“हमने कभी सिखाया नहीं, लेकिन हमारा बेटू हमसे ज्यादा मोबाइल के बारे में जानता है” – हर माँ-बाप की नज़र में अपना बच्चा अनूठा ही होता है. अद्वितीय, गजब मेधा वाला होता है. होना भी चाहिए. बच्चे को घर से कॉफिंडेंस मिलना भी चाहिए.
लेकिन बाद में स्थितियाँ पलट जाती हैं. क्लास में नंबर नहीं आ रहे हैं तुम्हारे. तु्म्हारे वश का कुछ नहीं है.
घर-घर की कहानी सीरियल में मगन माँ-बाप उपदेशों में कभी कमी नहीं आने देते. जीवन के रहस्यों से न तो माँ-बाप परिचित कराते हैं, न मास्टर.
अभी अबोध ही है वह, पोर्न से उसका परिचय हो जाता है. जवानी की दहलीज तक भी नहीं पहुँचा है कि नानाविध नशों के बारे में वह जानने लगा है. हाथ बढ़ा नहीं कि पोर्न और नशा उसे सहज उपलब्ध है.
बचपन में जितना प्यार मिलना चाहिए, जितना प्रकृति का सानिध्य, जितनी इंसानी सामूहिकता की ऊष्मा, वह बहुधा नदारद है. पैसा है तो सब कुछ है का पागल बवंडर बहुलांश बच्चों को जिस एहसास-ए-कमतरी में धकेल रहा है, उसकी कोई रेमेडी नहीं.
बच्चों के असामान्य विकास, बच्चों के बीच बढ़ती नशाखोरी पर अभी तक प्राइम-टाइम नहीं आ रहा है, तो हमें पता भी नहीं चल पा रहा है कि ऐसा कुछ समाज में हो रहा है, हमारे ही घर में हो रहा है.
पहले से तमाम किस्म की वर्जनाओं, टुच्ची नैतिकताओं से घिरे बंद समाज में अंदरखाने बहुत कुछ खदबदा रहा है. बच्चों की दुनिया एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रही है.
और, हम कह रहे हैं बलात्कारी को फाँसी दे दो, समस्या सॉल्व हो जाएगी. हम समझदार लोग हैं.
पंतनगर में रहने वाले ललित सती लम्बे समय से अनुवाद कार्य से जुड़े हैं. सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति उल्लेखनीय है. काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.
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