‘बेथ शैलोम’ संस्था की संस्थापक मरीना स्मिथ की पिछले बरस यानी दो हज़ार बाईस के जून महीने में मृत्यु हो गयी. मरीना स्मिथ पिछले कई बरसों से होलोकॉस्ट में ज़िंदा बच गए लोगों के साथ काम करती रही थीं. उनकी एक अजीब सी इच्छा थी कि वो अपने अंतिम संस्कार के दिन अपने साथियों, अपने चाहने वालों से बात कर सकें. क्या ये कहना सही होगा कि उनकी ये इच्छा पूरी हुई. मरणोपरांत! दरअसल ये संभव हुआ एक एआई बेस्ड होलोग्राफिक वीडियो टूल से. मरीना जुलाई में अपने फ्यूनरल के दिन अपने लोगों के साथ एक `होलोग्राम’ के रूप में उपस्थित रहीं. `स्टोरीफाइल’ नाम के इस एआई टूल के ज़रिये लोगों ने मरीना स्मिथ के विर्चुअल प्रोटोटाइप को न केवल सुना बल्कि उसके साथ बाकायदा बातचीत भी की. रोमांचकारी अनुभव! वैसे `मैं’ अगर उस फ्यूनरल में शामिल रहता तो हद से हद होलोकॉस्ट और होलोग्राम के बीच एक मरी हुई कविता पेश कर देता. (AI Fourth Industrial Revolution)
हालांकि मैं जानता हूं कि ऐसे ही नहीं एआई को चौथी औद्योगिक क्रान्ति कहा जा रहा है. साल दो हज़ार इक्कीस में साढ़े तिरानबे बिलियन डॉलर एआई तकनीक में निवेश किया गया है जो साल अगले साल, यानी चौबीस तक, पांच सौ बिलियन से आगे निकल जाएगा. कितने गुना? एक आंकड़ा ये भी कहता है कि तीस का दशक ख़त्म होते न होते एआई तकनीक का वैश्विक बाज़ार पंद्रह ट्रिलियन डॉलर से पार पहुँच चुका होगा. एक ट्रिलियन बराबर एक लाख करोड़ रूपए! कितने शून्य?
सुंदर पिचाई का कहना है कि गूगल एआई टीम का शोध अपने फाइनल स्टेज में है जिसमें तुम्हारे मोबाइल फ़ोन से तुम्हारी आँख के रेटिना स्कैन के ज़रिये आने वाले स्वास्थ्य ख़तरे को भांप कर पिन पॉइंटेड भविष्यवाणी की जा सकेगी. तुम्हारा सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप, हीमोग्लोबिन स्तर, बीएमआई, यहाँ तक कि तुम्हारे धूम्रपान का स्तर सबकुछ स्कैनर पर पर होगा. यानी अगर तुमको हार्ट अटैक आने वाला है तो शरीर में होने वाले बदलाव से तुम्हें अलर्ट मिलेगा जिसपर तुम अग्रिम कार्यवाही कर सकते हो… हियर आई रिमेंबर गोल्डन ऑवर्स रूल इन हार्ट स्ट्रोक्स एंड रीड द पैराग्राफ अगेन.
अमरीका और यूरोप के बड़े अस्पतालों में `ऑटोमेशन स्ट्रोक डिटेक्शन डिवाइस’ यानी हार्ट अटैक को पहले से ही पहचान लेने की तकनीकि क्रांतिकारी तरीके से हार्ट अटैक की दुनिया बदलने जा रही है. एआई की मदद से लगातार मरीज का ब्रेन इमेज तैयार होता रहता है और किसी तरह के ख़तरे के चिह्न बनते ही डॉक्टर के पास अलर्ट चला जाता है. शानदार बात ये है कि इन उपकरणों की प्रोग्रामिंग इतनी विकसित हो चुकी है कि हृदयघात किस तरह का है और ब्लड क्लॉट या ब्लीडिंग की सही-सही लोकेशन क्या है, सारी जानकारी ब्रेन इमेज की मैपिंग के ज़रिये बिल्कुल सटीक होती जा रही है.
दूसरी बीमारियों की पहचान और इलाज में भी आमूलचूल बदलाव के संकेत हैं. डिप्रेशन के तीन चौथाई मरीज़ किसी न किसी संरचनात्मक या मनोवैज्ञानिक किस्म की एक अतिरिक्त बाधा से जूझते हैं जिसकी वजह से व्यवहारात्मक इलाज पूर्णतः कारगर नहीं रह पाता. अब ऑडियो/ वीडियो और टेक्स्ट आधारित चैट बॉट्स की मदद से शानदार तरीके से इस कमी की भरपाई की जा रही है. ऐसे भी एआई बेस्ड (बेस्ड की जगह समर्थित लिखते सरकारी गठबन्धनों की याद आती है, जिन्हें वैज्ञानिक चेतना से उतना ही मतलब रहता है जितना धपाधप रील बनाने वालों को शर्म से) प्रोग्राम हैं जो किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया माइनिंग करते हुए उसके अन्दर पनप रहे आत्महत्या के विचारों की पहचान करते हैं और ज़रूरी चिकत्सीय/ सामाजिक मदद उपलब्ध कराते हैं.
