1984 में लास एन्जेल्स में हुए ओलिम्पिक खेल सिर्फ़ एक एथलीट की उपलब्धियों के लिये याद किये जाते हैं. कार्ल लुईस के हालिया प्रदर्शन ने सारे खेल-संसार में यह उम्मीद जगा दी थी कि वे 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक के नायक महान जेसी ओवेन्स की टक्कर के खिलाड़ी बन कर उभरेंगे. न सिर्फ़ लुईस ने ऐसा कर दिखाया, अगले बारह सालों तक ट्रैक पर उनकी बादशाहत क़ायम रही और उन्हें शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया गया.
एक ओलिम्पिक में अपने कारनामों से दुनिया को हैरत में डालने का काम करने वाले खिलाड़ियों की संख्या काफ़ी बड़ी है लेकिन लुईस के प्रदर्शन का चमत्कार का अन्दाज़ा उनके द्वारा बनाए गए रेकार्ड्स या जीते गए पदकों की संख्या से नहीं लगाया जा सकता. ओलिम्पिक जैसी प्रतियोगिताओं में जीतने के लिए ज़रूरी आधुनिक मानक दिन-ब-दिन कड़े होते जा रहे हैं और दुनिया भर के खिलाड़ी दिन-रात इस के लिए मशक्कत किया करते हैं. कार्ल लुईस के नौ ओलिम्पिक गोल्ड चार आयोजनों यानी 1984, 1988, 1992 और 1996 में जीते गए. कार्ल लुईस ने चार वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स में भी आठ गोल्ड जीते. लुईस के ओलिम्पिक पदकों की संख्या की संख्या ज़्यादा भी हो सकती थी क्योंकि 1980 के मास्को ओलिम्पिक में उन्हें अमेरिका की टीम में चुना गया था लेकिन राजनैतिक और कूटनीतिक शत्रुता के चलते अमेरिका ने इन खेलों के बहिष्कार का फ़ैसला लिया था.
लेकिन तब भी ये आंकड़े केवल कुछ संख्याएं हैं और कार्ल की महानता का एक हिस्से भर को प्रतिविम्बित करते हैं. 1979 में अपने करियर की शुरुआत करने के बाद अगले सत्रह सालों तक एथलेटिक्स की दुनिया में उनकी बादशाहत कायम रही और उन्हें ‘द किंग’ कहा जाता था. 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ के अलावा लम्बी कूद की प्रतिस्पर्द्धाओं में कार्ल लुईस का दबदबा इतना था कि ‘द किंग’ के खिताब का अधिकारी कोई भी और और एथलीट दूर-दूर तक नज़र नहीं आता.
1984 के ओलिम्पिक खेलों में जेसी ओवेन्स की उपलब्धि की बराबरी कर चुकने के बाद कार्ल को आशा थी बड़ी कम्पनियां उन्हें अपना ब्रान्ड एम्बेसेडर बनाने को लालायित हो रही होंगी पर ऐसा नहीं हुआ. एक और महान एथलीट एडविन मोज़ेज़ ने इसका कारण बताते हुए एक बार कहा था: “कार्ल ज़रूरत से ज़्यादा आत्ममुग्ध खिलाड़ी थे. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलते हुए आपसे थोड़ी बहुत विनम्रता की आशा की जाती है. वह उस में ज़रा भी नहीं थी.” इस के अलावा कार्ल के एजेन्ट जो डगलस ने उनकी तुलना पॉप स्टार माइकेल जैक्सन से कर डाली जो अमरीकियों को पच नहीं पाया.
इस से सीख लेकर कार्ल ने अपने खेल पर नए सिरे से ध्यान देना शुरू कर दिया. 1987 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में कनाडा के बेन जानसन ने उन्हें 100 मीटर दौड़ में हरा दिया. इस दौरान कार्ल के पिता का देहान्त भी हो गया. पिता की मौत ने उन्हें हिला कर रख दिया था. मृत पिता के हाथ में उन्होंने 1984 में लॉस एन्जेल्स में जीता गोल्ड मैडल दफ़नाए जाने के लिए रख दिया और अपनी मां से कहा: “चिन्ता मत करना. मैं एक और ले आऊंगा.”
1988 के सियोल ओलिम्पिक का 100 मीटर फ़ाइनल उस साल की सबसे चर्चित घटनाओं में शुमार किया जाता है. बेन जानसन ने 9.79 सेकेन्ड में दौड़ जीतकर नया वर्ल्ड रेकार्ड बनाया तो दूसरे नम्बर पर रहे कार्ल लुईस ने 9.92 सेकेन्ड का समय निकाल कर अमरीकी रेकार्ड. लेकिन यह परिणाम तीन दिन बाद बदल देना पड़ा. बेन जानसन को स्टेरोइड टेस्ट में पाज़ीटिव पाया गया और अपनी मां को दूसरा गोल्ड ला कर देने का कार्ल लुईस का वादा झूठा नहीं रहा. जानसन से गोल्ड छीनकर लुईस को दे दिया गया और इस घटना के बाद वे ओलिम्पिक के इतिहास के पहले ऐसे एथलीट बने जो पिछले ओलिम्पिक का 100 मीटर का खिताब बचाने में कामयाब रहा.
–अशोक पाण्डे
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