1842 के बाद एक शहर के रूप में अस्तित्व में आए नैनीताल शहर को वैदिक काल से त्रि ऋषि सरोवर नाम से जाना जाता रहा है. लेकिन ब्रिटिश भारत में शाहजहांपुर में सक्रिय शराब व्यवसाई बैरन और उस वक्त के कुमाऊं कमिश्नर बैटन की दोस्ती इस शहर को खोजने का कारण बन गई, उससे पहले नैनीताल शहर के आठ-दस किलोमीटर के दायरे में कोई बसासत नहीं थी. घने बांज के जंगल, पशुओं के लिए फैले विस्तृत चारागाह के मध्य लगभग तीन किलोमीटर लंबी और आधा किलो मीटर चौड़ी झील, हाड़ कंपाती सर्दी और बांज के पेड़ों से छनकर आती धूप के बीच नैनीताल एक परी लोक का सा दृश्य प्रस्तुत करता था.
(18 September Nainital Swachhta Karyakram)
घुमक्कड़ बैरन पहले ही इस अद्भुत दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो चुका था और 1842 में वह वाया भीमताल एक बड़ी नाव लेकर फिर नैनीताल पहुंचा था. कमिश्नर बैटन और बैरन सहित जब कुछ अंग्रेज नैनी झील में नौकायन के लिए उतरे, तो नैकाना, बेलुवाखान के ग्रामीणों ने अंग्रेजों को घेर लिया घेराव करने वाले इन ग्रामीणों में नैनीझील और उसके आसपास की भूमि पर अपना हक जताने वाले थोक दार नरसिंह बोरा भी शामिल थे. जिन्होंने इस भूमि के मालिकाना हक के लिए पहले ही कमिश्नर की अदालत में एक वाद दायर किया था. कमिशनर बैटन इन्हें पहचान गया, उसने साथ नौका विहार के लिए मनुहार किया, नौका विहार के बाद जब थोकदार नरसिंह वापस लौटे तब तक परिस्थितियां बदल चुकी थी. नौकायन के मध्य थोकदार के उत्पीड़न और प्रहशन संबंधित कई किस्से प्रचलित हैं.
बहराल नैनीताल जिस की आबोहवा पूरी तरह लंदन से मिलती थी, को कमिश्नर बैटन और शराब व्यवसाई बैरन ने छोटी विलायत के रूप में ही विकसित किया, कोई हड़बड़ी नहीं, सब कुछ व्यवस्थित तरीके से वह करना चाहते थे.
इसके लिए अल्मोड़ा में निवास कर रहे, ठेकेदार, आर्किटेक्ट और अंग्रेजों के विश्वसनीय श्री मोती राम साह को नैनीताल के डिजाइन और विकास की जिम्मेदारी दी गई. मोतीराम साह जब नैनीताल आए, तो दुर्लभ परी लोक सा यह स्थान खूबसूरत होने के साथ ही डरावना भी था. कहां से क्या शुरू किया जाए और कैसे इसको नगर स्वरूप दिया जाए, यह उनकी बड़ी चिंता थी.
(18 September Nainital Swachhta Karyakram)
आज जहां बोट हाउस क्लब है, उसी स्थान पर एक साधु तपस्या रत थे. अपनी दुविधा को मोतीराम साह जी ने साधु से सांझा किया, साधु महाराज ने कहा कि यह देवी का स्थान है. देवी को स्थापित कर, उनकी आज्ञा से ही आगे कुछ करना उचित होगा. मोतीराम साह धर्म परायण व्यक्ति थे. उन्होंने बोट हाउस क्लब के पास ही सबसे पहले मंदिर का निर्माण किया, यही मंदिर नैना देवी मंदिर कह लाया. देवी मां की आराधना और स्तुति के बाद नैनीताल शहर की स्थापना का श्रीगणेश शुरू हुआ, सबसे पहली और बड़ी इमारतों में जिसे पहले राजभवन के रूप में भी जाना जाता है. रैमजे भवन बना फिर, मोतीराम साह भवन मॉडर्न हाउस, स्नोव्यू का राज भवन, चर्च, शेरउड़ कॉलेज का भवन जो थोड़े दिन राजभवन भी रहा और कुछ गिनती के ही भवन प्रारंभ में बने.
