उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल में बहुत से गाँव और ऐसी जगहें हैं जिनके पीछे “कोट” शब्द आता है. जिन गाँव के नाम के पीछे “कोट” शब्द जुड़ा है वे लगभग सभी ऊँचाई पर स्थित हैं. जहाँ से बहुत दूर-दूर तक नज़र पहुँचती है. कुछ “कोट” नाम वाले गाँव से तो चारों दिशाओं के गाँव, बाज़ार, जंगल नज़र आते हैं. कुछ अन्य जगह “कोट” हैं जो वीरान जंगलों में स्थित हैं या फिर समतल जगह पर कोई ऊँचा टापूनुमा स्थान हैं.
(Meaning of Kot in Uttarakhand)
जैसे: गुज़डुकोट, कठलकोट, घचकोट, ईडीकोट, रानीकोट, कोट का ढय्या मटवांस, बागडकोट, अस्कोट, भटकोट, पारकोट,धमकोट, नौकोट,कैड़ कोट, बण कोट, कैलकोट, कपकोट, काना कोट, कैहड़ी कोट, ख़िरकोट, धुमा कोट, ज्योलीकोट, चन कोट, चौकोट, छिपला कोट, झंनकोट, बारा कोट, धूलियाकोट, बेडाकोट, बलुवाकोट, भैस कोट, भितर्कोट, रांगण कोट, मजकोट, मूनाकोट, सिरकोट, सुनकोट, डुंगरकोट, डुवारकोट, मेला कोट, सीराकोट, थरकोट,उचा कोट, बैलर कोट, फलदाकोट, धनियकोट, वासकोट, चूरीकोट, बाड़ीकोट, भकराकोट.
“कोट” यानी क़िला, दुर्ग, राजमहल, भवन. ये पहले सब राजा महाराजाओं के निवास स्थान होते थे. चलिए, कोट शब्द पर प्रकाश थोड़ी देर बाद डालते हैं. पहले सूक्ष्मरूप में इतिहास के पन्नों का यहाँ सहारा लेकर उन लोगों तक जानकारी पहुँचाने की कोशिश करते हैं जो लोग कुमाऊँ के प्राचीन समय से अनभिज्ञ है और उन्हें यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है कि हमारा प्राचीनकाल कैसा रहा.
ईसा से 2500 वर्ष पूर्व तक कुमाऊँ में नाग, खस, किरात, हुण का वर्णन है (ये सभी जातियाँ महाभारत काल से यहाँ निवासरत थे और आज भी है) जो सूक्ष्म जानकारी के साथ उपलब्ध है जिसका इतिहासकारों ने पौराणिक ग्रंथों को आधार मानकर वर्णन किया है. ईसा से 2500 वर्ष पूर्व से सन् 700 तक सूर्यवंशी राजाओं का कुमाऊँ में आधिपत्य था. कहते हैं कि जब कुमाऊँ में सूर्यवंशी सम्राटों (कत्युरी राजा) के भाग्य का सूर्यास्त हुआ तो सारे कुमाऊँ में रात्रि हो गई. क्योंकि कुछ समय के लिए कुमाऊँ में कत्युरी राज्य एकछत्र राज्य न रहकर, राज्य कुछ समय तक मांडलिक राजाओं (छोटे-छोटे मंडल के राजा) के क़ब्ज़े में आ गया था. लेकिन कुछ ही समय के पश्चात यहाँ चन्द वंश के राजाओं का सम्पूर्ण विस्तार हो गया और कत्युरी राजाओं का पूरा राज्य चन्द राजाओं ने संभाल लिया. प्रजा में चंदों के आने से एक बार पुनः ख़ुशी की लहर दौड़ने लगी और अंधकारमयी रात्रि फिर से चाँदनी की तरह खिल उठी. चन्दवंशी राजा कत्युरी राजाओं के भांजे थे जिन्होंने (चंदों के विभिन्न राजाओं ने) सन 700 से 1790 तक कुमाऊँ में राज किया. चंदों के राज्य में प्रजा ख़ुश थी.
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गोरखाओं का राज कुमाऊँ में बहुत कम समय तक रहा जिन्होंने सिर्फ़ 25 वर्ष (1790 से 1815) तक यहाँ राज करा. गोरखा राजा बहुत क्रूर प्रवृति के थे. तभी तो आज किसी के डराने धमकाने पर लोग कहते हैं कि “गोरख्या राज थोड़ी है अब”. 1816 से 1947 तक ब्रिटिश शासन. उसके बाद “हम हैगोयु आज़ाद, आज़ादी मिलि गे”.
अब एक बार फिर “कोट” शब्द पर वापस आते हैं. “कोट” शब्द से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन स्थानों पर प्राचीनकाल में राजा महाराजा लोग रहते होंगे. जैसे कुमाऊँ के सल्ट में गुज़डुकोट का तो अपना इतिहास है. वहाँ राजा समरसिंह और उनके आठवें बेटे राजा हरूहीत सिंह का भवन था. जिसका इतिहास पढ़ने को मिलता है. गुज़डुकोट तल्ला सल्ट जहाँ राजा हरूहीत का अब मंदिर है वहीं उनका दुर्ग भी रहा होगा. वहाँ से चारों दिशाओं में बहुत दूर-दूर तक नज़र जाती है. स्थानीय लोगों के अनुसार वहाँ से एक ज़मीनी सुरंग की शुरुआत होती है और रामगंगा नदी (हँसिया ढुंगा स्थान) तक बताई जाती है. हँसिया ढुंगा रामगंगा नदी के बीचोंबीच एक बहुत बड़ा पत्थर है. इस पत्थर में राजा हरूहीत की धर्मपत्नी के कपड़ों(घाघरी) का निशान भी दिखाई देता है.
