Featured

18 मई की सुबह खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट

टिहरी राजपरिवार और बद्रीनाथ धाम की धार्मिक परम्पराएं

आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी के मध्य में बद्रीनाथ स्थित नारद कुंड में फेंकी गई विष्णु रूप भगवान शालिग्राम की मूर्ति को पुनः बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित किए जाने के साथ ही श्री बदरीनाथ धाम के उत्तर स्थित चार धाम के रूप में मान्यता प्राप्त हुई. जहां की केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मण को पुजारी के रूप में बतौर रावल नियुक्त किया गया. बहुत जल्द ही उत्तर के इस तीर्थ ने अखिल भारतीय मान्यता प्राप्त कर ली. देश के कोने-कोने से यात्रियों का यहां आना प्रारंभ हो गया.
(Badrinath Temple 2021 Opening Date)

 नवी शताब्दी के 888 वर्ष में जब गढ़वाल के चांदपुर गढ़ी में भानु प्रताप राजा थे, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि राजस्थान/ गुजरात की धारानगरी के शक्ति संपन्न पंवार वंशीय राजकुमार कनकपाल भगवान बद्रीश की यात्रा को आ रहे हैं. कत्यूरी शासकों के विरुद्ध शक्ति प्राप्त करने के लिए, उनके राजकीय अतिथ्य के लिए राजा भानु प्रताप ने अपना दल उनके स्वागत को हरिद्वार भेजा.

चांदपुर गढ़ी के राजा के राजकीय आतिथ्य में राजकुमार कनक पाल की यात्रा प्रारंभ हुई. कनक पाल एक धर्मनिष्ठ राजकुमार थे. बद्रीनाथ में उनके द्वारा भगवान बद्रीनाथ से संवाद स्थापित किया तब से वह बोलन्दा बद्री कहलाए, वापसी में राजा भानु प्रताप ने अपनी एक मात्र पुत्री का पाणिग्रहण कनक पाल के साथ संपन्न किया और उनसे यहीं राज्य करने का आग्रह किया.

कनक पाल ने तब अलग से त्रिहरी अपभ्रंश टिहरी राजवंश की स्थापना की और 1803 तक लगातार न केवल साम्राज्य किया बल्कि साम्राज्य का विस्तार भी किया. टिहरी साम्राज्य सुदूर कुमाऊं तक और दक्षिण में सहारनपुर तक फैल गया.

1803 में गोरखा युद्ध में उसे पराजय का सामना करना पड़ा, तब राजा प्रद्युमन शाह मारे गए. सुदर्शन शाह को सेना ने सकुशल वापस निकाल लिया. 1815 में अंग्रेजों की मदद से सुदर्शन शाह ने गोरखाओं से अपना खोया राज्य वापस ले लिया. लेकिन यहां टिहरी रियासत का विभाजन हुआ पूर्वी गढ़वाल जिसे ब्रिटिश गढ़वाल कहा गया कुमाऊं का भाग हुआ तथा कालसी से पश्चिम का क्षेत्र व देहरादून को संधि द्वारा अंग्रेजों को दे दिया. इस विभाजन से बोलन्दा बद्री का बद्रीनाथ से संपर्क कट गया.

 ब्रिटिशकाल सन् 1815 से पूर्व बद्रीनाथ धाम की पूजा अर्चना तथा आर्थिक प्रबंध टिहरी राजा द्वारा स्वयं देखे जाते थे. वह अपने राज्य को बद्रीशचर्या के रूप में ही प्रचारित करते थे. श्री बदरीनाथ धाम के प्रति राजा का यह समर्पण तथा पूर्वज कनकपाल की बद्रीश संवाद परम्परा उन्हें ‘बोलन्दा बद्री” बोलता बद्रीनाथ के रूप में स्थापित करती हैं.

