‘होई नाती जा पै आपण ख्याल करिये मेरी चिन्ता झन करिये भेटण हूँ कै औने रयै, आपण बाप रन्कर जस झन करिये’ कहते हुऐ बुढ़िया आमा; दादी के आँसू टपक पड़े जिन्हें वो रोकने का प्रयास वह कर रही थी. ‘हिट पै बिश्नुवा गाड़ी तक मैं ले औनु त्यौर सामान कुछ ज्यादा देखिण लागि रौ’ पड़ोस के दीवान दाज्यू ने कहा. ‘आमा पैलाग जानू पै डाढ़ नि मारिये, मैं बीच-बीच में औनै रूल तू चिन्ता झन करिये क्यै सामान चैयौलौ गंगदाक दुकाण बै उधार लि लीये मैं बाद में सब चुकै दियूल, हिटनु पै आमा.’
(Bishnu Story by Pushkar Raj)
बिशन सिंह बोला. ‘होय नाती जा पै जा’ इतना कहकर बूढ़ी दादी ने पल्लू से आंसुओं को पोंछने का प्रयास किया. बिश्नुवा, जिसका नाम बिशन सिंह था गाँव के अन्य नामों की तरह से प्यार से उसके नाम की भी धज्जियां उड़ा दी गयी थी.
‘बिशन सिंह अपनी आमा को मना लो तुम्हें वजीफ़ा मिला है आगे की पढ़ाई मत छोड़ना भविष्य बनाने का यही तो टाइम ठैरा,’ मास्साब ने बिशन सिंह को बुलाकर कहा. ‘हाँ मास्साब मैं भी आगे पढ़ना चाहता हूँ, लेकिन मेरी आमा का ख्याल कौन रखेगा इसी बात की चिन्ता ठैरी, बाकी तो कालेज के साथ नैनीताल में कुछ काम करके गुजारा कर ही लूँगा.’
‘बिश्नुवा यौ तू क्यै कूना छै! नाती मेरी जिन्दगी क्यै भरौस नै मैं चानू जब तक ज्यून छूँ तू म्यर आस पासे रौ,’ बूढ़ी दादी आश्चर्य व दुःखी मन से बोली. आमा अगिल कै पढ़न पर भलि नौकरी मिल जालि, फिर तू यस किलै सोचन नै छि एैत् तू म्यौर ब्या लै देखल् आपंण नातिन कैं लै खवालि’ बिशन सिंह हसँते हुए बोला.
बिशन सिंह का गाँव नैनीताल से बहुत दूर तो नहीं था. लेकिन फिर भी बेचारी बूढ़ी दादी की चिन्ता स्वाभाविक ही थी, जब बिशन सिंह करीब पांच साल का था उसकी माँ बेचारी लकड़ियां लेने जंगल गई थी वहीं किसी पेड़ से गिर गई थी. चारपाई में उठाकर घर लाये और दो दिन में ही चल बसी. अब बिश्नुवा की दादी व उसका बाप देव सिंह ही उसके परिवार में बचे थे.
एक दिन देव सिंह बोला ‘ईजा मैं सोचनू पार तरफक् गोकुल शहर बै एै रौ मैंल लै उहुकैं बात करि रैखि उ कुना तू लै मैं दगणि हिट मैं सोचनू कि ठिकै कुना मैंकैं लै वाँ क्यै नौकरी मिल जालि फिर मैं बिश्नु और तूगैं लै आपण दग्णि लि जूल.’
‘देबुआ च्यला हम तिनोंक खाण हूँ कै तू यायिं मजूरी पाणि कर लैं म्यर क्यै भरोस आज छूँ भौवक क्यै पत्त नै’ आमा ने आर्श्चय से अपने बेटे देव सिंह से कहा.
‘ना ईजा मैंल गोकुल हूँ कै कै हालौ उ कुना तुगैं वाँ क्वै सेठाक वाँ लगै दूयूल, फिर याँक् गौंक और लै उ दग्णि जैरिं सबौंक् भलै हरौ अब तू मैंकैं नि रोक.’
