उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय समय पर चेत गया होता, तो आज यह नौबत नहीं आती. अपनी कमियों को बार-बार छिपाने का खामियाजा यह है कि यूजीसी ने 80 से अधिक पाठयक्रम संचालित करने वाले इस विश्वविद्यालय को केवल पांच विषय संचालित करने की ही अनुमति दी. इसमें तमाम डिग्री व डिप्लोमा कोर्स शामिल हैं। यूजीसी के इस आदेश से विश्वविद्यालय प्रशासन में खलबली मच गई है. अब एक बार फिर विश्वविद्यालय ने नए सिरे से प्रत्यावेदन तैयार कर यूजीसी को भेजा है. हालांकि, विश्वविद्यालय के प्रयास से 11 पीजी डिप्लोमा कोर्सों को संचालित करने की अनुमति भी मिल गई है.
यूजीसी ने केवल उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ही ऐसा नहीं किया है, बल्कि देष की सबसे बड़ी संस्था इग्नू समेत राज्य के 14 मुक्त विश्वविद्यालय के 80 फीसद से अधिक पाठयक्रमों की मान्यता रोक दी है.
2005 में पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. लोक निर्माण विभाग के अतिथि गृह से इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे तीन पानी में अपना भवन बनाने के साथ ही विश्वविद्यालय ने कई उपलब्धियां भी हासिल की. प्रदेश के दो रेगुलर विश्वविद्यालय में प्राइवेट फार्म भर की जा रही पढ़ाई बंद हुई. इसके बाद से मुक्त विश्वविद्यालय का क्रेज बढ़ा. अब यहां छात्र संख्या 64 हजार पार कर गई है.
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने कई क्षे़त्रों में प्रगति की, लेकिन क्वालिटी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया. पाठयक्रमों की संख्या कुकुरमुत्ते की बढ़ाते चली गई, जो 80 पार कर गई, लेकिन इसमें 50 से 60 फीसद शिक्षकों की कमी को दूर करने के बारे में गंभीरता नहीं दिखाई गई. प्रदेश में अध्ययन केंद्रों की संख्या भी 250 से अधिक है. अधिकांश में पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है. इसमें केवल विश्वविद्यालय का ही दोष नहीं है. राज्य सरकार ने भी योग्य शिक्षकों की भर्ती कराने के प्रयास भी नहीं किए. यही कारण है कि यूजीसी को इन पाठयक्रमों के संचालन को ही रोकना पड़ गया.
केवल पांच विषयों को ही दी मान्यता, जिसमें बीए, एमए शिक्षाशास्त्र, बीसीए, बीबीए और बीएड शामिल है. इसके अलावा 11 पीजी पाठयक्रमों को संचालित करने की भी अनुमति दी है. तमाम महत्वपूर्ण पाठयक्रम बीएससी, एमएससी, बीकाॅम, एमएसडब्ल्यू, होटल मैनेजमेंट आदि की मान्यता नहीं दी है.
इस पूरे प्रकरण पर कुलसचिव प्रो आरसी मिश्र का कहना है, “फिलहाल विद्यार्थी उन विषयों में प्रवेश ले सकते हैं, जिनमें अनुमति मिल गई है. हमारी कोशिश है कि सभी विषयों को अनुमति मिल जाए. इसके लिए प्रयासरत हैं. यूजीसी को भी कमियों को लेकर भेजे गए सवालों का भी जवाब दे दिया गया है. शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए प्रयास किए जाएंगे. एकमेडमिक कंसलटेंट भी रखे जा सकेंगे. स्थायी नियुक्ति के लिए भी प्रयास तेज किए जाएंगे.”
मुखिया विहीन है विश्वविद्यालय
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में अब तक चार कुलपति ज्वाइन कर चुके हैं. इसमें प्रो एसएस हसन, प्रो विनय पाठक, प्रो सुभाष धूलिया व प्रो नागेश्वर राव सामिल हैं. एक महीने पहले ही प्रो राव को इग्नू का कुलपति बना दिया गया है. इसकी वजह से इस समय उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय स्थायी कुलपति नहीं है. हालांकि, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डीके नौडियाल इसकी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन वह यहां पर समय नहीं दे पाते हैं.
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