4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – तीसरी क़िस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: तुम्हारी मां अपनी मां की अनचाही संतान है
मैंने तुम्हें बताया था मेरी जान कि तुम्हारी मां अभी तक स्वेच्छा से मां नहीं बनना चाहती. इसके पीछे मेरे कुछ डर, तनाव, चिंता और सवाल भी हैं. जैसे मुझे स्कूल जाने वाले बच्चों की माओं का शेड्यूल बहुत डराता है. सुबह सवेरे उठकर जल्दी से बच्चों के लिए नाश्ता, खाना बनाना, तैयार करके बच्चों को स्कूल छोड़ना, स्कूल से लाना, होमवर्क. दुनियाभर की मांएं ये काम हर रोज करती आई हैं, करती जा रहीं हैं और करती रहेंगी. कितने दिन, महीने, साल वो ये सब करती जाती हैं यंत्रवत, मशीन जैसे, बिला नागा। …नहीं मशीन जैसे भी नहीं, कोई मशीन बिना रुके सालों तक लगातार नहीं चल सकती, ये काम दुनिया में सिर्फ मां कर सकती है! सिर्फ मां ही ऐसा इंसान है जो सालों-साल बिना किसी आराम के चलती रहती है! बिल्कुल डल चेहरे, निचुड़ी हुई, उत्साहहीन और नीरसता भरा जीवन जीते हुए भी मांएं, अपने बच्चों के लिए सब कुछ कमाल की फुर्ती से करती जाती हैं। (अपवाद यहां भी हैं मेरी जान)
सच कहूं तो मुझे यही रूटीन डराता है…पर तुम मत डरो मेरे बच्चे, जब तुम आ जाओगे तो मैं भी ये सब यंत्रवत करने लगूंगी. बल्कि तब तो निःस्वार्थ भाव से और बिना किसी तर्क या कुतर्क के, क्योंकि तब तो मैं मां बन चुकी होऊंगी न. लेकिन मेरा मानना है कि यूं यंत्रवत काम करते जाना वो भी बिना तनख्वा के, बिना छुट्टी के, बिना पद के, बिना किसी पहचान के; ये सब विकल्पहीनता के कारण है मेरे रंगरूट! मां बच्चे के लिए किसी भी तरह का कोई कंप्रोमाइज नहीं करना चाहती, उसे अपने बच्चे को हर हाल में सिर्फ 100 प्रतिशत देना होता है. चूंकि कोई और इतने लंबे समय तक अपनी ‘निःस्वार्थ सेवाएं’ नहीं दे सकता, बच्चे का बाप भी नहीं. इसलिए वो अकेले ही ज्यादातर चीजों के लिए खटती रहती हैं. शुक्र है प्राकृतिक या सांस्कृतिक जिस भी कारण से मांओं को मरने तक ये ‘अंतहीन निःस्वार्थ सेवा’ देना, कभी खटना नहीं लगता, …वर्ना तो मांएं पागल ही नहीं हो जाती!
एक बात बताओ बेटू, रात भर तुम्हें सूखा रखने के लिए यदि तुम्हारे पिता तुम्हारी नैपी बदलें, उन्हें साफ करें, तो क्या तुम्हें बुरा लगेगा? तुम्हारे पिता यदि तुम्हारी मालिश करें, उबकाई में गिरे दूध को साफ करें, टट्टी में सनी नेपियों को साफ करें, रुलाई और झुंझलाहट के वक्त भी तुम्हें प्यार से गोद में समेट लें, तो क्या तुम्हें बुरा लगेगा? क्या तुम्हें मजा नहीं आएगा? या फिर तुम्हारे पिता के ये सब करने से मेरे मातृत्व में, मेरी ममता में कमी आ जाएगी? या तुम्हारा मेरे लिए और मेरा तुम्हारे लिए प्यार कम हो जाएगा? नहीं न मेरी जान? दूध पिलाने से अलग ऐसा कोई काम नहीं है बेटू, जो तुम्हारे पिता नहीं कर सकते. लेकिन ज्यादातर पिता ऐसी मेहनत नहीं करते, क्योंकि इतनी मेहनत के बाद भी इस काम में कोई मान्यता, पैसा या पहचान नहीं. बिना मान्यता, पैसे या पहचान मिले लगातार सालों तक एक ही जैसे बोरिंग, खटने वाले उबाऊ काम करते चले जाने से, पिताओं को सदमा ही लग जाए शायद!!
आजकल तो हमारे देश में भी सरकार को लगा की बापों को भी बच्चे के पालन में थोड़ा हाथ लगा लेना चाहिए. खाली हाथ पर हाथ धरके पिता बनने का सुख लेना सही नहीं, थोड़ा सा उन्हें भी खटना चाहिए पिता बनने की प्रक्रिया में. सो उन्हें ‘पितृत्व अवकाश’ देने की बात हुई. जरा कुछ दिन वे भी कायदे से लें बाप बनने से सुख. लेकिन मजाल की कोई पिता ‘पितृत्व अवकाश’ के नाम पर ली जाने वाली छुट्टी में रात भर जगकर बच्चे का कोई काम भी कर दे! या रात न सही दिन भी ही कर दे. (अपवाद यहां भी जरूर होंगे) उनके पास एक सीधा सा जवाब है ‘मुझे नहीं आता’. जैसे लड़कियां (माएं) तो बच्चे पालने के सारे गुर पेट से ही सीख के आती हैं!
