राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड से निकले सबसे बड़े राजनेता नारायण दत्त तिवारी तकरीबन जीवन भर कांग्रेस के वफादार सदस्य रहे. उन्होंने अपना राजनीतिक करियर 1952 में किया था जब वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर नैनीताल विधानसभा सीट से चुने गए थे. उसके बाद 1957 का चुनाव भी उन्होंने इसी पार्टी से इसी सीट से जीता जिसके बाद वे विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए थे.
तिवारी ने 1963 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली जिसके बाद वे अपने चमकीले राजनैतिक सफ़र में अनेक मंजिलों को छूते चले गए. जानकारों का मानना है कि अगर वे 1991 में नैनीताल से लोकसभा का चुनाव बहुत कम अंतर से न हारे होते तो भारत के प्रधानमंत्री होते.
एक समय ऐसा भी आया था जब वे कांग्रेस पार्टी से बाकायदा अलग हुए और उन्होंने अलग से अपनी राजनैतिक पार्टी बनाई.
यह वाकया साल 1994 का है जब वे कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी और पी. वी. नरसिम्हा राव की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट हो गए थे और गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करने नी नीयत से उन्होंने अपनी अलग कांग्रेस पार्टी बना ली जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (तिवारी) रखा गया. इस मुहिम में उनका साथ देने वालों में अर्जुन सिंह, माखन लाल फोतेदार, नटवर सिंह और रंगराजन कुमारमंगलम जैसे दिग्गज नेता शामिल थे.
साल 1996 का चुनाव नारायण दत्त तिवारी ने इसी पार्टी से लड़ा और नैनीताल संसदीय सीट से पर्चा भरा. जाहिर है इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस का आधिकारिक चुनाव चिन्ह नहीं मिला. हल्द्वानी-नैनीताल के लोगों को याद होगा उन्हें दिया गया चुनाव चिन्ह था – फूल चढ़ाती हुई महिला. बावजूद इस तथ्य के यह चुनाव कांग्रेस हार गयी नारायण दत्त तिवारी ने अपने बलबूते पर नैनीताल की सीट जीत ली थी.
इसी साल सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद नारायण दत्त तिवारी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया.
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