उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरूड तहसील के डंगोली में स्थित मां कोट भ्रामरी का नन्दाष्टमी मेला शनिवार से शुरू हो गया. यह ऐतिहासिक और धार्मिक कोट भ्रामरी व नंदाष्टमी का पौराणिक मेला है.
जखेड़ा के परिहार वंशज के लोग अपने गांव के देवी मंदिर से ढोल नगाड़ों के साथ पूजा सामग्री लेकर कोट भ्रामरी मंदिर में पहुंचे. उन्होंने मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना की गई. पूजा अर्चना के साथ मेले का शुभारंभ हुआ. इस मौके पर महिलाओं ने कलश यात्रा निकाली और भजन कीर्तन किए.
मां नंदा-सुनंदा और भ्रामरी के इस मंदिर में वर्ष में दो बार विशाल मेला लगता है. चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को भ्रामरी देवी की पूजा अर्चना के साथ मेला लगता है. करीब 2500 वर्ष ईसा पूर्व से सातवीं ईसवी तक यहां पर कत्यूरी राजाओं का शासन रहा. इन्हीं कत्यूरी राजाओं ने कत्यूर घाटी के महत्वपूर्ण स्थानों को किले के रुप में स्थापित किया था. वर्तमान कोट मंदिर को भी किले का रुप दिया गया था.
यहाँ नंदा शक्ति स्वरूप में स्थित मानी जाती है. और माँ भ्रामरी मूर्ति स्वरूप में. क्षेत्र के लोगों की ऐसी श्रद्धा है कि घर-परिवार की हर छोटी-बड़ी खुशी में माँ के मंदिर जा पूजा-अर्चना जरूर की जाती है. प्राकृतिक आपदाओं, अतिवृष्टि – अनावृष्टि को भी माँ के कोप का कारण माना जाता रहा है. साठ के दशक तक वाहनों की आवाजाही गरुड़ तक ही थी. तब कोट के मेले स्थानीय उत्पादों व तराई-मैदान से आये सामान की बिक्री के केन्द्र भी हुआ करते थे. मेले का वह व्यावसायिक स्वरूप अभी भी बड़े स्तर पर बना हुआ है, हालाँकि उसका रूप अवश्य बदला है.
कोट भ्रामरी मंदिर की स्थापना के सम्बंध में कहा जाता है कि कत्यूर क्षेत्र में अरुण नामक दैत्य का बेहद आतंक था. उसी दौरान कत्यूरी राजा आसंति देव और बासंति देव कत्यूर को राजधानी बनाने की सोच रहे थे. दैत्य से पीड़ित जनता ने तब राजाओं से अपनी व्यथा कहीं. कत्यूरी राजाओं का दैत्य से भयंकर युद्ध हो गया. लेकिन राजाओं को पराजय का मुंह देखना पड़ा.
कहा जाता है कि तब राजाओं ने भगवती मां से दैत्य के आतंक से निजात दिलाए जाने की प्रार्थना की. राजाओं द्वारा विधि-विधान से पूजा अर्चना करने के बाद मैया भंवरे के रुप में प्रकट हुई तथा मैया ने अरुण नामक दैत्य का वध कर दिया. तब कहीं जाकर जनता को दैत्य के आतंक से मुक्ति मिली. मैया की इसी अनुकंपा के कारण ही मैया की भंवर के रुप में पूजा होती है.
मेले से एक रोज पूर्व सप्तमी के दिन प्रातःकाल देवी नर बदन में अवतरित हो कर अपने गण छुरमुल के साथ श्रद्धालुओं के जयकारों और बाजे-गाजे के बीच मंदिर से लगभग दस किमी दूर स्थित मवाई-वज्यूला गाँव जाती है. यहाँ केलाणी (केलावनी) से प्रति वर्ष देवी की प्रतिमा निर्माण हेतु कदली वृक्ष लाने की परम्परा है.
नंदादेवी राजजात में भी कोटभ्रामरी का उल्लेख मिलता है. वर्ष 1925 तक की राजजात में कोटभ्रामरी से नंदा की कटार को छंतोली से मिलाने के प्रमाण मिलते हैं, जिसे वर्ष 2000 की राजजात में 75 वर्ष बाद पुनर्जीवित किया गया था.
मेला कमेटी के सचिव रंजीत डसीला व सांस्कृतिक प्रभारी नंदन सिंह अल्मियां ने बताया कि कदली वृक्ष लेने ग्रामीण रविवार को सुबह नौ बजे मवई गांव जाएंगे. शाम चार बजे मेले के उद्घाटन केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा करेंगे. उद्घाटन समारोह के विशिष्ट अतिथि विधायक चंदन दास, पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण, जिपं सदस्य शिव सिंह बिष्ट, डीएम रंजना राजगुरु, एसपी मुकेश कुमार होंगे.
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