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2 Comments

  1. जय प्रकाश

    पहाड़ से हु ।पहाडियत अभी तक समझ नही आई । लेखक का जगरिये ओर डंगरिये का मौन संवाद जागर का होना ओर न होना की तरफ एक व्यंग तो नही ।
    प्रबुद्ध पाठक कृपया अपने विचार व्यक्त करे क्या इन सब पर विस्वास किया जाय या न किया जाय ?

  2. बाला दत्त शर्मा

    लेखक का अनुभव सत प्रतिसत हमारा भी है और मेरा इसमें विश्वास है कह नही सकता।

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