सदियों से हमें बताया जाता रहा है कि पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने तब की थी जब उन्होंने एक वृक्ष से सेव का फल ज़मीन पर गिरते देखा था. आप को ये जानकर हैरानी होगी कि गुरुत्वाकर्षण का नियम न्यूटन से 500 साल पहले भारतीय महर्षि भाष्कराचार्य ने खोजा था ! भाष्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक ग्रन्थ ‘सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय’ रचा था जिसमें उन्होंने कि –
‘मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो, विचित्रावतवस्तु शक्त्य।’ / ‘आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं,गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।’ / ‘आकृष्यते तत्पततीव भाति,समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।’ – अर्थात ‘भुवनकोश अर्थात् पृथ्वी में विचित्र आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और इसी आकर्षण के कारण पदार्थ जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे ? आकाश में पदार्थ निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि वहां विविध ग्रहों की शक्तियां वस्तुओं का संतुलन बनाए रखती हैं’.
हमारे देश में अपनी प्राचीन खोजों और स्थापनाओं का मज़ाक उड़ाने का एक फैशन चल गया है ! ज़रुरत इस बात कि है कि हमारे वेदों, महाकाव्यों से लेकर मध्यकालीन वैज्ञानिकों आर्यभट्ट और भास्कराचार्य के ग्रंथों में जो कुछ छिपा है उनमें निरूपित वैज्ञानिक सत्यों को कसौटी पर कस कर दुनिया के सामने लाया जाय. अपने वैज्ञानिकों की इस कदर उपेक्षा क्या हमें मानसिक तौर पर गुलाम नहीं बनाती है ?
भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे. भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है. भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है.
भास्कराचार्य की अवस्था मात्र बत्तीस वर्ष की थी तो उन्होंने अपने प्रथम ग्रन्थ की रचना की. उनकी इस कृति का नाम सिद्धान्त शिरोमणि था. उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना चार खंडों में की थी. इन चार खण्डों के नाम हैं- ‘पारी गणित’, बीज गणित’, ‘गणिताध्याय’ तथा ‘गोलाध्याय’. पारी गणित नामक खंड में संख्या प्रणाली, शून्य, भिन्न, त्रैशशिक तथा क्षेत्रमिति इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है.
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