न्यायकारी राजा हरूहीत के इतिहास से आज की पीढ़ी भिज्ञ है. सर्वप्रथम धूरा गाँव सल्ट के स्वर्गीय खिमानंद इज़राल ने राजा हरूहीत के जीवन और उनके कार्यकलापों को काव्यरूप में संजोया. जिसे उन्होंने पहले के समय में गाँव-गाँव लोगों के बीच में कनस्तर (कंटर) बजा कर उसको काव्यधारा के रूप में प्रस्तुत किया.
(Meaning of Kot in Uttarakhand)
राजा हरूहीत की जीवनी को विस्तारपूर्वक काव्य रूप में गाने से पहले स्वर्गीय खिमानंद की इस वंदना से शुरूआत होती थी जिसमे उन्होंने ईश्वर की अराधना के साथ अपना अपना परिचय दिया है.
पंचनामा देवा तुम है जया दयाला।
मूरखा का दिल मज करिया उज्ज्वल।।
ईश्वर को ध्यान धरि उठानू कलम।
सब जग वैकी माया जलम थलम।।
धन धन हरि तुम, विष्णु भगवान।
आघिनौ का लेखणौ कौ दिया वरदान।।
हृदय में बैठि जये सरस्वती माई।
गणेश ज्यु विघ्न हरि करिया सहाई।।
धन धन हरि तुम धन तेरि माया।
कसा कसा च्यल हया सदा क्वे नि रया।।
सत्तर सौ नब्बे का मैं सुणानू यो हाल।
गोरखा ले जित जब अल्मोड़ा गढ़वाल।।
आज इतिहासकारों ने उसी का सहारा लेकर एक सुन्दर पुस्तिका प्रकाशित कर दी जिसने पूर्णतः इतिहास का रूप ले लिया है. जो एक सराहनीय और प्रशंसा योग्य है. इसी तरह अथ् श्री हरूहीत चालीसा को बचीराम मठपाल ग्राम नेवलगाँव, तल्ला सल्ट वालों ने चालीसा और आरती के रूप में रचा है. अथ् श्री हरूहीत चालीसा को यथारूप तथा विवरण के साथ पुस्तक स्वामी रामानन्द चरितावली (श्री लोकमणि बाबा जी का जीवन) नामक पुस्तक में भी प्रकाशित किया गया है. जिसका पहला संस्करण उनके अनुयायियों और क्षेत्रवासियों तक पहुँच गया है और पुस्तक का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है.
रानी कोट भिक्यासैण के नज़दीक में है. जहाँ प्राचीन कुछ अवशेष आज भी मिलते हैं. रानी कोट एक दुर्गम पहाड़ी के पठार पर स्थित है जो समय के साथ साथ धूमिल होता जा रहा है. इस रानी कोट के क़िले में एक शिला है. इतिहासकारों के अनुसार उस शिला पर लिखा हुआ सन्देश अब पढ़ने में नहीं आता है या कौन सी भाषा में है वह स्पष्ट नहीं हो पाता, परन्तु यहाँ किसी राजा का दुर्ग था यह तो स्पष्ट है.
कोट का ढय्या, सल्ट मटवाँस गाँव के नज़द्दीक रामगंगा नदी के किनारे एक टापूनुमा स्थान है. यहाँ आज कुछ मन्दिर हैं. जिनमें शिव मन्दिर एक बड़ा मंदिर है. पिछले कुछ वर्षों तक यह अच्छी स्थिति में था. तपस्वी, सन्त महात्मा लोग यहाँ रहते थे. यहाँ शिवरात्रि के दिन बड़ी धूमधाम के साथ मेला लगता था. जो अब उस स्थिति में नहीं है, जैसे आज से पिछले पाँच दशक के लोगों की नज़र में रहा. इस जगह की महत्ता को सन्तों ने पहचाना बाँकी लोगों के लिए तो पहले भी यह ढय्या रहा और आज भी ढय्या ही है.
प्राचीनकाल के कुछ अवशेषों का ज़िक्र यहाँ भी है जैसे शंख, दिये, शिवलिंग जो बहुत प्राचीन हैं, लेकिन क्षेत्रवासियों का उधर ज़्यादा समय तक ध्यान नहीं रहा. इसका मतलब यहाँ भी धर्मपरायण राजा का दुर्ग रहा होगा या फिर प्राचीन सभ्यता का कोई विशेष स्थान यह ढय्या रहा होगा. पुरातत्व विभाग को एसे सभी जगहों से अवगत कराना होगा. सरकार और क्षेत्रीय जनता को मिलकर इन सभी जगहों के बारे में शोध करना अति आवश्यक है, जिससे ये सभी जगहें प्रकाश में आयें.
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आनन्द ध्यानी
मूल रूप से सल्ट, अल्मोड़ा के रहने वाले आनन्द ध्यानी वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं. आनन्द ध्यानी ने यह लेख काफल ट्री की ईमेल आईडी [email protected] पर भेजा है. आनन्द ध्यानी से उनकी ईमेल आईडी [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.
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