‘च्यला जस् कर छै हम दुयून कैं भैंटण औने रये’ बुढ़ि आमा ने हार कहा.
‘च्यला तूगैं त्यैरी आमेक् दिगणि रौंण छु उगैं परेशान झन करिये विइक कै मानिये मैं उलौ त्यार लिजि भलि-भलि चीज लूल’ जाते समय देब सिंह ने बिश्नुवा को गोद में लेकर कहा.
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छः महिने बाद देब सिंह घर आया कुछ खाने पीने का सामान बिशन सिंह के कपड़े व उसकी आमा के लिए घाघरा व आंगणि भी लेते आया.
‘ईजा तू ठीक छै, क्यै परेशानी त् नि हैरे?
‘ना च्यला तू एै गै छै आब् मैं बूढ़ि कैं और क्यै परेशानी नि छु, तू आब् यायिं रौनें भल हुन.’
‘नैं ईजा वाँ काम बै छुट्टी बड़ि मुश्किलैल् मिलैं यक् हफ्त मैं वापस जाण् छूँ फिर लम्बी छुट्टी लि भैर ऊल्’ देव सिंह ने कहा था.
कुछ समय बाद गोकुल अपने गांव आया पर देबसिंह उसके साथ नहीं था. ‘च्यला गोकुला तू आछै म्यौर देबू कां छॅु? विइक क्यै पत्त पाण्ं लै छु? आज द्वि साल हैगिं’ बूढ़ी दादी चिंतातुर होकर बोली.
‘काखि मैंगैं लैं के पत्त न थैं मैंगैं देबदा साल भर पैलि मिलिं कुनाछि उ सेठैकि नौकरी छौड़ भेर दुहरि जाग जाण लागि रूं फिर जाणि कांगि मैंगैं क्यै पत्त पाण्ं नि दि राख’ गोकुल ने अपनी विवशता व्यक्त की.
फिर एक दिन गोकुल के घर में चिट्ठी आई कि देब सिंह दूसरे शहर में किसी कारखाने में काम कर रहा था तभी एक दिन अचानक उबलते बॉयलर में गिर कर घायल हो गया. गोकुल का पता उसने अपने परिचित की जगह लिखवा रखा था. खबर मिलते ही गोकुल गांव के साथियों को साथ लेकर उसके पास पहुंचा. देब सिंह की हालत बहुत खराब थी. एक हफ्ते सरकारी अस्पताल में रहा. फिर ईलाज के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था. सभी के कहने पर उन्होंने उसका अंतिम संस्कार वहीं कर दिया.
बूढ़ी दादी पर मानो आसमान गिर पड़ा. बिशन सिंह को छाती से लगाकर महिनों रोती रही थी. लेकिन धीरे-धीरे बिश्नुवा के सहारे उसने अपने को संभाल लिया था. आखिर उसका भी तो बूढ़ी दादी के सिवा कोई नहीं था. बिशन सिंह ने भी अपनी दादी को कभी निराश नहीं होने दिया था. पढ़ाई में वह बहुत मेहनत करता था. अब उसको वजीफा भी मिलने लगा था. बाद में खाली वक्त में गाँव के बड़े-बूढों को पढ़ाने का जिम्मा भी गाँव के प्रधान ने प्रौढ़ शिक्षा के अभियान के तहत उसको सौंप दिया था.
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आज बिशन सिंह को नैनीताल में दाखिला लिए दो महीने बीत गये थे लेकिन उसका मन वहाँ की चहल-पहल से उलट अपने गाँव की ओर ही लगा रहता था.
