इन दिनों औली 200 करोड़ की शादी के चलते खबरों में है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का तो यहां तक बयान सुनने में आ रहा है कि यह शादी विश्व मानचित्र पर औली को स्थान देगी. कोई मुख्यमंत्री को जाकर बताये कि औली का स्थान विश्व मानचित्र पर पहले से है हो सकता है दो सौ करोड़ की चमक के चलते उन्हें न दिख रहा हो.
एक तरफ सरकार बुग्यालों के संरक्षण के नाम पर अपने प्रदेश के लोगों को वहां जानवरों को चरने के लिए ले जाने को नियंत्रित करती है, दूसरी तरफ गुप्ता सेठ को पूरा बुग्याल बर्बाद करने को दिया जा रहा है. बिना प्रशासन की अनुमति के औली में टेंट लग चुके हैं. कुल मिलाकर पैसा दबाकर बोल रहा है.
अखबारों और टीवी चैनलों ने इस शादी को जैसे उत्तराखंड के विकास से जोड़ा है वह हास्यास्पद कम मूर्खतापूर्ण ज्यादा है. जो अखबार स्थनीय लोगों को इस शादी से रोजगार के सपने दिखा रहे हैं उन्हें यह भी बताना चाहिए कि औली में हेलिकॉप्टर से उड़कर आने वाला गुप्ता सेठ का मेहमान स्थानीय लोगों को क्या रोजगार देगा? क्या गुप्ता परिवार स्थानीय टेंट हाऊस से टेंट लेगा? क्या गुप्ता परिवार स्थानीय डीजे वाले की बुकिंग करवायेगा? क्या स्थानीय हलवाई को बुकिंग मिलेगी? क्या खाने का सारा सामान स्थानीय बाजार से आयेगा? क्या किसी स्थानीय कलाकार को रोजगार मिलेगा?
कटरीना कैफ के पीछे नाचने वाली टीम तक मुम्बई से होगी. खाना बनाने वाले से लेकर परोसने वाले बाहर से लाये जायेंगे. फिर क्या रोजगार मिला स्थानीय लोगों को? गुप्ता परिवार 200 करोड़ का चूरा कर जायेगा. उस चूरे का कचरा कौन साफ़ करेगा कैसे करेगा?
कोई अख़बार दो सौ, कोई सौ, कोई पचास हेलिकॉप्टर उड़ने की बात कर रहा है. मान लिया जाय 10 हेलिकॉप्टर ही उड़ते हैं तो उसके लिए सात हैलीपैड तो बनाने ही होंगे. वो कहां बनेंगे और बनेंगे तो मुख्यमंत्री विश्व को नक़्शे में क्या बर्बाद बुग्यालों के ऊपर हैलीपैड के निशान दिखायेंगे?
हर दिन इस रूट में भयंकर भीड़ की ख़बरें हर रोज अख़बार में आ रही हैं. यात्रियों के लिये चलने वाले हेलिकॉप्टर को ढंग से नियंत्रित नहीं किया जा रहा है गुप्ता परिवार और उनके मेहमानों के हेलिकॉप्टर से बड़ा हुआ एयर ट्रेफ़िक कौन नियंत्रित करेगा.
यहां पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव की बात तक नहीं की जा रही है क्योंकि सरकार के मुखिया की समझ में विश्व का तापमान नहीं बढ़ रहा है बल्कि लोग बूढ़े होते जा रहे हैं. मुखिया के अनुसार देखा होगा न आपने लोग कहते हैं पिछले साल से अधिक गर्मी है यह नहीं देखते उनकी उम्र एक साल बढ़ गयी है.
इस सब के बीच उत्तराखंड के उन पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी सोचना चाहिये जिनकी कलम में स्याही तभी आती है जब इंसान मर जाता है कभी जिंदा लोगों के विषय में सोचकर भी उन्हें को कलम घिसनी चाहिये.
– गिरीश लोहनी
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