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5 सितम्बर से उत्तराखंड विधानसभा का मानसून स्तर शुरू होने जा रहा है. इस मानसून स्तर में एक महत्वपूर्ण विधेयक पास होने की पूरी उम्मीद की जा रही है. उत्तराखंड आंदोलनकारियों से जुड़ा यह विधेयक पास हो गया तो उन्हें सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण प्राप्त हो जायेगा. उत्तराखंड की राजनीति में राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने का यह क्रम बहुत पुराना है.
(Reservation for Uttarakhand Statehood Agitators)
2004 में एनडी तिवारी की सरकार ने सबसे पहले राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया था. तब सात दिन से अधिक जेल में रहने वाले अथवा घायलों को समूह ‘ग’ के पदों पर जिलाधिकारी के मार्फत सीधी नौकरी दी गयी थी. वहीं सात दिन से कम जेल में रहने वालों अथवा चिन्हित आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया. यह सभी लाभ जीओ के आधार पर दिये गये.
साल 2013 में हाईकोर्ट ने इस लाभ पर रोक लगा दी. 26 अगस्त 2013 में हाईकोर्ट की रोक के बाद साल 2018 में आरक्षण संबंधित सभी नोटिफिकेशन, शासनादेश और सर्कुलर सभी ख़ारिज किये गये.
(Reservation for Uttarakhand Statehood Agitators)
साल 2015 में हरीश रावत की सरकार ने उत्तराखंड विधानसभा में इससे संबंधित एक विधेयक रखा. यह विधेयक विधानसभा में पारित हो गया और राजभवन में पड़ा रहा. इसके बाद अगले पांच वर्ष भाजपा सरकार में इसपर कोई फैसला नहीं लिया गया.
साल 2022 में उत्तराखंड की धामी सरकार ने यह बिल राजभवन से वापस मांगा. इसके बाद कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक सब कमेटी का गठन किया गया और कहा गया कि विधेयक में आंशिक संशोधन किये जाने हैं.
मार्च 2023 में गैरसैण में एक कैबिनेट की मीटिंग हुई और सब कमेटी की सिफारिशों के साथ आन्दोलनकारियों को आरक्षण से जुड़ा बिल राजभवन भेजा गया. संवैधानिक बाध्यता के चले यह बिल राजभवन से वापस सरकार को भेज दिया गया.
बीते दिन सचिवालय में हुई एक बैठक में धामी सरकार ने 22 प्रस्तावों को मंजूरी दी जिसमें आन्दोलनकारियों को आरक्षण से जुड़ा बिल विधानसभा में रखे जाने का प्रस्ताव भी शामिल था. अब मानसून सत्र में यह बिल विधानसभा में नये सिरे से रखने का फैसला किया गया है.
(Reservation for Uttarakhand Statehood Agitators)
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