यात्रा पर्यटन

अल्मोड़ा से केदारनाथ की एक दिलचस्प यात्रा

7 अक्टूबर 2019 को मैं आपना कैंप खत्म कर ऋषिकेश से अल्मोड़ा के लिए निकल रहा था. कैंप से निकलने तक मेरी यात्रा का रास्ता जो तय था वो ऋषिकेश से हरिद्वार होते हुए अल्मोड़ा आने का था पर कैंप से मुख्य रोड तक आने में न जाने क्या ख्याल आया कि मैंने पहाड़ के रास्ते जाने का तय कर लिया था.
(Kedarnath Travelog)

अभी कुछ ही दूर पहुंचा था तो देखा की जाम लगा हुवा है. ऑलवैदर रोड बनाने की वजह से आज कल ये जाम लगना सामान्य बात थी. दिल में आया आज तो बाबा लेट होना तय है तभी देखा आर्मी की एक गाड़ी आगे रुकी हुयी है जिस से दो जवान उतर कर जे सी बी के ड्राईवर से बात कर रहे थे और देखते ही देखते जाम खुल गया. तब दिमाग मैं एक आईडिया आया की अगर जाम मैं नहीं फसना है तो आर्मी की गाड़ी से आगे रहना है.

फिर क्या था रास्ते में जगह-जगह बार बार जाम लगता आर्मी के जवान आते जाम खुलता. ये क्रम चलता रहा और लगभग 2 बजे मैं रुद्रप्रयाग पहुँच गया. अचानक उस बोर्ड पर नजर पड़ी जिस पर लिखा था गौरी कुंड 76 किलोमीटर. मानो दिल और दिमाग ने एक संग बोला चलो केदारनाथ और क्या था मैं चल पड़ा, बाबा के दर की ओर.
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अब न रात के ठिकाने का पता था न खाने का और भूख भी लग आई थी क्योंकि आज दो ब्रेड के अलावा कुछ भी नहीं खाया था. अगस्त मुनि से कुछ ही दूर पहुचा था तो एक ढाबा दिखा सोचा कुछ खा लेता हूँ. मैंने एक मैगी और दो चाय के लिए बोला. हमेशा की तरह दो चाय एक साथ.

पहली चाय हाथ मैं ही थी कि तभी ख्याल आया डॉ. कपिल गर्ग का जो अभी कुछ दिन पहले केदारनाथ से आये थे. डॉ. साहब यहाँ मेडिकल ऑफिसर की ड्यूटी कर के लौटे थे. सोचा उनसे मार्गदर्शन लिया जाये. फोन लगाया और दूसरी ओर से वही जोशीली आवाज सुनने को मिली सर ने कुछ नम्बर दिए और मार्गदर्शन किया. (Kedarnath Travelog)

डॉ.साहब के अनुसार मुझे सोनप्रयाग या पाटा मैं रुकना था. पेट पूजा कर मैं आगे चल पड़ा था अब टाइम भी कम था और जाना भी दूर था. चलते-चलते मैं गुप्तकाशी पहुँचा. तभी सामने पच्चीस साल का एक लड़का गाड़ी रोकने का इशारा करते-करते मेरे सामने आ गया और लिफ्ट मागने लगा. मैंने मना करते करते भी उसे लिफ्ट दे दी और बातें शुरू हो गयी. हम दोनों की बातो में पता चला की वह लड़का मनोज है जो केदारनाथ के रास्ते में घोड़ा चलता है और मनोज ने ही मुझे बायोमेट्रिक पंजीकरण के बारे मैं भी बताया.