जब यह दुर्गम क्षेत्र था, पुजारी रावल तथा स्थानीय लक्ष्मी मंदिर के पुजारी डिमरी परिवार पर राज प्रसाद की विशेष आर्थिक कृपा रही. 1815 के बाद बद्रीनाथ धाम ब्रिटिश गढ़वाल के अंतर्गत आ गया, तकनीकी रूप से राजा का यहां का प्रबंध करना कठिन हो गया. ब्रिटिश सरकार ने 1810 के बंगाल रेगुलेटिंग एक्ट से इस मंदिर की व्यवस्था प्रारंभ की लेकिन अत्यधिक दूरी होने के कारण यह प्रबंध प्रभावी नहीं रहा. यद्यपि प्रथम ब्रिटिश कमिश्नर विलियम ट्रेल ने मठ मंदिरों की सहायता हेतु सदाव्रत की राजस्व व्यवस्था रखी थी. तब भी मंदिर के स्थानीय पुजारियों को लगातार संकट का सामना करना पडा.

टिहरी के राजा मंदिर के पुजारी रावल और डिमरी संप्रदाय की लगातार मदद करते आ रहे थे. भावनात्मक रूप से मंदिर का प्रबंधन टिहरी राज दरबार से ही संचालित होता रहा.

1860 के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन से खुद को अलग कर लिया उसका लाभ बद्रीनाथ मंदिर को भी प्राप्त हुआ. अब टिहरी राज दरबार पुरानी परंपराओं के अनुसार बद्रीनाथ धाम की पूजा व्यवस्था और आर्थिकी का संचालन करने लगे.

सुदर्शन शाह के बाद प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेंद्र शाह राजा हुए इन सब राजकुमारों ने अपनी राजधानियां अलग-अलग कस्बों में क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेंद्र नगर बसाई लेकिन टिहरी राजवंश का भगवान बद्रीनाथ के प्रति परंपरागत समर्पण और परंपराओं का निर्वहन बना रहा. टिहरी रियासत बद्रीनाथ धाम का धार्मिक एवं आर्थिक प्रबंध लगातार देखती रही.
(Badrinath Temple 2021 Opening Date)

मंदिर का आर्थिक संकट

1823 में अपनी रिपोर्ट में ट्रेल बद्रीनाथ मंदिर की व्यवस्था हेतु कुमाऊं के 226 गांव को मंदिर को उधार देने की बात करते हैं. लेकिन फिर भी जब 1924 में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा. बद्रीनाथ धाम में यात्रियों की संख्या बहुत न्यून हो गई. तो रावल को भोजन का संकट खड़ा हो गया कोई सरकारी मदद नही थी. रावल ने पूजा अर्चना छोड़ वापस केरल जाने की धमकी दे दी. तब पंडित घनश्याम डिमरी के नेतृत्व में स्थानीय पंडा समाज ने अंग्रेजों से बद्रीनाथ धाम का प्रबंध वापस टिहरी रियासत को करने की मांग की. तब से राजा ने प्रतिवर्ष ₹5000 की आर्थिक सहायता बद्रीनाथ धाम मंदिर को देना प्रारंभ की. 1928 में टिहरी में हिंदू एडॉर्मेंट कमेटी का गठन कर बद्रीनाथ मंदिर का प्रबंध देखा जाना प्रारंभ किया.

इस तंग आर्थिकी और जन दबाव का परिणाम यह हुआ पौड़ी के एक्सीलेंसी माल्कम हाल ने 6 सितंबर 1932 को बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक आर्थिक प्रबंध टिहरी राज दरबार को सुपुर्द करने का पत्र गवर्नर संयुक्त प्रांत को लिखा. जो स्वीकार कर लिया गया और बद्रीनाथ धाम का आर्थिक एवं धार्मिक प्रबंध पूर्ववत् टिहरी राजा को सौंप दिया गया. यहां बद्रीनाथ रिहाइश के सिविल अधिकार टिहरी राजा को नहीं दिए गए.
(Badrinath Temple 2021 Opening Date)

1948 के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बद्रीनाथ धाम का प्रबंध स्वयं अपने हाथ में लिया लेकिन बद्रीनाथ मंदिर के धार्मिक प्रबंध, पूजा मुहूर्त और रावल की नियुक्ति के संबंध में टिहरी रियासत को प्राप्त अधिकारों को पूर्ववत संरक्षित रखा.

