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वीरेन डंगवाल का स्मारक बनेगा बरेली में

साहित्य अकादेमी सम्मान से पुरुस्कृत विख्यात हिन्दी कवि वीरेन डंगवाल (Viren Dangwal) की स्मृति में शीघ्र ही बरेली में एक स्मारक निर्मित किया जाएगा.

इस आशय की सूचना देते हुए वीरेन डंगवाल के बड़े सुपुत्र प्रशांत डंगवाल ने बताया कि विख्यात लेखक व पत्रकार सुधीर विद्यार्थी के प्रयासों से अंततः जिला प्रशासन की संस्तुति पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वीरेन डंगवाल स्मारक बनाए जाने पर सहमति व्यक्त कर दी है. मशहूर चित्रकार अशोक भौमिक को इस स्मारक की शुरुआती रूपरेखा बनाने का कार्य सौंपा गया है.

यहाँ यह बताना प्रासंगिक होगा कि बरेली 05 अगस्त 1947 को कीर्ति नगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड, भारत में जन्मे वीरेन डंगवाल की कर्मस्थली रहा है. वे यहाँ के बरेली कॉलेज में हिन्दी पढ़ाने के अलावा दैनिक ‘अमर उजाला’ के स्थानीय सम्पादक के तौर पर लम्बे समय तक कार्यरत रहे थे.

उनकी कविताओं में आम आदमी के संघर्ष और रोजमर्रा के जीवन की जद्दोजहद को बहुत बारीकी से रेखांकित किया गया है. पहाड़ और ख़ास तौर पर कुमाऊँ-गढ़वाल का पहाड़ उनकी रचनाओं में बहुत ठोस तरीके से विद्यमान है.

वीरेन डंगवाल/ फोटो: कमल जोशी

अपने समकालीनों में संभवतः सबसे अभिनव और साहसी कवि वीरेन डंगवाल साधारण और रोज़मर्रा दिखने वाले संसार के साथ गहन वस्तुनिष्ठता और कौशल के साथ बर्ताव करते हैं. जैसा कि कई बार कहा जा चुका है, उन्होंने अपने अद्वितीय कविता-संसार में गाय, मेज़ और मक्खी जैसी चीज़ों के लिए भी जगह बनाई. ऐसा करने के लिए बहुत अधिक प्रेम और साहस की दरकार होती है.

पिछले दशकों में उनकी कविताओं ने जैसी ख्याति अर्जित की उसे देखते हुए यह दिलचस्प लगता है उनके कुल मात्र तीन संग्रह प्रकाशित हुए. कवि-आलोचक बार-बार बताते आए हैं कि वीरेन निराला और नागार्जुन की परम्परा के कवि हैं. यह बात अंशतः सच है लेकिन अद्वितीयता उनकी आधुनिकता और सजगता में निहित है. उनकी सामाजिक और राजनैतिक प्रतिबद्धताएं मुखर हैं और साधारण जन के प्रति उनकी सहानुभूति को रेखांकित करती आई हैं.

प्रेम, आशा, संघर्ष और विडम्बना और सबसे ऊपर जीवन के इस महाकवि की रचनाओं ने हमें बार-बार उम्मीद और हौसला दिया है –

इन्हीं सड़कों से चलकर
आते रहे हैं आतताई
इन्हीं पर चलाकर आएँगे
हमारे भी जन

28 सितम्बर 2015 को हुए उनके निधन के बाद से ही उनकी स्मृति को सुरक्षित बनाए रखने के लिए बरेली और उत्तराखंड के साहित्य प्रेमियों द्वारा मांग उठाई जाती रही थी. इस सन्दर्भ में सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है.

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