‘बिशनदा, तुम भी यार हर समय गांव के बारे में क्या सोचते रहते हो अब तो तुम नैनीताल में ठैरे अब तो यहाँ के मजे लेने ठैरे.’ उसके ही पड़ौस के गांव के चन्दन सिंह ने कहा. जिसके साथ उसने कमरा ले रखा था. ‘ना यार! मैं यहाँ मजे लेने थोड़े ही आया ठैरा मुझे तो पढ़ कर बड़ा आदमी बनना है और अपनी आमा के लिए ब्वारी लानी है जो उसका हमेशा ख्याल रखेगी’ बिशन सिंह ने सकुचाते हुए कहा. ‘अरे ब्वारी भी ले आना. यहीं कितनी ठैरी?’ चन्दन सिंह हँसते हुए बोला. धीरे-धीरे पढ़ाई का बोझ पड़ने पर बिशन सिंह अपने गांव को भूल सा गया. फिर सालाना परीक्षायें भी तो सर पर थी.
‘अरे यार! आज बड़े खुश हो रहे ठैरे पेपर तो कल लास्ट ठैरे’ चन्दन सिंह बोला. ‘हाँ यार अब तो आमा की याद भी आ रही है कल शाम को ही पेपर के बाद शाम वाली बस से घर निकल जाऊंगा. फिर पैदल भी तो जाना ठैरा’
‘आमा स्यै रछि क्यै’ बिशन सिंह ने दरवाजा खटखटा कर पूछा. ‘औनू-औनू को छै रै? कैं म्यर बिश्नु त नि एैगै’ बूढ़ी दादी अन्दर से ही बोली फिर दरवाजा खोलते ही बोली ‘अरे! बिश्नुवा नाती’ और बूढ़ी दादी की आँखे खुशी से छल छला पड़ी. ‘आमा पैलाग् कसि है रछि तू’ ‘मैं ठीक छुं नाती तू कस् हैरे छै, ततुक कमजोर किलै है गै छै आपण ध्यान नी धरने क्यै?
‘ना आमा यैसि क्यै बात नै’ बिशन सिंह ने आमा के दुःख को समझते हुए कहा था.
‘आमा यां गौं में रै भेर टाईमौक पत्त नि चल पौरूं हुँ कै मैं वापस जूल म्यर रिजल्ट लै औणि छु’ ‘अरे नाती यैतुक जल्दी क्यै छु रिजल्ट कैं भाजन जै क्ये ना द्वि चार दिन एै रूक जा’ आमा ने निराशा जताते हुए कहा.
ना आमा जाण जरूरी छु फिर मैंल कै हुंकैं कामैंकि लिजि बात लै कर रैखी सोचनूं दुहर साल में पढ़ाईक साथ-साथ वॉं क्यै काम लै कर ल्यिूल मणि किराई पाणि लै निकल जाल, ठीक छॅु नैं?
‘तू जस ठीक समझ छै मैं बूढ़ि त्यर भलै देखण चानु, द्वि चार दिन एै रूक जानै नाती भल हुन’ आमा ने बड़ी आशा भरी नजरों से बिशन सिंह की ओर देख कर कहा. ‘ना आमा जाण जरूरी छॅु फिर रिजल्ट देखन लै जाण छॅु साल भरिक् मेहनतक् फल जाणि क्यै मिलूँ क्यै पत्त? बिशन सिंह बोला.
कालेज में बड़ी भीड़-भाड़ थी. सभी बड़ी उत्सुकता से अपनी कक्षाओं के बाहर लगे नोटिस बोर्डों में रिजल्ट देख कर खुश व दुःखी हो रहे थे. तभी बिशन सिंह का एक दोस्त उसे सामने से आता हुआ देख कर बोला ‘बिशन तुमने तो कमाल ही कर दिया पूरी क्लास में अव्वल आये हो पार्टी तो देनी पड़ेगी’ बिशन सिंह को उसकी बातों पर विश्वास नही हुआ वो बोला ‘पार्टी तो दे दूगाँ लेकिन पहले अपनी आँखों से रिजल्ट तो देख लूँ.’ वास्तव में बिशन सिंह न केवल प्रथम श्रेणी में उर्त्तीण हुआ था बल्कि उसे अपनी क्लास में सर्वाधिक अंक भी मिले थे. बिशन सिंह खुशी से झूमने लगा. आखिर इस पल का ही तो उसे इन्तजार था जिसके लिए उसने बड़ी मेहनत की थी.
