ब्रह्म कमल का वानस्पतिक नाम (Sassurea Obvallata) है. यह ऐस्टेरेसी (Asteraceae) परिवार का पौंधा है. सूरजमुखी, डहलिया, भृंगराज, कुसुम और गेंदा भी इसी परिवार से हैं. ब्रह्म कमल भारत के अलावा बर्मा, चीन, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पाया जाता है. उत्तराखण्ड में इसे ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से जाना जाता है.
यह हिमालय में 11,000 से 17,000 फीट की ऊंचाई में पाया जाता है. उत्तराखण्ड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में यह सभी जगह देखने को मिल जाता है. ट्री लाइन से ऊपर इसे आसानी से देखा जा सकता है. ब्रह्म कमल को यह नाम ब्रह्मा के नाम से मिला है. हिमालयी क्षेत्रों से सटे सभी गांवों के धार्मिक अनुष्ठानों में इसे देवताओं को चढ़ाये जाने की परंपरा है. उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष बुरांश
यह बहुत सुन्दर फूल है और इसकी सुगंध भी बहुत मादक हुआ करती है. इसका फूल मध्यरात्रि में किसी एक रात ही खिलता है और सुबह होने तक मुरझा जाता है. इसे खिला हुआ देखना अत्यंत दुर्लभतम क्षण है. जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति उभर आती है. मिथक है कि इसे खिलते हुए देखते समय की गयी मनोकामना पूर्ण होती है. इसके पौधे में साल में सिर्फ एक बार ही फूल खिलता है. यह फूल मानसून के मौसम में खिला करता है. सितम्बर-अक्टूबर तक इसमें फल बनने लगते हैं. इसका जीवन चक्र 6 माह तक का होता है.
ब्रह्म कमल का जिक्र हिन्दू धर्मग्रंथों में भी मिला करता है. जनश्रुति है कि एक बार विष्णु ने हिमालय आकर शिव को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाकर प्रसन्न किया. यहाँ आकर विष्णु ने शिव को अपनी एक आँख भी समर्पित कर दी. इसी क्षण से शिव को कमलेश्वर और विष्णु को कमल नयन कहा जाने लगा.
महाभारत के अनुसार ब्रह्म कमल की सुगंध से मदहोश द्रौपदी इसे पाने के लिए लालायित हो पड़ी थीं. उन्होंने पांडवों से हिमालय जाकर इसे ले आने की जिद पकड़ ली. द्रौपदी की इस जिद को पूरा करने के लिए भीम हिमालय पहुंचे. यहाँ बदरीनाथ से कुछ पहले ही हनुमानचट्टी में हनुमान ने भीम का रास्ता रोक दिया. हनुमान रस्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठ गए और भीम ने उसे हटाने का अनुरोध किया. हनुमान ने खुद के असक्त होने का हवाला देकर भीम से कहा वह स्वयं ही पूंछ को हटाकर किनारे कर दे. भीम ने बहुत प्रयास किया मगर पूंछ को हिला पाने तक में असमर्थ रहे. इस तरह भीम का दर्प चूर हुआ. इसके बाद भीम हनुमान की आज्ञा से ही ब्रह्म कमल लेकर गए.
किवदंती यह भी है कि पार्वती के अनुरोध पर शिव ने ब्रह्म कमल को पैदा किया. गणेश को हाथी का सर लगाने की प्रक्रिया में ब्रह्म कमल का महत्वपूर्ण योगदान रहा. सर लगाते समय गणेश को ब्रह्मकमल के पानी से नहलाया गया था. कहा जाता है तभी से यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है.
ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी भरपूर है. इसे सुखाकर कैंसर की दवा में इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाला पानी स्फूर्तिदायक होने के साथ ही काली खांसी की भी दवा है. उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी मोनाल
उचित संरक्षण के अभाव में ब्रह्म कमल उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लुप्त होने की कगार पर है. उत्तराखण्ड का राज्य वन पशु: कस्तूरी मृग
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