उत्तराखंड राज्य का कुमाऊं मण्डल अपने आप में पौराणिक परंपराओं व समृद्ध संस्कृति की विरासत सहेजे हुए हैं. इस बात का अंदाजा आप कुमाऊं के घरों के प्रवेश द्वार को देखकर ही लगा सकते हैं, जहां द्वार की देहली पर सुशोभित होते हैं, सुंदर लाल रंग में चमकते हुए सफेद रंग से अलंकृत ‘ऐपण.’ (This is how traditional Aipan are made)
ऐपण अर्थात संयम ,कला ,रंग, सुंदरता का विलय.
यूं तो कुमाऊनी लोककला के अंतर्गत भित्ति चित्र, डिकरे, पट्ट चित्र, काष्ठ चित्र, चौकी आदि सम्मिलित हैं, परंतु ऐपण या अल्पना कुमाऊं की प्रमुख लोककला के रूप में प्रचलित है, जिसे कुमाऊं की महिलाएं व बेटियां आज भी जीवंत बनाए हुए हैं. हालांकि इसके स्वरूप में पहले से बहुत अधिक परिवर्तन देखने को मिलता है.
पारंपरिक रूप से ऐपण का निर्माण गेरू, लाल मिट्टी में पिसे हुए चावल के लेप (जिसे बिस्वार भी कहा जाता हैं) से किया जाता था, महिलाएं अपने हाथों से ही विभिन्न प्रकार के प्रतीकात्मक व सुंदर चित्र आरेखित करती थीं. इसमें हाथ की अंगुलियों का भी महत्व माना जाता था. अधिकतर चित्र अनामिका अंगुली से बनाने का प्रावधान था. आधुनिक समय में इसका स्थान लाल और सफेद रंग के केमिकल वाले पेंट से भरे डिब्बों और ब्रश ने ले लिया है.
कुमाऊं मण्डल में ऐपण प्रत्येक धार्मिक एवं मांगलिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. ऐपण का चित्रण तुलसी वृक्ष के पास, पूजास्थली, द्वार पर, विवाह, जनेऊ आदि चौकियों पर किया जाता है. आधुनिक समय में ऐपण का चित्रण विभिन्न प्रकार के सजावटी सामान बनाने में भी किया जा रहा हैं, जो व्यापार की दृष्टि से उपयोगी सिद्ध हो रहा हैं.
ऐपण कला में महिलाएं अपने कलात्मक गुण का प्रदर्शन करते हुए भिन्न–भिन्न प्रकार के आकृति व चित्र अलंकृत करती हैं, जिसमें स्वास्तिक, पुष्प, सूर्य, चंद्रमा, शंख, घंटी आदि प्रमुख हैं.
ऐपण को सुंदर और पारंपरिक चित्रण देने हेतु कुछ तत्व महत्वपूर्ण है. यह तत्व हैं — ज्यूति, बिंदु, बसुधरा और स्वास्तिक.
यह चारों ही तत्व अपने आप में धार्मिक अर्थ और सार लिए हुए हैं, जिनके बिना ऐपण का चित्रण अधूरा माना जाता हैं.
बिंदु अर्थात शून्य. शून्य से ही सृष्टि की रचना मानी जाती है. इस बिंदु (शून्य) में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड निहित हैं. बिंदु का प्रयोग न केवल ऐपण को आकर्षक अपितु सार्थक भी बना देता हैं.
बसुधारा : बसुधारा से तात्पर्य हैं ‘समृद्धि.’ भूमि पूजन में विशेषतः बसुधारा चित्रण होता है, जिसमें विषम संख्याओं में रेखाओं का समूह बनाया जाता है तथा उन समूहों के बीच का स्थान रिक्त रखा जाता है. यह रेखाएं अत्यंत सरल और सारगर्भित प्रतीत होती हैं.
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स्वास्तिक : जो कि कर्मयोग को दर्शाता है. स्वास्तिक सभी देवी देवताओं का प्रतिनिधित्व करता हैं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यदि आप ऐपण में केवल स्वास्तिक का ही चित्रण कर दे तब भी आपके ऐपण सम्पूर्ण माने जाते हैं. स्वास्तिक की चारों दिशाएं मनुष्य को सदैव आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं. धार्मिक रूप से स्वास्तिक का चित्रण अत्यधिक शुभ और मांगलिक माना जाता हैं.
ज्यूती: ज्यूती को मातृशक्ति का प्रतीक माना जाता हैं. इसमें महाकाली, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश जी सहित सूर्य और चंद्रमा का चित्रण किया जाता हैं, शंकु आकार की 16 रेखाएं षोडश माताएं कहलाती हैं. ज्यूती गणेश पूजा में विशेष स्थान रखती हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भिन्न–भिन्न प्रकार के मांगलिक अनुष्ठानों में भिन्न–भिन्न प्रकार के ऐपणों का चित्रण किया जाता हैं, इन्हें भिन्न–भिन्न नामों से भी जाना जाता हैं.
सरस्वती पीठ: सरस्वती पीठ का चित्रण त्रिभुजाकार पांच कोण के बीच में स्वास्तिक बनाकर किया जाता है, बालक और बालिकाओं के अक्षारंभ संस्कार में इसका विशेष महत्व हैं.
लक्ष्मी पीठ का निर्माण भी इसी तरह किया जाता हैं, जिसमें 6 कोण का उपयोग किया जाता हैं.
नौ बिंदुओ के स्वास्तिक या विष्णु पीठ का निर्माण तुलसी वृक्ष के स्थान, विवाह व पूजा में किया जाता है.
इसी क्रम में वर्णन है, शिव पीठ व शिव शक्ति पीठ का. शिव पीठ का चित्रण पार्थिव पूजा और शिवार्चन में महत्व रखता हैं. इसका निर्माण 10 या 12 बिंदुओं को एक के ऊपर एक रख कर किया जाता है. वही शिव शक्ति पीठ का निर्माण 15 बिंदुओं द्वारा किया जाता है, जिसका विशेष महत्व जनेऊ संस्कार में है.
इसके अतिरिक्त अष्टदलकमल, 12 बिंदुओं का भद्र, 19 बिंदुओं का भद्र, 24 बिंदुओं का भद्र (गौरी तिलक), 36 बिंदुओं का भद्र (इन्हें बरबुंद बारबुंद भी कहा जाता हैं), सर्वतोभद्रचक्र (19 रेखाएं) आदि प्रकार की ऐपणकला का वर्णन भी पारंपरिक रूप से मिलता है, इनका निर्माण पौराणिक काल में चावल, तिल, नीले, हरे, लाल, पीले आदि रंगों के द्वारा किया जाता था.
कुमाऊनी लोककला कुमाऊनी संस्कृति का अभिन्न एवं अलौकिक हिस्सा है, कुमाऊं की लोककला अद्वितीय है व ना केवल भारतवर्ष अपितु सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं. हमारी यही विरासत हमें समृद्ध बनाती हैं, आइए इस विरासत को इसी तरह सहेज के रखे व अगली पीढ़ी को भी समृद्ध बनाए. (This is how traditional Aipan are made)
(लक्ष्मी पंत द्वारा लिखित ‘ऐपण’ पुस्तिका के आधार पर)
निष्ठा पाठक जी. बी. पंत विश्विद्यालय, पंतनगर में कॉलेज ऑफ कम्युनिटी साइंस, डिपार्टमेंट ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन की होनहार छात्रा हैं. अल्मोड़ा की रहने वाली निष्ठा इस समय अपनी पढ़ाई के सिलसिले में ‘काफल ट्री’ के लिए इंटर्नशिप कर रही हैं.
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