हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में चल रही ऑल वेदर रोड परियोजना के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया. जिसके बाद से रोड का चौड़ीकरण 5.5 मीटर से अधिक नहीं किया जा सकता. इस आदेश का पर्यावरणविदों से स्वागत किया है पर यह आदेश बहुत से महत्वपूर्ण सवाल भी छोड़ गया है जैसे कि जिन स्थानों में 70 प्रतिशत से भी अधिक काम हो चुका है वहां क्या होगा? क्या यहां 5.5 मीटर के बाद के हिस्से में डामरीकरण होगा या उसे खुदा हुआ ही छोड़ दिया जाएगा. क्या हो चुके नुकसान की भरपाई के लिये कुछ किया जायेगा?
(impact of All Weather Road project on environment)
इन सवालों का कितना महत्व है, वह पिथौरागढ़ जिले में घाट-पिथौरागढ़ सड़क के 30 किमी में हुए चौडीकरण से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आंकलन से किया जा सकता है. मसलन घाट से पिथौरागढ़ तक हो रहे रोड चौड़ीकाण से स्थानीय पादकों की जैव विविधता पर बुरा असर पड़ रहा है. इस हिस्से में साल,चीड़, बांज और अन्य मिश्रित वन पाए जाते है. जिस तरह से नामांकित मक डिस्पोजल साइट्स के अलावा भी अन्य जगहों पर मलबा फेंका जा रहा है, उससे साल वनों के प्राकृतिक रिजेनेरसन क्षेत्र बहुत अधिक मात्रा में खत्म हो गए हैं. इन सभी क्षेत्रों में पुराने व नए पेड़ दब चुके हैं, जिससे स्थानीय तौर पर धीमी गति से बढ़ने वाले इन वनों को खतरा हो चुका है. इसीप्रकार से बेल आदि के बहुउपयोगी वृक्षों के अस्तित्व को भी खतरा हो चुका है.
यह क्षेत्र नदी घाटी से लगा हुआ है और सड़क के आस-पास के गांव में च्युरे के बहुउपयोगी पेड़ पाए जाते हैं. इस वृक्ष के पुष्प न सिर्फ मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में पुष्प रस उपलब्ध कराते हैं, साथ ही साथ शहद के उत्पादन में भी सहायक है. इसके बीजों से एक बहुउपयोगी तेल निकाला जाता है , जिसे स्थानीय तौर पर लोग अपने खाने आदि में प्रयोग करते हैं. क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए यहां पेड़ अति आवश्यक प्रजाति है.
सड़क के कटान और अनियंत्रित मक डिस्पोजल और इसके साथ उड़ने वाली धूल के कारण इस विशेष पेड़ के पुष्पों पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है. न सिर्फ पेड़ों का प्राकृतिक रीजेनरेशन रुक गया है, बल्कि साथ ही साथ स्थानीय मधुमपक्खयों की प्रजातियां भी खतरे में हैं. कई नए व पुराने वृक्ष भी मक डिस्पोजल की भेंट चढ़ चुके हैं.
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नीचे दिए गए सेटॅलाइट इमेजरी में घाट-पिथौरागढ़ सड़क के बीच विभिन्न जगहों का 2014 और 2019 के बीच तुलना की गयी है. इन तस्वीरों में ये साफ़ तौर पर दिख रहा है, कि किस प्रकार से मलबे को अनियंत्रित ढंग से डालने के कारण वनस्पति क्षेत्र कम हुया है :
जलीय जीवों पर प्रभाव
यह क्षेत्र शारदा नदी जलागम परिदृश्य के अंतर्गत आता है. दो बड़ी नदियों सरयू और पूर्वी रामगंगा का पानी इस सड़क परियोजना से सीधा लगा हुआ बहता है. इस क्षेत्र की कई जलधाराएं जिन्हें स्थानीय भाषा में गाड़ कहते हैं, वह इन नदियों में अपना पानी समाहित करती हैं. मुख्य नदी तथा इन जलधाराओं की उपयोपगता समझे बगैर ही इन पर सीधे-सीधे सड़क का मलबा डाला गया है. जिससे कई स्थानों पर से यह जलधाराएं या तो सूख चुकी हैं और या फिर मिट्टी और चट्टानों के ढेर के तले दबकर गायब हो चुकी हैं. इसकारण से पूरी रिवराइन इकोलॉजी बर्बाद हो रही है, जिससे स्थानीय जलीय जीवन संकट में है.
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मुख्य नदी क्षेत्र की मछलियां जैसे गोल्डन महाशीर, ट्राउट आदि मुख्य नदी से इन छोटी जल धाराओं में प्रजनन और अंडे देने आती हैं. मलबा डालने के कारण अब यह प्रजातियां अपने फिकंडिटी ग्राउंड (अंडे देने वाले स्थान) को खो चुकी हैं. जिससे स्थानीय तौर पर यह प्रजातियां खत्म हो जाएंगी साथ ही साथ मछली पकड़ने से जुड़ा कारोबार भी खत्म होने की कगार पर है. इन धाराओं में इस तरीके से मलबा डालने से सबसे बड़ा खतरा, महाशीर जैसी प्रजाति की मछलियों को है. ये मछलियाँ स्वाभाव से माइग्रेटरी होती हैं, जल धाराओं में अवरोध आने के कारण इनके माइग्रेशन बाधित होता है, तथा साथ ही साथ ये इन धाराओं में मलबा आजाने के कारण अपने अंडे नहीं दे पाती हैं, जिससे इनका अस्तित्व खतरे में है.
इन छोटी जल धाराओं में मछलियों की कई अन्य प्रजातियां जैसे Puntius ticto, Garra gotyla, Barilius bendelisis, Noemacheilus botia, Glyptothorax pectinopterum, Channa gacbua आदि रहती हैं. जल धाराओं का रास्ता रोके जाने एवं अनियंत्रित ढंग से मलबा डाले जाने के कारण यह मछलियां स्थानीय तौर पर विलोपन की कगार पर हैं.
सरीसर्पों पर प्रभाव
घाट पिथौरागढ़ ऑल वेदर सड़क परियोजना क्षेत्र में घाटी एवं उच्च हिमालई क्षेत्र दोनों ही होने के कारण सर्पों की कई प्रजातियां जैसे कोबरा (Naja kaouthia), करेत (Bungarus caeruleus), हिमालयन पिट-वाइपर (Gloydius himalayanus), धामन (Ptyas mucosa), ट्रीकेट (Orthriophis hodgsoni) आदि पाए जाते हैं. मक डिस्पोजल के कारण इन प्रजातियों के स्थानीय पर्यावास खत्म हो रहे हैं, जिससे इनका अस्तित्व खतरे में है. इसी तरह से छिपकलियों की कई प्रजातियां भी खतरे के दायरे में हैं.
पक्षियों की प्रजातियों पर पड़ रहे प्रभाव
पेड़ों के काटे जाने एवं स्थानीय पर्यावास के खत्म होने के कारण घाटी एवं पहाड़ी क्षेत्र के कई पक्षियों की प्रजातियां खतरे की जद में आ गयी हैं. जिनमें सबसे प्रमुख गिद्धों की प्रजातियां हैं. गुरना क्षेत्र के समीप सड़क निर्माण से पहले किए गए एक स्थानीय सर्वे (वर्ष2017) के दौरान गिद्धों की 5 प्रजातियां पाई गई थी जिनमें हिमालयी ग्रिफ्फन(Gyps himalayensis)55, रेड हेडेड वेल्चर(Sarcogyps calvus) 02, वाइट बैक वल्चर (Gyps africanus ) 01, एजिप्सियन वल्चर (Neophron percnopterus ) 03, सिनेरिअस वल्चर(Aegypius monachus ) 04 थे. हालिया सर्वे के दौरान इन प्रजातियों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है. गिद्धों की इन प्रजातियों में रेड हेडेड वल्चर और वाइट बैग को दोबारा नहीं देखा गया है.
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स्तनधारियों पर पड़ रहे प्रभाव
लगातार हो रहे निर्माण कार्य के कारण स्तनधारियों जैसे तेंदुआ, काकड़, खरहरे, हिमालय लोमड़ी, गीदड़, पाइन मार्टिन (Martes martes), जंगल कैट, तेंदुआ बिल्ली आदि के जीवन खतरे में पड़ चुके हैं. अत्यधिक चौड़ी सड़क इन प्रजातियों के लिए एक स्थाई सीमा का निर्माण करती है, जिससे इन प्रजातियों और इनके भोजन (शाकाहारी जीव) को प्राकृतिक विचरण करने में बाधा आती है. निर्माण कार्य एवं अत्यधिक चौड़ी सड़कों के कारण इन प्रजातियों के प्राकृतिक बर्ताव, प्रजनन आदि में भारी बदलाव आता है. जिससे इन प्रजातियों की उपस्थिति एवं जीवन संकट में है.
