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5 Comments

  1. जय प्रकाश

    पूरे गीत का अच्छा विश्लेषण किया है देवेश जोशी जी ने । शायद होना भी यही चाहिए था ।

  2. नीरज

    मूल गीत में तुकबंदी की गयी है
    और व्यूज के आधार पर गीत की सफलता ये मानक सही नहीं है।
    यूट्यूब में ही कई ऐसे गीत हैं जिनके व्यूज नहीं उन्हें मसालेदार बीट्स में तला भूना नही गया। लेकिन वही लोकगीत हैं। ये सच है कि गीत अब बदलेंगे क्योंकि समय और परिवेश बदला है और बदलेगा। पर कोई गायक कि सफलता इसमें है कि वो अपना मौलिक गीत लिखे गाये। लोक का आदमी तो अनपढ़ था पर उसके अहसास बड़े थे। अब पढे लिखे भौत हैं लेकिन अहसासों की अभिव्यक्ति के लिए हम अपने पुराने लोकगीतों के आगे हाथ फैलाये खड़े हैं।

  3. राजेश कुमार बिनवाल

    आदरणीय जोशी जी प्रणाम। सामयिक विषय पर इस समय के बहुत ही लोकप्रिय झोड़े पर आपकी समीक्षा बहुत सुन्दर है। इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आप बधाई के पात्र हैं। आप जैसे महान लेखक एवं समीक्षक के लेखन पर टिप्पणी करना मेरे लिए सम्भव नहीं है तथापि कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।
    समीक्षा में एक स्थान पर आपने घट शब्द को अनुपयोगी अथवा अप्रासंगिक जैसा कुछ बताया गया है। मेरी समझ में “तू घट मैं बान ” का अर्थ घट = पनचक्की और बान = पनचक्की को पानी ले जाने वाली नहर है। घट और बान का अलग-अलग कोई अस्तित्व नहीं है।
    बाकी जैसा आपने स्वयं ही कहा है कि लोकगीत बहुत अर्थपूर्ण नहीं है जिस में तुकबंदी ही अधिक है।
    सादर प्रणाम।

  4. Prem mohan tiwari

    यहां पर घट(पंचक्की) में बांन ( गूल) से अर्थ है कि जिस प्रकार से पनचक्की (जो घट है ) उसमें पानी से घट चलता है और बिना पानी के घट नहीं चल सकता है उसी प्रकार से उसका वर्णन उसमें किया गया है। जिस प्रकार के पानी के बिना घट नहीं चल सकता है उसी प्रकार से नायिका भी अपने नायक के बिना पूर्ण नहीं हो सकती है।

  5. Anshul Kumar Dobhal

    बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया है सर गीत का !
    बहुत बहुत साधुवाद !
    थोड़ा “भूली भुली फाम”
    वाली पंक्ति का अर्थ भी बता दीजिए।
    🙏

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