सीराकोट का किला उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट में है. सीराकोट का किला 800 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है. इस किले का निर्माण मल्ल राजाओं द्वारा किया गया बताया जाता है. किले के बाहरी भाग का इस्तेमाल राजा द्वारा आवास के लिये किया जाता था. किले के बीच भगवान शिव तथा भैरव के मंदिर बनाये गए हैं. इसी पहाड़ी पर मलेनाथ का मंदिर व कुछ धर्मशालाएँ भी हैं. इस जगह को छानपाटा नौली के नाम से भी जाना जाता है.
यह कोट अर्थात किला तीन तरफ से प्राकृतिक चट्टानों से संरक्षित है, एक ओर से इसमें निर्माण कर संरक्षित किया गया है. इस पहाड़ी किले में 5 परकोटे बने हुए हैं जो इससे लगभग 25 मीटर की ऊँचाई में समतल स्थान के साथ-साथ मुख्य टीले से लगभग 200 मीटर नीचे हैं. यहीं से दूसरी दीवार बनी है. इन परकोटों पर संतरी के लिए कोई कक्ष नहीं बना है.
किले पर चढ़ने व उतरने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों की सीढियां बनायी गयी हैं. वर्तमान में यहाँ मौजूद मंदिर में जाने के लिए तीन दरवाजे बनाये गए हैं. भैरों मंदिर के पास दूसरा दरवाजा मौजूद है.
सीराकोट के पूर्वी हिस्से में 500 मीटर की दूरी पर राजकोट है. भैरों मंदिर के पास से राजकोट के लिए रास्ता जाता है.
यहाँ एक लम्बी सुरंग भी बनायी गयी थी, सीधा छानपाटा नौली से जुड़ने वाली यह सुरंग अब मलबे के नीचे दब चुकी है.
चन्द राजा रुद्रचन्द के सेनापति पुरुख पन्त तीन बार राजा हरिमल्ल से पराजित हुए. पराजयों के बाद उन्होंने छानपाटा नौली में साधुवेश धारण कर सीराकोट की सूचनाएँ इकट्ठा कीं. राजा के सिपाहियों को अपने भरोसे में लेकर सीराकोट में जाने वाला पानी का मूल स्रोत नष्ट कर दिया. सीराकोट में पानी व अनाज की आपूर्ति बंद होने से राजा हरिमल्ल ने आत्मसमर्पण कर दिया.
संरक्षण के अभाव में नष्टप्रायः किले से हिमालय तथा डीडीहाट का विहंगम दृश्य दिखाई देता है.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
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