देश की सेना के शौर्य परम्परा की गौरवपूर्ण गाथा में 16 दिसम्बर 1971 का दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया, जब देश के रणबांकुरों ने सीमाओं पर दुश्मन के दांत खट्टे कर इतिहास रच डाला. विश्व के इतिहास में यह दूसरी सबसे बड़ी घटना है, जब 93,000 पाकिस्तानी सैंनिकों ने बिना शर्त भारतीय सेना के पूर्वी कमान के कमाण्डर लैफ्टि. जन. जगजीत सिंह अरोरा के सम्मुख आत्मसमर्पण किया. पूर्वी पाकिस्तान में सेना द्वारा वहॉ के नागरिकों तथा महिलाओं पर बर्बर अत्याचार से त्रस्त होकर भारत की ओर पलायन किया और हमारे देश ने भी उन शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिये. पीड़ित पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने सेना की इस बर्बरता पर प्रतिशोध का मन बनाया और मुक्ति वाहिनी संगठन के माध्यम से विरोध का रास्ता चुना.
(Vijay Diwas 2021)
दिसम्बर 1971 में जब भारत के कई वायु सेना ठिकानों पर पाकिस्तान द्वारा हमला किया तो भारत ने मुक्ति वाहिनी का साथ देते हुए जवाबी हमला किया. 03 दिसम्बर से प्रारम्भ हुआ यह युद्ध 16 दिसम्बर 1971 तक लगातार 13 दिन चला. इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश नाम के नये देश के रूप में उदय हुआ. इस जंग में भारतीय सेना के 3900 सैनिक शहीद हुए तथा 9,851 सैनिक जख्मी हुए. शहीद हुए सैंनिकों में बहुतायत उत्तराखण्ड के सैंनिकों की थी. उन्हीं 3900 शहीद हुए सैंनिकों में 9 कुमोऊॅ रेजीमेंट के नायक लीलाम्बर पाण्डे भी एक थे, जिन्होंने युद्ध के अन्तिम दिन यानि 16 दिसम्बर को सेना के ’कैक्टस लिली’ ऑपरेशन के दौरान अपनी शहादत दी.
मूल रूप से पीपलखेत (विजयपुर) जनपद बागेश्वर के निवासी शहीद लीलाम्बर पाण्डे को अभी शादी हुए चार साल भी पूरे नहीं हो पाये थे और सन्तान सुख भी नहीं भोग पाये थे, कि अपनी बेवा 21-22 वर्ष की मुन्नी पाण्डे को अकेला छोड़कर देश के लिए शहीद हो गये. उनकी यह कुर्बानी निश्चित रूप से देश के लिए गौरव की बात थी, लेकिन पति की शहादत के बाद उनकी धर्मपत्नी के भविष्य के लिए एक बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लग गया था. निःसंतान वीरांगना कैसे अपना भविष्य संवारेगी? हालांकि घर में भरा पूरा सम्पन्न परिवार था, गांव में बहुत सारी पुश्तैनी जमीन थी. लेकिन जिन्दगी जीने का हौंसला अब नहीं रहा. पति की शहादत के बाद यदि बच्चे होते तो उनके भविष्य संवारने की उम्मीद की डोर होती. निराशा व हताशा के इसी घुप्प अंधेरे के बीच आशा की एक किरण जगी-अपने पैरों पर खड़े होने की. शादी से पूर्व महज दर्जा 3-4 की पढ़ाई ही कर पायी थी वीरांगना. इसलिए कहीं नौकरी मिलना दूर की कौड़ी थी.
एक विचार आया कि क्या वह आगे पढ़ाई नहीं कर सकती? ताकि स्वावलम्बी जीवन जी सके. यह विचार जब विश्वास में बदला तो उनके बड़े भाई उन्हें उनके ससुराल से ले आये और नैनीताल स्थित भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय से सम्पर्क साधा. इस विद्यालय का स्थापना का उद्देश्य ही सैनिक परिवारों के आश्रितों की शिक्षा व परवरिश का था तो विद्यालय की प्रधानाचार्य श्रीमती कला बिष्ट ने सहृदयता से प्रवेश दे दिया. विद्यालय ने न केवल प्रवेश दिया बल्कि शिक्षा, छात्रावासी सुविधा, यूनिफार्म तथा पठन-पाठन की सम्पूर्ण सामग्री निःशुल्क उपलब्ब्ध करवाकर बहुत बड़ी राहत दी. जो कि इस विद्यालय में सीमा पर शहीद हुए सैंनिकों को वीरपत्नी,वीरपुत्र एवं वीरपुत्री का सम्मान देकर निःशुल्क छात्रावासी सुविधा देने की परम्परा बनी हुई है. वीरांगना मुन्नी पाण्डे विद्यालय के इस सहयोग के लिए अब भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना नहीं भूलती.
