1942 का साल था महिना अगस्त का. अंग्रेजों के खिलाफ़ विरोध की चिंगारियां अब गाँवों में विरोध की लपटों के रूप में साफ देखी जा सकती थी. कुमाऊं के आंतरिक क्षेत्रों में तेज होते विरोध के स्वर देखकर अंग्रेज अधिकारियों के समझ में नहीं आ रहा था कि निपटा कैसे जाये. आज़ादी की इस जंग में सालम के वीरों ने आज की तारीख इतिहास में अपने खून से दर्ज कराई.
(Salam Kranti Uttarakhand History)
अगस्त के बरसाती महीने में कुमाऊनियों का खून उबाल पर था. देशभर की तरह यहां भी बड़े नेता या तो गिरफ्तार कर लिये गये या फिर नजरबंद. क्रांति की डोर अब युवाओं के हाथों में थी जो आज़ादी से कम किसी पर राजी न थे. देघाट गोलीकांड में यहां के युवा अपने इरादे दिखा चुके. अंग्रेजी सरकार के पास उनके फ़ौलादी इरादों का कोई जवाब न था.
कुमाऊं की वादियों में क्रांति की एक खुशबू थी जिसे फैलने से रोकने के लिये अंग्रेजों ने फ़िजा में बारूद की बू घोलनी शुरु की. पर अबकी गोरों की फ़ौज का मुक़ाबला कभीं टुटने वाले पहाड़ के युवाओं से था. एक तरफ़ बंदूक के साथ गोरों की फ़ौज थी दूसरी तरफ़ मजबूत इरादों वाले कुमाऊं के युवा.
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नौगांव में क्रांतिकारी आने वाली तारीखों की रूप रेखा बनाने के लिये बैठक कर रहे थे तभी पुलिस ने गांव को चारों ओर से घेर लिया. बैठक में शामिल 14 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. अंधेरी रात में पहाड़ में एक गांव गांव से दूसरे खबर हवा हुई. सालम की पट्टी रातों रात मशालों से जगमगा गयी. घुप्प अंधेरे में अचानक हुई रौशनी और आज़ादी के गीत और नारों की आवाज से अंग्रेजी सैनिक हड़बड़ा गये और पटवारी ने क्रांतिकारियों को छुड़ाने आये गांव वालों पर गोली चला दी. गोली शेरसिंह सनोली के पेट पर लगी.
भीड़ सैनिकों पर चढ़ गयी उन्होंने सेना की पिटाई कर दी और घेरा डालकर सभी कर्मचारियों को पकड़ लिया. 31 बंदूक समेत सारा कारतूस अब सालम के वीरों के हाथ में था. पुलिस को बिना हथियार के रख डाकघर अपने कब्जे में लिया गया. क्रान्ति के इस माहौल में तय हुआ कि 24 और 25 अगस्त के दिन पूरे सालम क्षेत्र के लोग इकट्ठा होंगे. सालम के वीरों द्वारा लिखी साहस की इस भूमिका पर ही 25 अगस्त के दिन सालम क्रांति जैसी एक बड़ी घटना हुई.
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संदर्भ: मदन मोहन करगेती की पुस्तक स्वतंत्रता आन्दोलन और स्वातंत्र्योत्तर उत्तराखंड में क्रांतिकारीप्रताप सिंह बोरा के लेख के आधार पर.
–काफल ट्री डेस्क
सालम क्रांति के नेता प्रताप सिंह बोरा द्वारा क्रांति का आँखों देखा हाल
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