तराई से नजदीकी और विलायत का सा मौसम, इन दो कारणों ने नैनीताल को धीरे-धीरे अंग्रेजों की सबसे पसंदीदा जगह बना दिया. यहां बड़ी संख्या में अंग्रेज तथा विदेशी सैलानियों का आना-जाना शुरू हो गया, कुछ होटल बने उनमें सबसे प्रसिद्ध और बड़ा होटल आज के रोप वे के पास #विक्टोरिया होटल था. उस दौर में भी नैनीताल में कब्जा कर लेने की आपाधापी शुरू हो गई थी. अंग्रेजों का शहर होने के बाद भी विकास अनियंत्रित हो रहा था. अंतिम नियामक के रूप में प्रकृति फिर सामने आई और 18 सितंबर 1880 को एक बहुत बड़ा भूकंप जिसमें स्नो भ्यू की पूरी पहाड़ी नीचे आ गई वहां स्थित राज भवन जमींदोज हो गया, झील ने अपना आकार बदला, विस्तृत फ्लैट का निर्माण हुआ पहले से बना नैना देवी मंदिर भी गर्भ में चला गया. अनियंत्रित विकास को प्रकृति की यह बड़ी चेतावनी थी. यह चेतावनी इसलिए भी असरकारक हुई कि तब के विक्टोरिया होटल में 151 विदेशी पर्यटक मारे गए, भारतीयों का हिसाब नही, यह बहुत बड़ी घटना थी.
1855 में कमिश्नर रैम जे कुमाऊं कमिश्नरी को छोटी विलायत ला चुके थे. वह बहुत विजनरी कमिश्नर थे. नैनीताल के विकास के उनके स्वप्न को मानो ग्रहण लग गया, लेकिन यहां से वह चेते थे. पहला जतन नैनीताल की परिस्थितिकी को समझ उसके अनुरूप ही विकास करने का मॉडल तय किया गया. अंधाधुन हो रहे निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई, सबसे पहले नैनीताल को बांधने वाले निकासी नाले बनाए गए, शुरुआत में यह 72 बड़े नाले थे और 234 छोटी नालिया इनसे जुड़ती थी. व्यवस्था ऐसी की गई की इंच भर की मिट्टी न खिसके, नाले और नालियों से पहाड़ को मजबूती देने का यह डिजाइन दार्जिलिंग से लाया गया. कालांतर में यह नाले घटकर 26 रह गए इन नालो से नगर नियोजन के प्रति अंग्रेजों की प्रतिबद्धता को समझा जा सकता है.
1880 के भू स्खलन के बाद, नैनीताल में निर्माण और विकास में तमाम सावधानियां बरती गई और मेविला और स्नो भ्यू कि पूर्वी पहाड़ी को कमजोर मानते हुए, अधिकांश सार्वजनिक निर्माण के कार्य पश्चिमी पहाड़ी यानी आयारपाटा की तरफ किए जाने लगे. यहीं बाद के वर्षों में आज का राजभवन (1900) अस्तित्व में आया, बेहतर शिक्षा के लिए सेंट जोसेफ, सेंट मैरी, शेरउड़ जैसे राष्ट्रीय महत्व के स्कूल यहां स्थापित हुए, विलायती खुशगवार मौसम के कारण नैनीताल हमेशा अंग्रेजों की पहली पसंद बना रहा. श्री मोतीराम साह जी के पुत्र अमरनाथ साह द्वारा जमींदोज हो चुके नैना देवी मंदिर को अपनी निजी भूमि में 100 मीटर पश्चिम दिशा, जहां आज नैना देवी मंदिर है वहां स्थापित किया गया. वर्तमान में श्री राजीव लोचन साह इस मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं.
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कुल मिलाकर नैनीताल एक बेहतर शहर के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाने लगा, बॉलीवुड ने भी इसे नई पहचान दी, यहां स्थापित अंग्रेजी विद्यालय और बाद में सी.आर.एस.टी इंटर कॉलेज ने शिक्षा में बड़ी छलांग लगाई और जिस कारण इस शहर के नागरिकों का चेतना का स्तर हमेशा बेहतर रहा, अंग्रेजों के वक्त ही शहर में आजादी की लड़ाई के बहुत स्वर्णिम अध्याय लिखें गए, यहां माल रोड में गांधी का मार्च, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन और बहुत कुछ ऐतिहासिक घटता गया, एक शहर के रूप में नैनीताल बडता संवरता गया, उत्तर भारतीय पर्यटन को वैश्विक पहचान देने में नैनीताल की महत्वपूर्ण भूमिका है.