तब के नियमों के अनुसार कक्षा-5 की परीक्षा उत्तीर्ण न होने से उससे ऊपर की कक्षाओं में प्रवेश नहीं दिया जा सकता था और छोटे-छोटे बच्चों के साथ कक्षा में बैठकर किसी युवती का अध्ययन हेतु कक्षा में बैठना मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी असहज करने वाला था. लेकिन परिस्थितियों के आगे नतमस्तक होकर इसे भी स्वीकार कर लिया गया. संयोग ही था कि कक्षा-5 में प्रवेश लेने के चन्द महीनों के बाद ही उ.प्र. शासन का एक निर्णय आया, जिसके अनुसार बिना कोई बीच की कक्षाऐं उत्तीर्ण किये सीधे कक्षा-9 में प्रवेश दिया जा सकता है. विद्यालय की प्रधानाचार्य ने इस निर्णय का लाभ देते हुए वीरांगना मुन्नी पाण्डे को उसी वर्ष कक्षा-9 में प्रवेश दे दिया. दर्जा 3-4 पढ़े छात्र को यदि सीधे कक्षा-9 में प्रवेश दिलवा दिया जाय तो अध्ययन स्तर के बीच सामंजस्य बिठा पाना कठिन ही नहीं असंभव सा लगता है. लेकिन यहां संभव हो पाया इस कारण की उम्र के हिसाब से मनोवैज्ञानिक परिपक्वता काम आई और केवल परिश्रम के बलबूते उन्होंने कक्षा के अन्य छात्रों के स्तर के समकक्ष अपने को ला खड़ा किया और कक्षा-9 तथा कक्षा-10 की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण कर ली.
(Vijay Diwas 2021)
उस दौर में प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापन के लिए बी.टी.सी. प्रशिक्षण ही हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्रों की वरीयता रहती और यही सोचकर बी.टी.सी. प्रशिक्षण हेतु नैनीताल के राजकीय दीक्षा विद्यालय नैनीताल का रूख किया और प्रवेश भी मिल गया. तब बी.टी.सी. का एक वर्षीय प्रशिक्षण ही हुआ करता था. प्रशिक्षण पूरा हुआ और अब नौकरी की प्रतीक्षा थी. यों ही 2 वर्ष प्रतीक्षा में बीत गये और इस बीच वीरांगना मुन्नी पाण्डे ने व्यक्तिगत् परीक्षार्थी के रूप में इन्टर की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. कुछ दिन किसी प्राइवेट स्कूल में नौकरी शुरू की ही थी कि बेसिक शिक्षा परिषद् के अन्तर्गत परिषदीय प्राईमरी पाठशाला में नियुक्ति मिल गयी और एक सफल शिक्षक के रूप में विभिन्न विद्यालयों में सेवाऐं देते हुए वर्ष 2008 में राजकीय सेवा से सेवानिवृत्त ली. वर्तमान में वह गंगोत्री विहार, कानियां, रामनगर (नैनीताल) में अपना खुद का आशियाना बनाकर रह रही हैं.
भारतीय सेना की ओर से समय-समय पर इस वीरांगना को विजय दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जाता रहा. पिछले दिनों की प्रदेश सरकार द्वारा देहरादून में प्रस्तावित वॉर मैमोरियल के लिए शहीदों के घरों की मिट्टी लेने के उद्देश्य से आयोजित एक समारोह में प्रदेश सरकार की ओर से शहीद लीलाम्बर पाण्डे के सम्मान में उन्हें ताम्रपत्र भेंट किया गया तथा गत् वर्ष विजय दिवस के पचासवें वर्ष के प्रवेश पर सेना के उच्च अधिकारियों ने उनके निवास पर जाकर उन्हें सम्मानित किया.
शहीद लीलाम्बर पाण्डे का देश सेवा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करना जितना महत्वपूर्ण है, वीरांगना मुन्नी पाण्डे के संघर्ष की दास्तां भी दूसरों को रोशनी दिखाने के लिए कम प्रेरक नहीं है. विजय दिवस के अवसर पर सीमायुद्ध में शहीद हुए अन्य वीर सैंनिकों के साथ शहीद लीलाम्बर पाण्डे को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा वीरांगना मुन्नी पाण्डे की संघर्षपूर्ण व्यक्तित्व को नमन करते हैं.
(Vijay Diwas 2021)
– भुवन चन्द्र पन्त
भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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