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सदाबहार रेखा

वो सावन-भादों की फुहार हैं…उमराव जान की ताजा़ ग़ज़ल…ख़ूबसूरत की शोख़ी और हर उस फिल्म की जान जिसमें वे नज़र आईं. रेखा ने जैसे उन्हें अपने क़रीब से तो गुज़रने दिया…खु़द को छूने नहीं दिया. 10 अक्टूबर अपने जन्मदिन पर उम्र को शायद यही कहकर चुप बिठा देंगी…एज इज़ जस्ट ए नंबर …

किस मिट्‌टी की बनी हैं रेखा…सब जानना चाहते हैं. पर वे अपनी दुनिया में मशगू़ल, किसी के लिए उपलब्ध नहीं हैं. मानो दुनिया को खूब देख लेने के बाद वे अब उसके बीच रहकर भी उससे दूरी रखना चाहती हैं. चमक-दमक के साथ वे अवॉर्ड फंक्शंस में नजर जरूर आती हैं.

दुनिया एक झटके में बदली थी. आइक्रीम, होमवर्क, घर…सब छूट गया.
मद्रास शहर से मुंबई के जंगल में पांव रखते हुए जो आवाज़ हुई वो उस सपने के टूटने की थी जिसमें तेरह बरस की बच्ची एअरहोस्टेस बन आसमान में उड़ना चाहती थी.

टूटे ख़्वाब की किरचों को आँखों में लिए कैमरा, लाइट्स और अनजान भाषा में बोलते लोगों का सामना कर रही थी भानुरेखा. उसके चेहरे को अनाकर्षक कहा गया, रंग को गाढ़ा और अंदाज को अनगढ़. अपने इसी वजूद के साथ वो उस राह पर चल पड़ी जहां से वापसी नामुमकिन थी. यहीं रेखा को मिले सावन-भादों.

कान में झुमका-चाल में ठुमका.. लिए रेखा ने कमर पे लटकती चोटी से इस मौसम को यूं बांधा कि आज तक आज़ाद नहीं किया. रेखा ने कामयाबी का जा़यक़ा चख लिया था. बॉलीवुड अब उन्हें सर पर बिठाने को तैयार था. जिन आंखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हुए वे अब चमकने लगी थीं.

फिल्मों में काम मिलना, कामयाब होना या किसी के साथ नाम जुड़़ना-टूटना ..इस सबके बीच एक फिल्म आई दो अनजाने. रेखा खु़द मानती हैं कि यहीं से उनकी ज़िंदगी में बदलाव की शुरुआत हुई. कोई पारस छूकर गुज़रा और वे सोना हो गईं. अपने आप को किसी और की नज़र से देखना क्या होता है, काम करना और बेहतर से बेहतरीन काम करना क्या होता है..रेखा ने तभी जाना. एक इंटरव्यू में रेखा ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि ये सारा बदलाव एक शख़्स के कारण मुमकिन हुआ. रेखा सुनहरी हो चुकी थी और फिल्म में उनका होना कामयाबी की गारंटी.

रेखा उन कलाकारों में से हैं जो जिनकी जिंदगी एक खुली किताब होते हुए भी अनगिनत रहस्य खुद में समेटे है. यानी पढ़ने वाला अगर सरसरी तौर पर पढ़े तो वही समझ आएगा जो लिखा है…पर ज़रा सा ध्यान देने से अर्थ परत-दर-परत खुलते दिखेंगे.
रेखा का जीवन कंट्रोवर्सी से अछूता नहीं रहा. संबंध जुड़ने और टूटने के बीच एक शादी और उसका खत्म होना. ये सारी चीजें उनके गिर्द फैले रहस्य को और गहराती गईं.

रेखा अकेली रहती हैं. वे किसी से मिलती नहीं सिवाय अपनी सेक्रेटरी के.

जब लोग इस बात को समझकर चुप बैठना चाहते हैं तो अचानक किसी अवॉर्ड फंक्शन में नजर आती हैं -गहनों से सजी, कांजीवरम साड़ी में लिपटी, बालों में फूल सजाए…सबसे बतियाती. चुलबुली होते हुए भी ग्रेसफुल. देखने वाला हक्का-बक्का रह जाता है जब वे सामने आए किसी ऐसे शख़्स को हैलो या नमस्त कर डालती हैं जिसके नज़र मिलाने की उम्मीद भी वे न कर रहे हों. फिर तो चाहे मिस वर्ल्ड बैठी हों या मिस यूनिवर्स…कैमरा बार-बार उनकी तरफ जाता है. खास बात ये भी है कि वे इस सबसे अनजान नहीं रहतीं.

तो, रेखा उतनी ही विरल हैं जितनी सरल दिखती हैं. वे फेसबुक पर नहीं हैं. टिवटर पर नहीं हैं. फोन कॉल अटेंड नहीं करतीं. इंटरव्यू नहीं देतीं. किसी चैट शो का हिस्सा नहीं बनतीं. अपनी फिल्म की प्रमोशन पर नहीं निकलतीं..(कभी कभी निकलती भी हैं).तो भी हमेशा खबरों में रहती हैं.
वे जितनी दूरी बनाती हैं दुनिया से लोग उनके बारे में उतना ही ज्यादा जानना चाहते हैं.

शायदा

चंडीगढ़ में रहने वाली पत्रकार शायदा का गद्य लम्बे समय से इंटरनेट पर हलचल मचाता रहा है. इस दशक की शुरुआत से ही उनका ब्लॉग बहुत लोकप्रिय रहा. वे साहित्य, कला और संगीत के अलावा सामाजिक मुद्दों को अपना विषय बनाती हैं.

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Sudhir Kumar

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