ब्रेन-कम्प्यूटर इंटरफ़ेस पर काम कर रहे डॉक्टर्स की एक टीम ने अनगिनत सूचनाओं से लबरेज़ मष्तिष्क के सर्किट के मॉडल पर ही एक एआई बेस्ड न्यूट्रल नेटवर्क तैयार किया है जो मष्तिष्क से भेजे जाने वाले सिग्नल को डीकोड करके रोबोटिक हाथ/ अंग को ठीक उसी तरह से काम करने के लिए सौंप सकेगा. बनाया जा रहा `थ्रीडी प्रिंटेड लिंब’ आवाज़ पहचानने के साथ-साथ ब्रेन सिग्नल पहचानने और तदनुसार कार्यवाही कर सकने में सक्षम होगा. कृतिम अंगों की दुनिया में एक शानदार और बड़ा बदलाव है. मुझे स्टीफन हॉकिंग याद आ रहे हैं और उनकी वो जादुई कुर्सी.
डिजिटल नर्स, वर्चुअल गर्ल फ्रेंड और सर्जिकल रोबोट्स की तो बात ही क्या करनी. `नेटड्रैगन वेबसॉफ्ट’ नामक चीनी कम्पनी ने म्संग यू नाम के रोबोट को अपना सीईओ बना दिया है जो कंपनी के बारे में सारे महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम है. तकनीकी रूप से भी, वैधानिक अधिकारिता की दृष्टि से भी. भले ही गूगल के ए आई सिस्टम ने किसी अफ्रीकी आदमी को गुरिल्ला समझने की भूल कर दी हो और गूगल को गुरिल्ला, चिम्पाजी और मंकी जैसे शब्द अपने सिस्टम से निकालने पड़े हों, गूगल का PaLM बहुत निश्चित तौर पर यह व्याख्या कर सकता है कि कोई चुटकुला, चुटकुला क्यों है. इसी तरह `पिकटूरेसिपी’ तकनीक का इस्तेमाल करने वाले एआई टूल `Recipe 1M’ या `डेलिश’ के पास एक मिलियन से ज़्यादा रेसेपी और चित्र हैं, मैं खाने का चित्र लगाऊंगा और वो सेकेण्ड के छटांक हिस्से में बता देगा कि ये रेसिपी कौन सी है और कहाँ की है और… और इसी तरह मेरी मौखिक मुद्राओं से यह जानकारी निकाली जा सकती है कि मैं किस राजनैतिक दल को समर्थन दे सकता हूं! इसमें मेरे मुंह का कोई ख़ास दोष नहीं है. ये मज़ाक नहीं! सच है. ये दूसरी बात है कि दल हमारे साथ मज़ाक करते रहते हैं.
वाक एक जापानी कम्पनी है जो एआई के ज़रिये मुख मुद्राओं और बॉडी लैंग्वेज का आंकलन करके किसी दुकानदार को ये अलर्ट भेज सकती है कि अभी-अभी दुकान में घुसने वाला पीत वस्त्र धारी सेलफोन चुराकर भाग सकता है. नहीं, मंदिरों के बाहर अभी लठैतों की ज़रुरत है. वहां चप्पलों की संख्या भक्तों की संख्या से बहुत ज़्यादा है न. जासूसी करने की जगहें और भी हैं. जैसे `ARTUµ’ जासूरी यान रडार ऑपरेटर, को-पायलट और मिशन प्लानर यानी मल्टी टास्क एआई सिस्टम है जिसका इस्तेमाल अमरीकी एयर फ़ोर्स करना शुरू कर चुकी है. सामरिक नेविगेशन में ये एक बड़ी सफलता कही जाएगी.
बजरिए एआई ये जानना बहुत रोचक है कि कनाडा की एक स्टार्टअप फर्म `ब्लूडॉट’ ने अपने क्लाइंट्स को डब्लूएचओ और सीडीसी से पहले ही वुहान के वायरस के बारे में सचेत करना शुरू कर दिया था. इस एआई बेस्ड अद्भुद अर्ली वार्निंग सिस्टम में इस कंपनी ने डाटा पैटर्न के आधार पर वुहान में किसी बड़ी बीमारी का संकेत दिया और उसके बाद फ्लाइट पैटर्न के ज़रिये ये बताने में भी कामयाब रही कि अगले दिनों में कोविड 19 का फैलाव किस दिशा में और किन देशों में होगा. कोविड 19 के बाद से वार्निंग सिस्टम हर जगह बेहतर हुए हैं. जैसे डेनमार्क में इस तकनीक के सहारे ये बताना आसान हो गया है कि मरीज़ को वेंटिलेटर की ज़रुरत कब, कितने घंटों बाद पड़ने वाली है. ए आई की दुनिया का एक सुंदर कथन है– भविष्यवाणी करना जादू नहीं बौद्धिकता है, कृत्रिम बौद्धिकता! ये बौद्धिकता जिस एलगोरिदम पर काम करती है उसे सामान्य भाषा में ‘डीप लर्निंग’ कहते हैं.