आजादी के तुरंत बाद नैनीताल शहर के पहले पालिका अध्यक्ष मनोहर लाल साह ने भी इस शहर को बनाने, बसाने और सेवा के अद्भुत मानदंड कायम किए, पालिका के यह वह अध्यक्ष थे जो संयुक्त प्रांत के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पैदल ही माल रोड पर टहलाते थे. इसी माल रोड में वह खुद भी सफाई में जुट जाते थे. स्वप्निल शहर को बसाने में कुछ ऐसे ही दिल से जुटना होता है.
(18 September Nainital Swachhta Karyakram)
शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित होने के बाद साहित्य और नाटक की दुनिया में भी नैनीताल ने खूब नाम कमाया, सॉन्ग एंड ड्रामा डिवीज़न नैनीताल ने इसके विकास में बड़ी भूमिका अदा की, बैंड स्टैंड पर कैप्टन राम सिंह का बैंड जब बजता था. तो मानो पूरा शहर झूम रहा होता था, खेलों को पहचान देने के लिए दशकों तक गर्मी के दिनों में हॉकी का ऑल इंडिया टूर्नामेंट, ट्रेडर्सकप यहां कि शान रही हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से निकले, बाद के दिनों में युग मंच ने नाटकों के जरिए नैनीताल को राष्ट्रीय पहचान दी. नाटकों की यहां की अभिरुचि एनएसडी में भी छा गई, उसे नैनीताल स्कूल ऑफ ड्रामा कहा जाने लगा.
अंग्रेजी नफासत के बाद भी यह शहर जन आंदोलनों की गर्भ भूमि बना रहा, विश्वविद्यालय आंदोलन, नवम्बर 1977 की जंगल की नीलामी विरोध से बन आन्दोलन की चिंगारी, नशा नहीं रोजगार दो और उत्तराखंड राज्य आंदोलन के कुछ खास अध्याय नैनीताल में ही लिखे गए.
1990 का वर्ष देश के साथ ही नैनीताल के इतिहास के लिए भी खास बनकर आया, कश्मीर में आतंकवाद के बड़ने के साथ ही नैनीताल में पर्यटन व्यवसाय ने उछाल मारा, अखिल भारतीय बिल्डर की गिद्ध दृष्टि नैनीताल पर पड़ी, विकास प्राधिकरण से सेटिंग रंग दिखाने लगी, ऐतिहासिक नाले कब्जाए गए, शहर की रूमानी हवा में लालच की गंध आने लगी, बेतरतीब और अनियंत्रित बड़े हुए पर्यटन ने नैनीताल के फेफड़े फूला दिए.
सन् 2000 में उच्च न्यायालय की स्थापना ने यह दबाव और बड़ा दिया है. हांलाकि उच्च न्यायालय इस दबाव से नैनीताल को कभी भी मुक्त कर सकता है. ऐसे राहत भरे समाचार भी समय समय पर मिल रहे हैं. 2015 के बाद जून माह में मीलों लम्बे जाम के जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं, उसने नैनीताल के विशेष पर्यटन को प्रभावित किया है.
कुल मिलाकर आज ऐतिहासिक नैनीताल शहर, जनसंख्या व यातायात के अत्यधिक दबाव से हांफ रहा है. इसकी नैसर्गिक सुषमा भी संकट में है. अप्रैल 2003 में ऑस्ट्रेलियाई नागरिक रेन्को आन्सेटन ने राजीव लोचन साह जी सहित कुछ वरिष्ठ नागरिकों को झकझोरते हुए कहा कि आपका शहर दुनिया के हजारों शहरों में बेहतरीन है, इसकी कोई तुलना नहीं लेकिन यह बीमार पड़ रहा है, इसे बचाने को कुछ करो. जागरूकता के लिए नैनीताल सफाई दिवस बनाओ जैसे हमने पर्थ में किया, बात समझ में आई नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से 2007 से प्रतिवर्ष 18 सितंबर को नैनीताल के अस्तित्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए जन सहभागिता से सफाई का कार्यक्रम चलाया जा रहा है.
(18 September Nainital Swachhta Karyakram)
2013 में यह क्रम टूट गया. इस वर्ष नए युवाओं के जुड़ने के साथ 18 सितम्बर को जनसहभागिता से नैनीताल स्वच्छता कार्यक्रम फिर प्रारम्भ हो रहा है. हम जिसकी सफलता की कामना करते हैं. उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व धरोहर के रूप में नैनीताल शहर का संरक्षण करें, अब सिर्फ कठोर निर्णय के साथ ही यह स्वपनिल शहर बचाया जा सकता है.
वार्ता सूत्र : श्री प्रयाग पांडे’
प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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