1939 के मंदिर समिति नियम से “बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति” का गठन किया गया. अब चार धाम देवस्थानम प्रबंध बोर्ड बन जाने के बाद बद्रीनाथ धाम की व्यवस्था कुछ नए रूप में देखने को मिलेगी लेकिन टिहरी राजवंश की परंपराएं बरकरार रहेंगी.

बद्रीनाथ धाम में टिहरी रियासत की परम्परा

बद्रीनाथ धाम के शीतकालीन कपाट बंद हो जाने के बाद प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन राजमहल नरेंद्र नगर में राजपुरोहित संपूर्णानंद जोशी और राम प्रसाद उनियाल सरस्वती की पूजा अर्चना करने के बाद शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं. इसी दिन बद्रीनाथ मंदिर की पूजा अर्चना के लिए “गाड़ू घड़ा कलश” अर्थात तिल का तेल निकालने का मुहूर्त भी निकाला जाता है. बद्रीनाथ मंदिर समिति बसंत पंचमी के दिन इस कलश को राजमहल को सौंपती है.  
(Badrinath Temple 2021 Opening Date)

इस वर्ष 2021 में कपाट खुलने का मुहूर्त 18 मई प्रातः 4:15 बजे का तय किया गया है. साथ ही गाड़ू घड़ा कलश के लिए मुहूर्त 29 अप्रैल का तय है.

क्या है गाड़ू घड़ा कलश

महारानी तथा राजपरिवार व रियासत की लगभग सौ सुहागन महिलाओं के द्वारा सिल बट्टे पर पीसकर तिल का तेल निकाला जाता है. जिसे 25.5 किलो के घड़े में भरकर मंदिर समिति को सौंपा जाता है. महल में निकाले गए इस तिल के तेल से ही भगवान के विग्रह रूप में लेप भी किया जाता है. यह यात्रा राजमहल से बद्रीनाथ तक 7 दिन में पूरी होती है. इसे गाड़ू घड़ा कलश यात्रा कहते हैं.

नौटियाल हैं राजा के प्रतिनिधि

बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने में पहले राजा स्वयं मौजूद रहते थे लेकिन समय के साथ उनकी उपस्थिति कठिन हुई तो चांदपुर गढ़ी के पुरोहित परिवार नौटी जनपद चमोली के नौटियाल परिवार जिसमें वर्तमान में शशि भूषण नौटियाल, कल्याण प्रसाद नौटियाल और हर्षवर्धन नौटियाल हैं. बारी-बारी बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोलने में उपस्थित रहते हैं धार्मिक प्रबंधों की निगरानी करते हैं.

रावल की नियुक्ति

अब हालांकि रावल मंदिर समिति के कर्मचारी होते हैं लेकिन परंपरा से टिहरी के राजा रावल के परामर्श से उप रावल की नियुक्ति करते हैं. उप रावल ही रावल का उत्तराधिकारी होता है. रावल को हटा देने का अधिकार राजा के पास निहित था. इस परंपरा का वर्तमान में भी निर्वाह किया जा रहा है.

जोशी हैं राजपरिवार के ज्योतिष

राज ज्योतिष संपूर्णानंद जोशी

संपूर्णानंद जोशी उस जोशी परिवार की 16वीं पीढ़ी में हैं जो दरअसल पाटी कुमाऊं के पांडेय है. इनके पूर्वज मेदनीशाह के समय टिहरी राजपरिवार से जुड़ गए, मेदनीशाह गंगा की धारा को मोड़ देने के लिए भी प्रसिद्ध हैं. जोशी की वंश परंपरा में फलित ज्योतिष के आश्चर्यजनक किस्से जुडे़ हैं. जो उनियाल परिवार के साथ मिलकर बद्रीनाथ के कपाट खोलने, बंद करने के मुहूर्त निकालते हैं. वर्तमान में ईश्वरी नम्बूदरीपाद रावल और भुबन उनियाल बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी हैं.
(Badrinath Temple 2021 Opening Date)

प्रमोद साह

हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

2 weeks ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

2 weeks ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago