धारचूला से 18 किलोमीटर दूर तवाघाट नामक स्थान है जहां कालीगंगा और धौलीगंगा नदियों का संगम होता है. यदि हम कालीगंगा नदी के साथ साथ ऊपर चढ़ते जाएं तो व्यांस घाटी पहुँचते हैं और धौलीगंगा के साथ चलें तो दारमा घाटी. तीसरी अर्थात चौंदास घाटी इन दोनों के मध्य में स्थित है. (Chaundas Valley Dharchula Photo Essay)
परम्परानुसार रं समाज के लोग इस मार्ग से चलने वाले भारत-तिब्बत व्यापार में एकाधिकार रखते थे. व्यापार के दौरान यहाँ के व्यापारी तकलाकोट और ग्यानिमा में मंडियों में जाकर अपने तिब्बती मित्र व्यापारियों के साथ वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया करते थे. तिब्बत से याक के बाल, सुहागा, बकरियां, ऊन और नमक जैसा सामान लाया जाता था जबकि भारत से चीनी, गुड़ और राशन जैसी चीजें विक्रय के लिए ले जाई जाती थीं. पुरुषों के व्यापार में तिब्बत गए होने के दौरान गाँवों में रह रही महिलाएं एक फसल उगाती थीं जिसमें मुख्य रूप से कुटू और फांफर पैदा होता था. फल और सब्जियां भी पैदा किये जाते थे. (Chaundas Valley Dharchula Photo Essay)
दारमा और व्यांस घाटियों के बहुत ऊंचाई पर अवस्थित होने के कारण यहाँ के निवासी सर्दियों में धारचूला और उसके आसपास की गर्म बसासतों में आ जाते थे जहाँ उनके अपने-अपने गाँवों के नियत आवास हुआ करते थे. ये आवास अब भी हैं और उन्हें खेड़े कहा जाता है.
दारमा और व्यांस घाटियों के बनिस्बत चौदांस घाटी गर्म है और यहाँ के लोग सर्दियों में माइग्रेशन नहीं करते. नारायण आश्रम जैसा महत्वपूर्ण सामाजिक एवं आध्यात्मिक केंद्र भी इसी घाटी में अवस्थित है. (Chaundas Valley Dharchula Photo Essay)
हमारे साथी नरेंद्र परिहार ने हाल ही में इस घाटी की यात्रा के कुछ मनमोहक फोटो भेजे हैं. देखिये.
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मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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