बायोमेडिकल वेस्ट यानी अस्पतालों से निकला हुआ कूड़ा. इस कूड़े से तमाम बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है. इसे खुले में फेंकना दंडनीय अपराध है. इसके बावजूद मैदानी क्षे़त्रों के अलावा गाड़ गधेरों में घातक कूड़ा स्वच्छ वातावरण में जहर घोल रहा है. इसे लेकर सिस्टम तभी सक्रिय होता है, जब मीडिया में खबरें छप जाती हैं. एक बार एनजीटी की सख्ती के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ है. हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में निस्तारण के लिए कोई ठोस इंतजाम अब भी नहीं हैं.
जगह-जगह बड़ी तादाद में अस्पतालों से निकलने वाला बायोमेडिकल कचरा न सिर्फ आबोहवा को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि इस कचरे से संक्रमण का सबसे अधिक खतरा बना हुआ है है. इस कूड़े के संपर्क में आने पर एचआईवी, हेपेटाइटिस, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के फैलने का भी भय रहता है. मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने तो इसे मौत का सामान तक करार दिया है.
उत्तराखंड में बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण में नियमों का पालन नहीं हो रहा है. हमेशा हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों पर सख्ती बरतने के निर्देश दिए है. अब स्वास्थ्य महकमा इस कचरे के निस्तारण के लिए आऊट सोर्स व्यवस्था करने का दावा कर रहा है. स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर टीसी पंत कहते हैं. बायोमेडिकल वेस्ट कचरे का निस्तारण करवाना हमारी प्राथमिकता है. इसमें किसी तरह की लापरवाही नहीं होगी. इसके निस्तारण के लिए आउटोर्स के तहत व्यवस्था की जाएगी. यह व्यवस्था क्या होगी? कैसे होगी? फिलहाल सबकुछ हवा-हवाई ही है.
दरअसल एनजीटी ने वर्ष 2016 में बायोमेडिकल वेस्ट मैनजमेंट के लिए संशोधित नियमावली तय की थी. इसके बावजूद राज्य सक्रिय नहीं हुआ. उत्तराखंड में ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जहां 2016 से लेकर 2017 तक केवल एक अस्पताल के खिलाफ जुर्माना लगाया था, वहीं 2018 में अब तक 20 अस्पतालों पर 50-50 हजार का जुर्माना लगाया गया है.
कुमाऊ मंडल में ही केवल बाजपुर में ही एक इंसीनरेटर है, जहां नैनीताल से लेकर उधमसिंह नगर के 150 से अधिक अस्पतालों का कूड़ा निस्तारित हो रहा है. यह इंसीनरेटर निजी संस्था की ओर संचालित है. इसके बावजूद 70 से अधिक अस्पतालों वाले महानगर हल्द्वानी में गौला नदी के किनारे या फिर सड़कों के किनारे बायोमेडिकल वेस्ट बिखरा दिख जाता है. इसके बावजूद अधिकारी कार्रवाई के नाम पर महज औपचारिकता ही निभा देते हैं.
बायोमेडिकल वेस्ट का स्रोत सरकारी और प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम, डिस्पेंसरी तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनके अलावा विभिन्न मेडिकल कॉलेज, रिसर्च सेंटर, पराचिकित्सक सेवाएं, ब्लड बैंक, मुर्दाघर, शव-परीक्षा केंद्र, पशु चिकित्सा कॉलेज, पशु रिसर्च सेंटर, स्वास्थ्य संबंधी उत्पादन केंद्र तथा विभिन्न बायोमेडिकल शैक्षिक संस्थान भी बड़ी मात्रा में बायोमेडिकल कचरा पैदा कर रहे हैं। यहां उपयोग की गई सूइयां, ग्लूकोज की बोतलें, एक्सपाइरी दवाएं, दवाईयों के रैपर के साथ-साथ कई अन्य सड़ी गली वस्तुएं बायोमेडिकल वेस्ट होती हैं. जो जाने-अन्जाने खुले में पहुंच रहा है.
बायोमेडिकल वेस्ट नियम के अनुसार, इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पतालों के खिलाफ जुर्माने व सजा का भी प्रावधान है। कूड़ा निस्तारण के उपाय नहीं करने पर पांच साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है. इसके बाद भी यदि जरूरी उपाय नहीं किए जाते हैं तो प्रति दिन पांच हजार का जुर्माना वसूलने का भी प्रावधान है. फिर भी डर नहीं दिखता है.
नियम के अनुसार, अस्पतालों में काले, पीले, व लाल रंग के बैग रखने चाहिए. ये बैग अलग तरीके से बनाए जाते हैं, इनकी पन्नी में एक तरह का केमिकल मिला होता है जो जलने पर नष्ट हो जाता है, तथा दूसरे पाॅलीथिन बैगों की तरह जलने पर सिकुड़ता नहीं है. इसी लिये इस बैग को बायोमेडिकल डिस्पोजेबल बैग भी कहा जाता है.
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