अगर आप ये कहें कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसा भी आर्टिफिशियल नहीं है क्योंकि ये भी उन तमाम वैज्ञानिक आविष्कारों की तरह है जो एक किस्म से `बायो मिमिक्री’ का हासिल हैं तो मैं क्या कहूँगा? पहले तो यही कि बायो मिमिक्री क्या बला है?
जैविक इकाइयों और प्रक्रियाओं की प्रेरणा से कोई वस्तु, संरचना या प्रणाली का बनना बायो मिमिक्री कहलाता है. यानी जीव जंतुओं की संरचना या उनको खाते पीते चलते फिरते देखकर आविष्कार करना. एआई हमारी आँखों की प्रेरणा से बना है. मनुष्य की देखने की प्रक्रिया को एक आसान तरीके से इस तरह कह सकते हैं कि ये बहुत सी सौपानिक यानी हाय्रार्किकल परतों से मिलकर बनती है. पहली परत को ये ज़िम्मेदारी मिली है कि वो देखी जाने वाली चीज़ के सभी किनारों को पहचान ले, दूसरी परत उसके स्थान और आकार को सुनिश्चित करती है. इसी तरह का एक सामान्यीकरण ये भी कर सकते हैं कि पहली परत रंगों को अलग-अलग पहचानती है और दूसरी या अगली परतें पीछे और आगे तक इस बात की पहचान करती हैं कि देखी जाने वाली चीज़ फूल है या किताब. अगर इस तथ्य का फ्लो चार्ट बनाया जाए तो जो दृष्टिपथ बनेगा वो कुछ ऐसा होगा- पिक्सल- किनारे- घुमाव- संयोजन- फूल/ किताब! एआई जिस `डीप न्यूट्रल नेटवर्क’ पर काम करता है वो भी इनपुट और आउटपुट के बीच ऐसे ही अनगिनत परतों से बनता है. बस कमाल ये है कि ये नेटवर्क मनुष्य की आँख के दृश्य प्रसंस्करण या विजुअल प्रोसेसिंग के पहले मिली सेकंड में बनने वाली परतों और दृष्टिपथों को मिमिक करता है. कितनी स्पीड?
एआई की इस तकनीक का सबसे बड़ा ख़तरा ‘सुपर इंटेलिजेंस’ के रूप में देखा जा रहा है यानी ऐसी व्यवस्था या मशीन जो बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप या सहायता से कोई भी बौद्धिक कार्य कर सके. डॉन टैपस्कॉट जो उद्यमी के साथ-साथ एक तकनीकि विशेषग्य भी हैं, टेड टॉक में कहते हैं कि `आप एक ऐसी मशीन पा सकते हैं जो एक बड़ी विज्ञान कथा की किताब लिख सकती है, या एक ऐसा सिस्टम जो इतना बुद्धिमान है, कि ये जानता हो, कि टियारा पहनकर उछल-कूद कैसे की जाए. हम एक ऐसे विशालकाय स्वयं सिद्ध कम्प्यूटर सिस्टम बनाने की राह पर हैं जो खुद हमसे ज़्यादा स्मार्ट है और जिसके अन्दर हमारी प्रजाति को भी ख़त्म कर देने की क्षमता है.’ लेकिन वो आगे जोड़ते हैं कि ऐसी प्रास्थिति आने से पहले राह में अनगिनत संभावनाशील और शानदार परिदृश्य उपस्थित हो सकते हैं, तो क्यों न इस रास्ते पर चलके देखा जाए. देखा जाए कि एआई की दुनिया किस करवट बैठती है. ‘फ़राज़’ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं.
मगर ठहरो, ए आई-फे आई बाद में देखेंगे, फिलहाल तो मुझे धर्म संस्थापनार्थाय कार्य कर रही संस्था को शांति पुरस्कार से नवाजे जाने के शानदार परिदृश्य का अवलोकन कर अपनी करवट घोषित करनी है. ऑलबीइट इट अपियर्स आर्टिफिशियल, आई एम वेटिंग एन इंटेलिजेंट मूव टू बी कॉल्ड ह्यूमन!
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक प्राचीन शहर जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव भूमंडलीकृत भारत की उस पीढ़ी के लेखकों में शुमार हैं जो साहित्य की विधागत तोड़-फोड़ एवं नव-निर्माण में रचनारत है. गद्य एवं पद्य दोनों ही विधाओं में समान दख़ल रखने वाले अमित की अब तक चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं- बाहर मैं, मैं अंदर (कविता संग्रह), पहला दख़ल (संस्मरण) और गहन है यह अंधकारा (उपन्यास) और कोतवाल का हुक्का (कहानी संग्रह)। सम सामयिक राजनीति, अर्थ-व्यवस्था, समाज, खेल, संगीत, इतिहास जैसे विषयों पर अनेक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं/ ऑनलाइन पोर्टल पर प्रकाशित हैं। भाषा की रवानगी, चुटीलेपन एवं साफ़गोई के लिए जाने जाते हैं. भारतीय पुलिस सेवा में हैं और फ़िलहाल उत्तराखंड के देहरादून में रहते हैं. [email protected]
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