सन् 1971 में जब मैंने हाईस्कूल पास किया तब अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक में सरोजनी नायडू की एक कविता थी- ‘वीवर्स’ यानि बुनकर. कवियित्री बुनकरों से पूछती है- यह प्यारा-सा कपड़ा किसके लिए बुन रहे हो?... Read more
अब आपको जो बातें शेयर करने वाला हूँ, उससे आपको चौंक जाना चाहिए. खनन, रियल स्टेट, मंडी के कारोबार के बाद स्कूल व अस्पताल के धंधे वाले अपने शहर हल्द्वानी में ड़ेंगू से अब तक 17-18 लोग जान गंवा... Read more
शैलेश मटियानी की एक अमर कहानी
पापमुक्ति – –शैलेश मटियानी Paap Mukti Story Shailesh Matiyani घी-संक्रांति के त्यौहार में अब सिर्फ दो ही दिन शेष रह गए हैं और त्यौहार निबटते ही ललिता अपने घर, यानी अपनी बड़ी दीदी... Read more
दूर कहीं किसी पर्वतीय अंचल में पतली-पतली पगडंडियों पर चलता हुआ एक अलग सा जुड़ाव व खिंचाव लगता है कदमों में. पहले पहल तो मैं इसे थकावट व ऊबासी लेती हुई चाल समझ रहा था. पर ये थकावट की चाल... Read more
इस विपुला पृथिवी को मैं जानता ही कितना हूं
पहाड़ और मेरा जीवन – 51 (Sundar Chand Thakur Memoir) (पिछली क़िस्त: वह पहाड़ों की सर्दियों का एक जरा-सा धूप का टुकड़ा) मुझे मरण की चाह नहीं है सुंदर जग में, चाह रहा हूं मैं भी जीना मानव समुद... Read more
बम्बइया पिक्चर की कहानी, दिल्ली की थकान और कुमाऊं का लोकगीत: देवेन मेवाड़ी की स्मृति में शैलेश मटियानी
सन् साठ के दशक के अंतिम वर्ष थे. एम.एस.सी. करते ही दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में नौकरी लग गई. आम बोलचाल में यह पूसा इंस्टिट्यूट कहलाता है. इंस्टिट्यूट में आकर मक्का की फसल पर शो... Read more
ओ चड़ी कलचुड़िया चड़ी
मेरा गांव-कालाआगर. नैनीताल से करीब 100 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में. इस ऊंची पर्वतमाला को जिम कार्बेट कालाआगर रिज कहते और लिखते थे. उस दिन ‘ब्लू ह्विसलिंग थ्रश’ यानी हमारी कलचुड़िया इतने कर... Read more
पिछले पांच सौ सालों में विज्ञान और तकनीक ने दुनिया का चेहरा ही बदल कर रख दिया. खोज आविष्कार व नवप्रवर्तन से प्रकृतिदत्त संसाधनों का विदोहन हुआ. उत्पादन बेहिसाब बढ़ा. उसी के साथ आय, उपभोग, ब... Read more
कहानी से भागता, बिखरता और टूटता सेक्रेड गेम्स सीजन 2 : बेशक सेक्रेड गेम्स भाग दो, गायतोंडे, सरताज, परोलकर, माजिद, राव, बत्या, गुरुजी जैसे किरदारों की तरह ही अपनी गहन छटपटाहटों, हिंसाओं, अपरा... Read more
हम सब जानते हैं कि उनकी शिक्षा नहीं हुई थी. मैट्रिक का इम्तहान वे नहीं दे पाए थे. पहाड़ की जो स्थितियां थीं उसमें उन्हें भागकर बंबई जाना पड़ा. बहुत ही विकट स्थितियां थीं. आर्थिक रूप से और मा... Read more