ऑफिस जाने वाले एक पिता के लिए ‘पितृत्व अवकाश’ मतलब की बाप बनने के नाम पर छुट्टियों की ऐश काटना है! जबकि ऑफिस जाने वाली मांओं के लिए ‘मातृत्व अवकाश’ मतलब दिन और रात का होश खोना है! बल्कि ऑफिस न जाने वाली मांओं के लिए भी मातृत्व का मतलब ही दिन-रात की सुध-बुध खो देना ही है.
ये तमाम तरह की सेवा सिर्फ मां ही करती है मातृत्व के नाम पर. दुनिया के सारे पिताओं, बल्कि मांओं, दादियों, नानियों को भी लगता है; कि बच्चे की सफाई, नहलाना-धुलाना, खाना-पीना, मालिश, दिनभर उसके साथ वक्त बिताना, थकान के बावजूद बच्चे के रोते जाने पर भी नहीं खीजना; बच्चे की अंतहीन जिदों से निपटना. ये सब तो मातृत्व के लक्षण हैं! पर सच ये है मेरी जान कि ये मातृत्व नहीं है, …बल्कि मातृत्व के लक्ष्य की पूर्ति के लिए किये जाने वाले अंतहीन काम हैं! मातृत्व की चाहत है तो बस इतनी सी है कि बच्चे को समय पर दूध/खाना मिले, साथ ही बच्चे की सफाई, खुशी और स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखा जाए. अपनी इन सारी इच्छाओं को शिद्दत से चाहना और उनकी पूर्ति में किसी भी तरह का कोई समझौता बर्दाश्त न करना…ये है मातृत्व, रंग!
लेकिन जब कोई पिता ऐसा ‘निःस्वार्थ सेवा’ जैसा काम करने की पहल करेगा ही नहीं, तो जाहिर है कि ये सारे काम मां ही करेगी. क्योंकि वो अपने बच्चे की छोटी से छोटी जरूरत के लिए कैसी भी मेहनत और सेवा से समझौता नहीं कर सकती. तुम्हारी पॉटी साफ करने में मुझे हमेशा ही थोड़ी तकलीफ होगी, बदबू आएगी, जी खराब होगा. शायद अधिकतर मांओं के साथ ऐसा हो भी,…लेकिन विकल्प न होने की स्थिति में वो ये काम करती ही हैं, बल्कि कहूं कि सहर्ष करती हैं. लेकिन बच्चे के इन अंतहीन कामों का कोई बेहतरीन विकल्प होने की स्थिति में, मुझे लगता है कि मांएं उस विकल्प को जरूर चुनेंगी…क्या तुम्हें लगता है मेरी रंगीली! कि घर के किसी दूसरे सदस्य, पिता या मेड द्वारा तुम्हारी अंतहीन जिम्मेदारियों में से कुछ को कर देने से तुम्हारी मां के मातृत्व में, तुम्हारे लिए मेरे लाड़-प्यार में कोई कमी आ जाएगी?
मुझे बताओ मेरे रंगरूट! जब मांओं के लिए सिर्फ जन्म देना मातृत्व निभाना नहीं है, तो फिर पिताओं के लिए सिर्फ पैसे और संसाधन जुटाना पितृत्व निभाना भला कैसे हुआ?? लेकिन यदि मैं तुम्हें जन्म देने, दूध पिलाने से अलग तुम्हारा कोई काम न करूं तो मुझे गहरे अपराधबोध में भेज दिया जाएगा. बल्कि मैं खुद ही खुद को बेहिसाब कोसुंगी कि मैं कैसी मां हूँ? लेकिन ऐसा कोई अपराधबोध किसी पिता को कभी छू भी नहीं सकता! तुम्हारे पिता द्वारा तुम्हारा एक भी काम किए बिना भी उनके बाप बनने में कोई कमी नहीं आएगी! उनके ‘पितृत्व सुख’ पर कोई सवाल नहीं खड़ा होगा. लेकिन तुम्हारे अंतहीन कामों में से कुछ गिने-चुने काम न करने से या अनजाने में हुई थोड़ी सी लापरवाही से मेरी ममता पर सवाल तुरंत खड़े हो जाएंगे! क्या ये तुम्हारी मां के प्रति नाइंसाफी नहीं है मेरी जान?
पिता का प्यार हर तरह से शक और सवालों से ऊपर है. लेकिन मैं तो एक दिन यदि तुम्हारे स्कूल बैग में पानी की बोतल रखना भूल जाऊं या फिर एक वक्त का खाना या दूध देने में लेट हो जाऊंगी तो मैं तुरंत एक लापरवाह मां बन जाऊंगी. तुम्हें हुआ जुखाम, खांसी तक मुझे एक गैरजिम्मेदार और घोर लापरवाह मां का तमगा देने के लिए बहुत हैं! मां का प्यार सब कुछ करके भी शक के घेरे में ही रहता है. क्यों भला??
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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