श्रीमान ‘अ’ इन दिनों काफी मुश्किल में रहते हैं. उनकी कोई सुनता ही नहीं. सब उन्हें डांट देते हैं. श्रीमान ‘अ’ हर बार तय करते हैं कि न अब और पंगे नहीं लेंगे, कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे जिससे उनको डांट पड़े, श्रीमती ‘आ’ तो उन्हें कबसे कह रही हैं कि ‘मियां आप चुप नहीं रह सकते. साहित्य के पाठक हैं, तो किताबें खरीदिये, पढ़िए, बहुत मन करे तो एक चिठ्ठी लिखकर पाठक के पत्रों में छपकर इतरा लीजिये, मुंहजोरी करने की क्या जरूरत.’ लेकिन श्रीमान ‘अ’ सिर्फ पाठक तो हैं नहीं, वो हैं सह्रदय पाठक, बड़े गहरे उतरे हुए. उन्होंने विश्व के तमाम क्लासिक लिटरेचर से लेकर भारत की तमाम हिंदी से इतर भाषाओं का साहित्य भी खूब पढ़ा है.
असल में उन्हें कई बार लगता है कि उनका यह जन्म सिर्फ पाठक बनने के लिए ही हुआ है. उन्हें पढने में इतना मजा आता है कि जिन्दगी के तमाम जरूरी काम वो साहित्य के रस का आस्वादन करते हुए ही करते हैं. हर मौके के लिए उनके पास किसी कहानी का कोई हिस्सा, किसी कविता की कोई लाइन होती ही है. लेकिन श्रीमान ‘अ’ को आजकल एक और बीमारी लग गयी है अब वो लेखकों से बात भी करना चाहते हैं. उन्हें बताना चाहते हैं कि कहाँ उनसे चूक हो गयी और कहाँ बात बनते बनते रह गयी. लेकिन अपने हिंदी के लेखकों के आत्ममुग्धता के तेज़ के आगे बेचारे श्रीमान ‘अ’ टिक नहीं पा रहे. उनकी आँखें चुंधिया जाती हैं. वो सोचते हैं कि जिस लेखक/लेखिका को पढ़ते हुए एक रोंया न हिला, एक बार आँख नम न हुई कोई बवंडर न उठा, उसके व्यक्तित्व का ऐसा तेज़?
ऐसा नहीं कि श्रीमान ‘अ’ को सिर्फ अपने लेखकों से शिकायतें ही हैं, कई लेखक उनके बड़े प्रिय भी हैं. लेकिन लेखकों से मिलने के उनके अनुभव लगभग उदास करने वाले ही हैं. हालाँकि श्रीमान ‘अ’ अब उदास नहीं होते. श्रीमान ‘अ’ ने कुछ किस्से यूँ सुनाये, एक बार मैं अपने प्रिय लेखक से मिलने गया, लेखक ने भी भाव दिया. बड़े मन से सुना कि मुझे कौन-कौन सी कहानियां पसंद हैं, उनमें क्या पसंद हैं, उन्होंने नापसंद के बारे में नहीं पूछा. श्रीमान ‘अ’ देर तक उनकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ते रहे. चलते समय लेखक महोदय ने कहा कि क्या आपने जो कुछ भी मुझसे अभी कहा इसे फेसबुक पर लिखकर मुझे टैग कर देंगे. श्रीमान ‘अ’ लौटते समय यह सोच रहे थे कि लेखक के लिए स्वयं यह जानना महत्वपूर्ण है कि उसके पाठक की प्रतिक्रिया क्या है या यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लोगों को यह पता चला कि कोई पाठक किस कदर उनका प्रशंसक है. श्रीमन ‘अ’ ने कुछ भी लिखकर टैग नहीं किया. न साथ में खींची सेल्फी ही लगायी. लेखक महोदय ने काफी इन्तजार किया, एक दो बार श्रीमान ‘अ’ की पोस्ट को लाइक करने का एहसान करते हुए याद भी दिलाया.
अगली बार जब फिर वही लेखक नयी रचना पढने के बाद लेखक से मिलने पहुंचे तो लेखक कुछ और बड़े लेखकों से घिरे हुए थे और उन्होंने श्रीमान ‘अ’ को कुछ इस तरह इग्नोर किया जैसे कभी मिले ही न हों. बल्कि उस उपेक्षा में यह भाव भी था कि तुम क्या मेरी प्रशंसा करते हो ये देखो अमुक बड़े लेखकों की प्रशंसाएं हासिल हैं मुझे. और इस तरह श्रीमान ‘अ’ उस लेखक की दुनिया से विदा हुए.
एक बार श्रीमान ‘अ’ ने एक बड़े लेखक के विचारों से अपनी असहमति जताई तो उन्हें पहले तो इग्नोर किया गया और बाद में यह कहकर खदेड़ा गया कि अपनी हैसियत देखो, मुझसे असहमत होते हो. मैं तुम्हारा खुदा हूँ. तुम सिर्फ सजदा कर सकते हो.
कुछ लेखक ऐसे भी मिले श्रीमान ‘अ’ को जिन्होंने विन्रमता के चोले ओढे हुए थे. उन्होंने आगे बढ़कर श्रीमान ‘अ’ को गले से लगाया, उनकी बात को ध्यान से सुना भी, सर आँखों पर बिठाया भी और एक समारोह में नशे में धुत होकर उगल दिया, इन जैसे टूटपुन्जियों को रखना पढ़ता है खलीते में, ये अपनी मार्केटिंग करते हैं. श्रीमान ‘अ’ उस समारोह में थे और उन्होंने यह सुन लिया तबसे टूटे दिल के टुकड़े लिए घूम रहे हैं.
श्रीमान ‘अ’ ने अब सोचा है कि सिर्फ पाठक बनने से नहीं चलेगा, पाठकों की किसी को कोई जरूरत नहीं है. पाठक की न तो कोई आवाज है न उसके लिए कोई स्पेस इसलिए अब वो भी लेखक बनेंगे. दुनिया भर की इतनी किताबें पढ़ रखी हैं कि दो चार किताबें तो चुटकी बजाते लिख देंगे श्रीमान ‘अ’. और पैसे की कमी तो है नहीं सो किसी भी प्रकाशक को साधना कौन सा मुश्किल हुआ भला? इस तरह एक और पाठक लेखक में तब्दील हो गया.
श्रीमान ‘अ’ ने अपने एक रिश्तेदार की मदद से किसी अकादमी में भी जुगाड़ लगा लिया है. अब उलटी गंगा बहनी शुरू हो गयी है. श्रीमान ‘अ’ और श्रीमती ‘आ’ दोनों गंगा की उलटी धार देखकर खूब हँसते हैं.
उधर लेखकों की दुनिया में तालियों, पुरस्कारों, माला शॉल का बाज़ार खूब सजा हुआ है और पाठकों का टोटा लगातार बना हुआ है.
लोकप्रिय कवयित्री, अनुवादक, एवं पत्रकार प्रतिभा कटियार अनेक समाचार पत्रों में कार्य कर चुकी हैं. फिलहाल देहरादून में अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन में काम करती हैं.
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