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‘यार चन्दन सोच रहा हूँ कि दूसरे साल मैं पढ़ाई के साथ-साथ कुछ काम भी कर लूँ पड़ौस वाले साह जी कह रहे थे वो कुछ काम दिलवा देंगे. कैसा रहेगा? फिर किराया भी निकल आयेगा’ ‘बिशनदा ये तो अच्छी बात है, आज ही उनसे बात कर लो. शायद काम बन जाये’ चन्दन सिंह बोला.
‘अरे बिशन सिंह यू डोन्ट वरी, मिं कुनिं मिं तुमुनकैं क्यै न क्यै काम जरूर दिलै दियूल् अच्छा रैस्ट्रोरेन्टक काम तुमुकैं कस लागौल म्यर एक साहजीक् रैस्टोरेन्ट छूँ मलताल घोड़ा स्टैंन्डक पास’ साह जी ने कहा ‘अरे साहजी मैं क्वै लै काम कर ल्यिूल लेकिन मैं पार्ट टाईम कर सकनु दिन में द्वि बजि बाद, क्यै यस है सकुं? बिशन सिंह ने खुश होकर कहा. ‘तुम चिन्ता नि करो मीं बात करूल. तुम भौव मिं दगणि वां हिटला’ साह जी ने बिशन सिंह को आश्वस्त करते हुए कहा.
‘अरे श्यामदा यौ बिशन सिंह छुॅ मील तुमुंकू जैक बार में बता छी यायिंकै कॉलेज में पढूँ गंगलाल साह जी मकान में आपण फिरेन्डक दगणि रों भौत भल लौंड और स्टूडेन्ट छॅु बट बिचार जरा पुवर छुॅ तुमर वां काम करलो कुछ मद्द लै मीलि जालि’ पड़ौस वाले साह जी ने कहा ‘देख यार बसन्त उसिक त् म्यर रैस्टोरन्ट में दिन भर भीड़ रैं लेकिन इविनिंग टाइम में जरा ज्यादा ग्राहक औनि तू त् जाण छै, अब यौ भै पढ़न लेखनि लौंड कसि कर सकौल’ ‘साह जी आप चिन्ता बिलकुल मत करो मैं कालेज के बाद सीधे काम पर पर ही आ जाऊँगा पढ़ाई तो मैं रात दस बजे बाद ही करने वाला हुवा, तुम प्लीज मना नि करो मैंकैं बड़ि मद्द मिल जालि’ बिशन सिंह ने बड़ी आशा से कहा. ‘लेकिन तुमुकैं यां मन लगे भेर काम करण पणौल कम्पिलैन्टक चान्स कैगैं नि मिलंण चैं बांकि मैं सब देख ल्यिूल्’
अब बिशन सिंह सुबह कालेज और फिर सीधे काम पर पहुँच जाता पर यह काम उस जैसे होनहार के लिए उचित तो नहीं था. लेकिन क्या करे मजबूरी थी.
‘हैलो जरा पानी लाना’ पाँच नम्बर टेबल में बैठे चार आदमियों में से एक ने आवाज दी. ‘लीजिए सर’ बिशन सिंह तुरन्त हाजिर होकर बोला. ‘‘अरे तुम तो नये लग रहे हो क्या नाम है तुम्हारा’ ‘जी बिशन सिंह’ बिशन सिंह शरमाते हुए बोला. जरा सोडा वगैरह लाना और खाने में क्या है? ‘जी पूछ कर बताता हूँ बिशन सिंह बोला. ‘साब खाने में दाल, सब्जी, तन्दूरी रोटी, फ्राईड राईस, रायता और सलाद है’ ‘अरे ये सब हमें नहीं खाना है तू सोडा और अण्डे की भुजिया ले आ’ ‘जी साब’ बिशन सिंह बोला. दो मिनट बाद बिशन सिंह सोडा और भुजिया लेकर हाजिर हो गया. ‘अरे यार तू तो बड़ा स्मार्ट है फटाफट सारी चीजें ले आया ठैरा, अब से हमारी टेबल को तू ही देखना, जा अब बिल भी ले आ’ ‘ठीक है साब’ बिशन सिंह ने बिल लाकर दिया उन्होंने उस पर रूपये रखे जब तक बिशन सिंह बचे पैसे वापस करने टेबल पर पहुंचा तो वे चारों जा चुके थे उसने साहजी के पास जाकर कहा अरे साह जी! वो साब तो बाकी पैसे ले ही नहीं गये’ अरे! ये तो टिप है चल पॉकेट में रख ले’ ‘साह जी हसँते हुए बोले. अब ये सिलसिला चल पड़ा था. अब जब भी बिशन सिंह बिल देता उसमें कुछ ना कुछ पैसा बकाया बच जाते जिसको पाकर वो बहुत खुश होता. कुछ ग्राहक कुछ अधिक पैसा भी छोड़ देते. और बिशन सिंह उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ता. जिससे कुछ ही दिनों में शाम को आने वाले ग्राहकों का वह चहेता वेटर बन गया. अब सभी उसे बिशन दा कहने लगे थे.
‘अरे बिशन दा आज हमारा एक काम कर दो पड़ौस वाली दुकान से एक रम की बोतल ला दो ना’ टेबल नम्बर चार में बैठे लोगों में से एक ने कहा. वे रैटोरेन्ट के नियमित ग्राहक थे. लिहाजा बिशन सिंह ने तुरन्त हामी भर दी. अगले ही पल रम की बोतल टेबल पर हाजिर थी. ‘साब बाकी पैसे’ ‘अरे बिशनदा ये तुम रख लो’ ‘नहीं साब बीस रूपये बचे है बहुत ज्यादा हैं’ बिशन सिंह झिझकते हुए बोला. ‘अरे कोई बात नहीं तुम रख लो’ बिशन सिंह ने शरमाते हुए पैसे रख लिए और जाने लगा. तभी एक ग्राहक बोला ‘बिशनदा कुछ खाने को और एक गिलास और लाना’ बिशन सिंह अब तक उनकी पसन्द जान चुका था. उसने कुछ ही देर में उनकी पसन्द की सारी चीजें टेबल पर लगा दी. ‘अरे बिशन दा एक गिलास अपने लिए तो लाओ’ उनमें से एक ग्राहक बोला. ‘अरे नहीं साब! मैं पीने वाला नहीं ठैरा’ ‘अरे तुम गिलास तो लाओ बाद में देखेंगे’ बिशन सिंह एक गिलास टेबल पर रख कर चला गया. कुछ देर बाद उसी टेबल से आवाज आयी. ‘जी साहब’ ‘अरे बिशनदा पानी तो ला दो और तुम्हारा पैग भी तैयार है. आज तो पीने की शुरूआत करनी ही पड़ेगी’ ‘पानी तो साहब में ले आता हूँ लेकिन मैं पीने वाला नहीं ठैरा’ बिशन सिंह घबराते हुए बोला. ‘अरे एक पैग में कुछ नहीं होता, पीकर देखो आदमी मस्त हो जाने वाला ठैरा, नैनताल की ठंड का भी पता नहीं चलने वाला ठैरा’ ‘और अगर तुम नहीं पीओगे तो हम भी नहीं पीयेगंे, और ये खाना भी बरबाद हो जायेगा. फिर कल से जोशी जी के रैस्टोरेन्ट में बैठक होगी कुछ समझे बिशन दा’ दूसरा ग्राहक बोला. अब बिशन सिंह धर्मसंकट में फँस गया एक तरफ ग्राहक टूटने का डर, दूसरी तरफ उसकी टिप का भी नुकसान. पल भर सोच कर बिशन सिंह ने गिलास उठाया और एक साँस में पूरा गिलास गले से नीचे उतार लिया. ‘बस अब नहीं साब’ उबकाई लेते हुए बिशन सिंह बोला. सभी ठहाके मारकर हँसने लगे. कुछ देर बाद बिशन सिंह पर रम की खुमारी चढ़ने लगी. उसको बहुत हल्कापन महसूस होने लगा. ‘कुछ और लाऊँ साब’ अरे थोड़े पापड़ ला दो बस. बिशन सिंह अब किसी न किसी बहाने उनके पास पहुँचने लगा. ‘अरे बिशनदा एक पैग और चल जायेगी’ बिशन सिंह झैंपते हुए हँसने लगा. इस बार पैग उन्होंने कुछ बड़ा बनाया और बिशन सिंह को देते हुए बोले ‘लो मजे करो’ कुछ देर बाद बिशन सिंह को सब कुछ घूमते हुए महसूस होने लगा और चारों तरफ बैठे हुए ग्राहको की आवाजें अजीब सी सुनायी देने लगी. वह अन्य टेबलों पर लड़खड़ाते हुए आर्डर लेने व खाना देने लगा. लेकिन नशे के कारण उसका एक जगह खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. ‘अरे बिशन सिंह तूने शराब पी ली क्या? साह जी आर्श्चय व गुस्से में बोले. बिशन सिंह को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या जवाब दे. ‘तू अपने रूम में चला जा इस हालत में तेरा काम करना ठीक नहीं है’ साह जी बोले. लड़खड़ाते हुए बिशन सिंह अपने कमरे में पहुँचा. चन्दन सिंह के दरवाजा खोलते ही वह चारपाई पर गिर गया.
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‘बिशन दा तुम कल रात कितनी पीकर आये ठैरे ऐसे में कैसे पढ़ाई करोगे’? चन्दन सिंह बोला. ‘अरे यार में कल ग्राहकों की बातों में आ गया था. अब बहुत पछतावा हो रहा है’ बिश्नसिंह दुःखी होकर बोला. धीरे-धीरे यह सिलसिला रोज चलने लगा.
एक दिन चन्दन सिंह बोला ‘बिशनदा आज मेरे बाबू आये ठैरे, यहाँ कमरे में शराब की खाली बोतलें देख कर बड़े नाराज हुए और मुझसे दूसरा कमरा लेकर रहने के लिए कह गये हैं. मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊँगा’ इसके बाद बिशन सिंह कमरे में अकेले ही रहने लगा. उसने कालेज जाना भी छोड़ दिया सारा दिन रैस्टोरेन्ट में रहता और शाम को ग्राहकों की सेवा के साथ-साथ बदले में उनसे शराब पिलाने की मिन्नतें करता. कुछ ग्राहक उस पर मेहरबान थे तो कुछ उसको झिड़क देते. उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि कहीं से भी वह कालेज का छात्र नहीं लगता था.
‘अरे! बिशनदा कैसे हो? दूसरे साल के पेपर होने वाले है अपना प्रवेश पत्र ले आये क्या? चन्दन सिंह बोला. ‘अरे नहीं चन्दन कल ही जाऊँगा’ ‘दाज्यू मेरी मानो अब उस रैस्टोरेन्ट की नौकरी छोड़ दो और पढ़ाई पर ध्यान दो नहीं तो तुम्हारा साल खराब हो जाने वाला ठैरा’ ‘हाँ यार तू ठीक कह रहा है मैं भी काम छोड़ना चाहता हूँ. पेपर के बाद कोई दूसरा काम ढूँढ लूँगा’ दूसरे दिन बिशन सिंह अपना प्रवेश पत्र ले आया और मन ही मन उसने सोचा कि आज शाम को रैस्टोरेन्ट वाले से कह दूँगा कि अब वह काम पर नहीं आयेगा.