अब हम सोनप्रयाग पहुँच गए थे. पहुंचते ही एक पुलिस वाले ने मुझे रोक दिया और बोला की मैं आगे नहीं जा सकता. मैं 5 किलोमीटर आगे गोरी कुंड तक जाना चहता था. गाड़ी पार्किंग मैं लगा कर मैंने बायोमेट्रिक पंजीकरण कराया और अपना एक्स्ट्रा सामन लॉकर में रख कर मैं लोकल टेक्सी से गोरीकुंड के लिए निकल गया और मनोज वापस चला गया. उसने बताया की उसे पीछे जाना है.
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गोरीकुंड आने तक 5 बज चुके थे और 5 बजे गेट भी बंद हो जाता था. यहाँ से 21 किलोमीटर पैदल यात्रा थी तो मैंने सोचा आज जितने आगे निकल जाऊं उतना अच्छा है इसलिए मैं तेजी से आगे बढ़ा गेट पर पुलिस वाले भाई से थोड़ी बाते कर मैं आगे निकल गया. सोचा था कि आज जितने आगे निकल जाऊं उतना अच्छा है फिर कही भी किसी भी ढाबे मैं रुक जाऊँगा. अभी कुछ ही दूर चला था कि सब लोग नीचे को आते हुए दिख रहे थे. तभी दो लोग दिखे जो मंदिर को जा रहे थे उन से बात की तो पता चला की वो टिहरी के रहने वाले है और उन्होंने बताया की वो लोग मंदिर ही जायेंगे. ये लोग पहले भी जा चुके थे तो मैंने सोचा मैं क्यों नहीं.

तो तय हो गया कि आज जाना कहाँ है. अभी कुछ आगे चला था कुछ दोस्त मंदिर को जाते हुए मिले. उनसे बातें करते-करते मैं उनके संग रामबाड़ा पहुंच गया. 2013 की आपदा से पहले यहाँ यात्रा का स्टॉप होता था आज यहाँ पर कुछ भी नहीं था.

अब थोड़ा थकान होने लगी क्योंकि 216 किलोमीटर की बाइक यात्रा के बाद अब 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा हो चुकी थी और ये लड़के भी कुछ हल्के चल रहे थे मैंने फिर अकेले आगे बढ़ने का तय किया. जैसे ही अकेले आगे बढ़ा तो देखा रास्ते के रैलिंग पे एक लाठी पड़ी थी. मानो मेरा इन्तजार कर रही हो मैं उन लड़कों को छोड़ लाठी उठाकर आगे निकल गया. कुछ ही दूर चला था कि बारिश की बूंदे गिरने लगी मानो लगा बाबा ने बोला हो चाय का समय हुआ है. मैं भी एक छोटी सी दुकान पर चाय पी और बारिश रुकने का इन्तजार करने लगा कुछ देर नें बारिश बंद हुई.

मैं और तरोताजा हो गया था और अँधेरा भी रास्ते में ऊपर की ओर को आने लगा था नीचे से ऊपर की ओर आने वाला तो कोई नहीं था पर जो भी मन्दिर से नीचे की ओर आता जय भोले बोलता जाता और एक नयी ऊर्जा का संचार होता. मुझे भीमबली पहुँचने में 8 बज चुके थे और मुझे भूख भी लग चुकी थी और सब दुकाने भी बन्द हो चुकी थी अब क्या करूं समझ मैं नहीं आ रहा था. बस एक ही रास्ता था आगे बढ़ते जाने का और मैं चलते-चलते छोटी लिनची पहुँचा. यहाँ भी सारी दुकाने बंद थी और मैं आगे बढ़ गया. अब मैं और मेरी लाठी बड़ी लिनची पहुंच गए. यहाँ भी सब बंद था आगे बढ़ते हुए मैंने एक दुकान खुली देखी तो पूछा भाई जी चाय मैगी मिलेगी क्या? जवाब मिला हां. मैंने बोला बना दो और हां चाय ‘दो’ बनाइयेगा भाई जी. उसने चाय के लिए पानी रखा ही था उसने बोला भाई जी खाना खा लो दाल दिन की है रोटी अभी बनायीं है मैंने मजाक के अन्दाज पूछा चावल भी है तो जवाब मिला हां, दिन के है. मैं बोला ठीक है खिला दो शानदार डिनर कर ही रहा था तो उसने ने पूछा कहा जाओगे भाई जी? मन्दिर. मेरा जवाब सुन के वो बोले अभी कहाँ जाओगे,भाई जी रात को यही रुक जाओ सुबह जल्दी यही से निकल जाना. आज कल यहाँ भालू ने बहुत परेशान कर रखा है तभी तो सारी दुकानें जल्दी बंद हो जा रही है.
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पर मुझ पर तो मन्दिर पहुंचने का फितूर सवार था. मैंने भाई जी को दोनों हाथ जोड़ कर धन्यवाद बोला और निकल गया अपनी लाठी पकड़ के आगे को. समय भी लगभग 9.30 हो गया होगा. अभी कुछ ही देर चला था की रास्ते का अँधेरा मन मैं अलग-अलग ख्याल ला रहा था. तभी जोरदार पठाखे की आवाज आनी शुरू हो गयी नीचे बड़ी लिनची की ओर से हो-हल्ला और थाली बजने की भी आवाजें आ रही थी अब मुझे भालू वाली बात पर यकीन हो रहा था. पर अब आगे जाने के अलावा कोई रास्त्ता भी नहीं था. आगे एक सोलर लाइट की रोशनी मैं रुक के थोडा सुस्ताने लगा और इधर-उधर देखने लगा तभी मेरी नजर एक काले रंग के कुत्ते पर पड़ी जो नीचे से ऊपर को आ रहा था. लगा इसे साथ ले के चलता हूँ साथ भी हो जायेगा मैं उसे बुलाने के लिए सीटी बजाने ही वाला था की मुझे अपनी आखों देखि पे यकीं नहीं हुआ ये सच में एक भालू था. मैंने हाथ की लाठी उठाई और दूसरी ओर की लगी हुई रैलिंग को बजाता हुआ मैं मन ही मन में जय भोले की बोलते हुए मन्दिर को चलता गया. अब यहाँ से बेस कैंप 4 किलोमीटर और आगे था पर ये चार किलोमीटर कब निकल गए पता ही नहीं चला. अभी बेस कैंप पहुचा ही था की एक आवाज आई रूम चाहिए क्या?