खरपतवार और खत्म होते चरागाह
ऑल वेदर सड़क के मलबे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के पशु चारागाह मिट्टी एवं पत्थर के मलबे के कारण खासा प्रभावित हुए हैं. आने वाले समय में यदि मलबा ग्रसित क्षेत्रों का सही वनस्पतिक उपचार न किया गया तो इन क्षेत्रों में खरपतवार उगने की समस्या आने लगेगी. लेंटाना, पाथेपनयम, कालाबांसा आकद खरपतवार यहां खाली स्थानों (मलबा फें के गए स्थान पर) पर उगकर साथ लगे अन्य क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में ले लेंगे| इससे लोगों को चारे और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.
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परियोजना संबंधी सुझाव
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद सवाल यह रहता है कि सरकार इस परियोजना में और क्या सुधार कर सकती है. सरकार को चाहिये कि प्रोजेक्ट में बचे हुये काम से पहले इससे हो चुके/ हो रहे नुकसाओं को आम जन-मानस से साझा करे स्थानीय जनता, विशेषज्ञों, जन-प्रतिनिधियों एवं कार्यदाई संस्था के साथ जन-सुनवाई जैसी प्रक्रिया की जाए. मलबा निस्तारण क्षेत्रों की समीक्षा दोबारा से की जाए. इनसे हो चुके और हो रहे नुकसान का आकलन किया जाए. स्थानीय पादपों के वह क्षेत्र जहां वह प्राकृतिक रूप से नए वन क्षेत्र बना रहे हैं (जैसे कि साल वन) उन क्षेत्रों का विशेष संरक्षण किया जाए.
परियोजना के दौरान काटे गए पेड़ों एवं उनके स्थान पर लगाए गए पेड़ों का ब्यौरा जारी किया जाए. सड़क पार करते समय वन्यजीवों का जीवन खतरे में न पड़े इसके लिए स्पीड ब्रेकर, सूचना पट, गति सीमा पट एवं सुरक्षित कॉरीडोरों का निर्माण किया जाए. सड़क निर्माण से चयूरे के पेड़ों एवं स्थानीय मधुमपक्खयों पर पढ़ रहे प्रभाव का आकलन किया जाए. साथ ही साथ इससे जुड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी अध्ययन किया जाए.
नदियों एवं छोटी जल धाराओं पर मलबा डाला जाना बंद किया जाए और डाले गए मलबे को तुरंत निकाला जाए. भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों के ढलानों पर स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण अतिशीघ्र रूप से किया जाए. क्योंकि अधिकांश भू-भाग दक्षिणी-ढलान(हिमालय का शुष्क क्षेत्र) में आता है, तो यहां की वनस्पति इसी के अनुकूल चुनी जाए, जिससे की भू-स्खलन रोकने में अनुकूल सहायता मिल सके.
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नोट- 2019 में तैयार विस्तृत रिपोर्ट भारत सरकार को पहले ही प्रेषित की जा चुकी है और इससे संबंधित सुझाव भी सरकार को प्रेषित किये जा चुके हैं.
पिथौरागढ़ के रहने वाले मनु डफाली पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हरेला सोसायटी के संस्थापक सदस्य हैं. वर्तमान में मनु फ्रीलान्स कंसलटेंट – कन्सेर्वेसन एंड लाइवलीहुड प्रोग्राम्स, स्पीकर कम मेंटर के रूप में विश्व की के विभिन्न पर्यावरण संस्थाओं से जुड़े हैं.
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2 Comments
राघव
यह धारणा गलत है कि सड़क निर्माण से पर्यावरण को स्थाई नुकसान होता है । नगन्य अस्थायी अपवाद को छोड़ कर ऐसा कोई स्थाई प्रभाव सड़क निर्माण से नहीं होता है जिसके लिए इतना हो हल्ला मचाया जाय । वास्तव में भारत में सेक्युलरिज्म और उसके मनगढ़ंत नकली सिद्धांतों का रोग वामपंथियों की समाज विरोधी सिद्धांतों की तरह तथाकथित बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से फैला हुआ है । जिस कार्य से पर्यावरण को नुकसान होता है उसकी ऐसे रोगी कोई चर्चा नहीं करेंगे । उस पर कोई हो हल्ला नहीं मचायेगा । क्योंकि वह कार्य अर्थ से जुड़ा है । मैं ऐसे लोगों की घोर निंदा करता हूँ ।
गोपेन्द्र गंगवार
विकास ले लो या पर्यावरण की चिंता कर लो। दोनों में से कोई एक ही मिल सकता है। दोनों एक दूसरे के बिरोधी हैं