल-समायोजन कर विकट दुरुह परिस्थितियों में पुश्त-दर-पुश्त वनों से अपना जीवन यापन करत... Read more
कवि कहना शर्म के चलते अब छोड़ दिया है
कुछ ख़बरें इतने चुपचाप से आकर निकल जाती हैं कि समकालीन हिंदी साहित्य समाज उसका नोटिस ही नहीं ले पाता. इसी तरह की एक ख़बर दो-चार दिन पहले आई और अखबार के बहुत छोटे से कॉलम में सिमट कर रह गई. ख़बर... Read more
उत्तराखण्ड का बीमार स्वास्थ्य तंत्र
अस्पताल दूर हैं भगवान पास उच्च हिमालयी क्षेत्रों के पैदल रास्तों से लौटते हुए सैलानियों से दवा मांगते ग्रामीणों का मिलना आम है. ये ग्रामीण बहुत विनम्रता के साथ शहरों को लौटते सैलानियों से दव... Read more
वनवासियों की व्यथा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सोलह राज्यों के 11.8 लाख वनवासियों की दावेदारी को ख़ारिज कर दिया था. देश की 15 प्रतिशत भूमि पर रहने वाले इन वनवासियों की मांग पर भारतीय आमचुनाव की तैयारी की राजनीत... Read more
तब इंदिरा गांधी से महिलाएँ बहुत प्रभावित थी
तब हम हल्द्वानी के गौरापड़ाव के हरिपुर तुलाराम गांव में ही रहते थे. मुझे हल्की सी याद अभी भी है कि तब युद्ध का समय था. रात में कई बार घर में बाबू कहते थे बाहर उजाला मत करो, नहीं तो दुश्मन के... Read more
‘सौंदर्य की कविता’ और ‘कविता का सौंदर्य,’ दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. परन्तु इन दोनों से भी अधिक महत्वपूर्ण है- सौंदर्य के द्वारा लिखी गई कविता. सौंदर्य के द्वारा लिखी ग... Read more
गैरीगुरु की पालिटिकल इकानोमी : अथ चुनाव प्रसंग
गैरीगुरु उर्फ गिरिजा का नाम एडम स्मिथ, रिकार्डों, जेएसमिल के बाद सीधे गुन्नार मिरडल तक जाता है. गिरिजा से उन्हें सुकुमारी होने का बोध हुआ तो गैरी कहलाना पसंद किया. उनके मुंह लगे चेले ने जब ध... Read more
पिछला दरवाजा बड़ा चमत्कारी होता है. आगे के दरवाजे पर बैठा हुआ संतरी जिसे भीतर घुसने से रोक लेता है वह पिछले दरवाजे से पीछे घुस कर कुर्सी पर विराजमान हो जाता है. इसमें संतरी का कोई कसूर नहीं.... Read more
उत्तराखण्ड की वादियों में घुलता नशा
नशा एक सामाजिक समस्या उत्तराखण्ड राज्य की प्रमुख सामाजिक समस्याओं की बात की जाये तो उनमें नशा प्रमुख समस्या के रूप में दिखाई देगा. सामाजिक समस्याओं को लेकर राज्य में कई चर्चित आन्दोलन भी हुए... Read more
मोत्दा-च्चा-बड़बाज्यू की दैहिक कहानी का अंत
फरहत का परिवार हमारे पड़ोस में रहता था. चूल्हे-चौके की तमाम गोपनीयता के बावजूद दोनों परिवार लगभग एक ही छत के नीचे थे. ब्रिटिश प्रशासकों ने तालाब के किनारे के बाज़ार बनाए ही उन भारतीयों के लिए... Read more