लगभग रात के 10.35 पर मैं रूम के अन्दर फ्रेश हो कर, अपने बिस्तर पर था और न जाने कब आख लग गयी! अगले दिन मेरी आंख खुली तो सुबह 4.10 मिनट हुए थे, मैं फटाफट उठा और नहा धोकर तैयार हो 4.50 मन्दिर की ओर निकल गया.

लाइन में खड़े होकर मन्दिर खुलने का इंतजार कर रहा था. भोले के जयकारे और दर्शन की उत्सुकता के कारण शरीर और मन में हर पल एक नयी उमंग का संचार होता था. द्वार खुले और पूरा वातावरण भोले की जयकरों से गूँज उठा मन्दिर क अन्दर की भीड़ देख के मन उदास होने लगा. सोचा इतनी भीड़ मैं दर्शन हो भी पाएंगे क्या? उस भीड़ से मैं जूझता हुआ मैं अन्दर जा ही रहा था तभी एक बार फिर आवाज आई — पूजा करनी है क्या? इससे पहले की मैं कुछ पूछ या बोल पाता पुजारी जी ने न जाने कैसे मेरा हाथ पकड़ के मुझे बाबा केदार नाथ के समक्ष बैठा दिया. 8 अक्टूबर 2019 दशहरे का दिन और इस दर्शन व पूजा का सौभाग्य.
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सच में बाबा की विशेष कृपादृष्टि का आशीर्वाद आज मुझ पर था. बाहर निकलने के बाद मैं भीमशिला के पास बैठा. मैं अभी केदारनाथ पर्वत को निहार ही रहा था तभी मुझे अपने बड़े भाई से बोले हुये अपने शब्द याद आ रहे थे कि “दा देख ना एक दिन अचानक और अकेले ही मैं केदारनाथ पहुँच जाऊंगा लेकिन न जाने बाबा कब बुलाएंगे” और अब शायद बाबा के बुलाने पर ही मैं यहाँ आया. तभी तो एक के बाद एक मदद मिली. उन सभी का मन ही मन फिर से धन्यवाद करते हुए बाबा के आगे दोनों हाथ जोड़कर सिर झुका कर और अगली बार फिर से बुलाने के लिए प्रार्थना की और इस यादगार यात्रा की यादों को मन में संजोते हुए वापस अल्मोड़ा के लिए निकल पड़ा. मैं फिर बोलूगा की इस यात्रा मै जो भी मुझे अनुभव हुआ मानो वो सब भोले की ही मर्जी थी.
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पर्वतारोहण के क्षेत्र से जुड़े विनोद चन्द्र भट्ट अल्मोड़ा के रहने वाले हैं.

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यह भी पढ़ें: तनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्ट

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