‘अरे बिशन ये तो अच्छी बात ठैरी, तू पहले अपनी स्टडी देख काम तो होता रहेगा, आज शाम काम के बाद यहीं खाना खा कर जाना महीने के आखिर में तेरा हिसाब हो जायेगा’ साहजी बोले. ‘ठीक है साहजी’ बिशन सिंह बोला और ग्राहकों की सेवा में लग गया जैसे-जैसे शाम हुई रैस्टोरेन्ट ग्राहकों से भर गया. कोई बिशन सिंह से सलाद मांगता कोई सोडा व कोई नजदीक वाली दुकान से शराब लाने को कहता. बोतल हाथ में होने पर बिशन सिंह की पीने की इच्छा जाग उठती लेकिन वो अपने को संभाल लेता. लेकिन कब तक अब तो वह शराब का आदी हो चुका था. फिर जब कुछ परिचित ग्राहकों ने उससे पीने का आग्रह किया तो वह इन्कार नहीं कर सका.
बिशन सिंह की आँखे खुली तो उसके सिर में तेज दर्द था आखिर उसने कल रात पी भी बहुत थी. उसने मन ही मन निश्चय किया कि अब वह उस रैस्टोरेन्ट में कभी नहीं जायेगा. लेकिन सिर दर्द ने उसे फिर आज एक बार अपनी दादी की याद दिला दी थी कि कैसे उसकी दादी जरा सा सिर दर्द होने पर रात भर उसके पास बैठती थी और उसका सिर दबा कर उसे सुलाने की कोशिश करती थी. अचानक उसे दादी बहुत याद आने लगी उसने सोचा कि पेपर देने के बाद वह साहजी से हिसाब लेकर अपनी दादी के लिए खूब सारी चीजें ले जायेगा और कुछ दिन अपने गाँव में ही रहेगा फिर ना जाने कब उसकी आँख लग गयी.
दूर पावरहाउस के भौंपू की आवाज सुन कर उसकी नींद खुल गयी अरे! पाँच बज गये. फिर उसने सोचा कि चलो पहले कुछ खाने का सामान ले आता हूँ फिर कमरे में बैठ कर पढ़ाई करूँगा. खाने का सामान लेने के लिए वह ढलान से उतर कर बाजार की ओर चल पड़ा. अरे! ये क्या? उसके पैर फिर रैस्टोरेन्ट की ओर क्यों बढ़ रहे हैं? बिशन सिंह ने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उसके अन्दर मन में फिर से शराब पीने की इच्छा जोर मारने लगी. आखिर वह विवश होकर साहजी के रैस्टोरेन्ट की तरफ चल पड़ा. और फिर वही शाम वही ग्राहक और वही शराब, बिशन सिंह अब पूरी तरह शराब की गिरफ्त में आ चुका था.
‘बिशनदा आज पूरे दो महिने बाद मिले हो तुम्हारे पेपर कैसे हुए’? चन्दन सिंह बोला. ‘अच्छे’ बिशन सिंह झैंपते हुए बोला. आखिर वह चन्दन सिंह को कैसे बताता कि उसने पेपर तो दिए ही नहीं हैं. और अब वो कैसे गाँव जायेगा और अपनी दादी को कैसे मुँह दिखायेगा. जिसने कितनी उम्मीदों से उसे शहर पढ़ने भेजा था.
‘अरे तुम्हारे साथ कोई आया है क्या? नहीं डाक्टर साहब में अकेले ही आया हूँ क्या बात है? चन्दन सिंह घबराकर बोला. ‘घबराने की जरूरत नहीं है अभी से ईलाज शुरू हो जायेगा तो कुछ दिनों में ही तुम ठीक हो सकते हो, लेकिन शराब की एक बूँद भी तुम्हारे लिए जहर है’ डाक्टर ने हिदायत देते हुए कहा. सुबह पेट दर्द के कारण साहजी ने अपने नौकर के साथ उसे स्थानीय बी.डी. पाण्डे हास्पिटल भेजा था. जहाँ डाक्टर ने जाँच के बाद उसे लीवर की गम्भीर बीमारी की शुरूआत बताई थी.
‘देख बिशन सिंह इलाज तो तेरा हो जायेगा पर तुझे पूरे दिन रैस्टोरेन्ट में ही काम करना होगा शराब को छूना भी मत’ साहजी बोले. ‘मैं बिलकुल ठीक होना चाहता हूँ साहजी. मैं अपनी आमा के पास ठीक होकर ही जाना चाहता हूँ. लेकिन रैस्टोरेन्ट के उस माहौल में कोई कैसे शराब से बच सकता था. फिर बिशन सिंह तो उसका आदी हो चुका था. लिहाजा उसका स्वास्थ्य दिन प्रति दिन खराब होता चला गया. दिन भर रैस्टोरेन्ट के गोदाम में पड़ा रहता. फिर दवाईयों का खर्च भी बढ़ गया था. जो अब उसके बस की बात नहीं थी. उसके मन में अपनी जीवन के प्रति घृणा हो गई थी. वह शराब छोड़ना चाहता था. लेकिन अब वह उसको नहीं छोड़ रही थी. जीवन उसको बोझ लगने लगा था.
(Bishnu Story by Pushkar Raj)
‘साहब ताल के किनारे किसी की लाश तैर रही है’ एक युवक ने घबराकर पुलिस को सूचना दी. ताल के किनारे काफी भीड़ जमा थी. तभी भीड़ में से एक बोला अरे! ये तो बिशन सिंह है साहजी के रैस्टोरेन्ट वाला. लाश बुरी तरह सड़ गई थी. साहजी को बुलाकर पंचनामा करके लाश उनको सौंप दी गयी लेकिन उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि उसको गाँव भेजा जा सके अतः उसका वहीं अन्तिम संस्कार कर दिया गया’
धीरे-धीरे गाँव के लोग बिशन सिंह की दादी के पास एकत्र हो रहे थे. अचानक इतनी भीड़ देखकर उसको अनिष्ट की आशंका तो हो गयी लेकिन मन नहीं मान रहा था. ‘अरे! तुम सब आज म्यर वां क्यै बात छु? म्यर बिशनु भौत भल पास हैरो क्यै? सब गाँव वाले एक दूसरे का मुँह देखने लगे. ‘अरे! मैं त् पैलिकै कौं छि म्यर बिशनु भौत नाम कमाल’ दादी बोली ‘होई आमा उ भौत होनहार छि लेकिन जाण त एकदिन सबुकैं पणनेर भै क्वै अघिल गै क्वै पछिल’ पड़ौस वाली काखी बोली,ताकि दादी को खबर बताने की भूमिका बन सके. आखिर खबर सुन कर वह इसे बर्दाश्त कर भी पायेगी या नहीं कहना मुश्किल था. लेकिन बताना भी तो जरूरी था. ‘आमा बिशनुवेकि तबीयत भौतै खराब छि विइक् खूबै ईलाज लै हौ लेकिन उ नि बच सक’ आखिर हिम्मत करके पड़ौस वाले पंडित जी ने कहा. दादी के ऊपर मानो आसमान टूट पड़ा.
‘तुम सब झूठि बुलांण छा म्यर बिशनु आपण बाप रन्करेकि चारि मैंकैं छोड़ जै क्यै जाल? वो ढहाड़ें मार कर बोली, और एकाएक शांत हो गयी मानो आँखें बन्द करके अपने बिशनुवा का इन्तजार कर रही हो, फिर निढाल होकर एक तरफ गिर गयी.
(Bishnu Story by Pushkar Raj)
मूल रूप से ग्राम. बडे़त, नथुवाखान के रहने वाले पुष्कर राज सिंह हाल-फिलहाल हल्द्वानी में रहते हुए व्यवसाय एवं स्वतंत्र लेखन करते हैं.
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