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किराये के वीडियो कैसेट प्लेयर में सिनेमा के मजे

‘अरे भयी सब लोग कान खोल के सुन लो, फिर मत कैना कि बताया नी. एक तो बड़ी मुसकिल से आज मिला है, वो तो कल की तरा आज भी हमें बेकूफ बनारा था. कैरा था कि तुमसे पैले किसी और की बुकिंग है, तुम कल ले जाना. वो तो हरिया से पैछान है उस्से कैके कित्ती मुसकिल से आज की बुकिंग करी है. साम को ठीक नौ बजे से पिकचर सुरू. नयी तो चार पिकचर पूरी नयी हो पाती हैं, एक तो आजकल लैट भी चली जारी है रात को. कहीं बीडीयो शुरू होने के बाद लैट चली गयी और रात भर नी आयी तो पैसे भुस्स.’ यह बात गुगली और सुदान दोनों लोग से जोर-जोर से कह रहे थे. (Video Cassete Player in 1980)

यह अस्सी के दशक का दौर था खेल और मनोरंजन के नाम पर गिल्ली-डण्डा, घुच्ची, अण्ठी (कंचे) डिब्बी व पतंगबाजी के अलावा शारीरिक खेल-कूद ही मुख्य थे, नहर में नहाना एडवैंचर स्पोर्ट्स था. कहने का तात्पर्य है इन्हीं सब से मनोरंजन होता था. कुछ घरों में दूरदर्शन श्याम-स्वेत टीवी से अपनी जगह बना चुका था. अब आया रंगीन टीवी और वीसीआर को मिलाकर स्टैबलाइजर की मदद से चलने वाला ‘’वीडियो.’

हल्द्वानी में कौन सबसे पहले वीडियो लाया किसने पहले किराये पर चलाने की शुरुआत की यह तो पता नहीं पर सबसे पहले चावला (सरदार जी) के वहां से वीडियो लाकर हमारे मोहल्ले में देखा गया. बाद में तो गुप्ता जी, परिया, पुष्कर और भी न जाने कितनों का यह धन्धा खूब चला.

वीडियो मालिक को तो सौ रुपया रात का चाहिये था और साथ में वह चार कैसेट देता, एक धार्मिक तीन कोई और. लेकिन चलाने के लिए जो आयेगा उसको बीस रुपया अलग से देना होगा मालिक पहले ही बता देता था. रिक्शा में ले जाने व लाने का खर्चा भी तुम्हारा होगा वह चाहे जितना भी ले. हां हां ठीक है कहकर वीडियो लाया जाता था. इसके लिए कम से कम 130-140 रुपये जमा करने होते थे, ज्यादा जमा हो गये तो ज्यादा मजे आ जाते. ओये! पांच रुपये से कम किसी से मत लेना. अरे यार! वो अकेला ही है तीन रुपये ही हैं उसके पास. ले लो चलो… वैसे भी इत्ते तो जमा हो ही गये है.

ठीक नौ बजे. हां, ठीक नौ बजे वीडियो चालू कर दिया जाता था. पहली धार्मिक टाइप की फिल्म लगायी जाती, बड़े-बूढ़े उसको देखने के बाद सो जाते. लेकिन केशब नहीं सोता था, जबकि था वह भी बुड्ढा.

फिर शुरू होती ढिशुम्-ढिशुम् वाली. “अबे थोड़ी देर रूकजा रे हरिया बीस रुपे दिये हैं जड़बाबू ने अभी आये नहीं है. फिर दुबारा लगायेगा बे क्या शुरू से? हमें अगली बार पैसे बी नी देंगे. मैं लगा के सो जाउंगा कैसिट तुम बदल लेना. सुदान को तो आता है कैसिट बदलना. मेरा सोने का इतंजाम कां है? लाइनिंग आयेगी तो मुजे उठा देना हैड साफ करने को. एक साफ कागज भी चाहिये.  हरिया भाई तू बिल्कुल बी चिंता मत कर तेरी खाट बीडीयो के ठीक पीछे लगा दी है, गर्मी के दिन हैं तू चिंता मत कर बस. अरे मुन्नु पानी भी रख दे एक लोटा हरिया भाई के लिये. आवाज तेज मत करना रे रात को. मुजे नींद नी आती. तू चिंता मत कर. फिकर नौट की गोली खा के सोजा. बस.

पहली पिकचर. अरे धार्मिक ही तो है ये ‘पाताल भैरवी’ इसको लगाओ, मजा आ जाएगा. हरिया तू पांचवी कैसिट सटका के लाया है न? लाया तो हूं पर दस रुपे दोगे अलग से मुजे. चल देंगें. पर गानों को फावर्ड करेगा सुदान तभी तो सुबे तक पांच पूरी होगी. पर जंजीर का चक्कु छुरियांआंआंआं वाला गाना पूरा चलाना सुदान भाई! गुगली बोला. हां! हां! सुदान बोला.

अच्छा तो एक पाताल भैरवी, दूसरी जानी दुश्मन, तीसरी नीलकमल, चौथी जंजीर और पाँचवीं? अरे वो तो हरिया के पास है. हरिया सो गया.

पाँचवीं जो बी होगी. तू चार तो देख पैले. सिरफ तीन रुपे दिये हैं तूने.

बीडियो… शुरूउउउउउउउ… ढेंन टैंन टडै़न न

हल्द्वानी निवासी सतीश चन्द्र बल्यूटिया एम. बी. जी. पी. जी. कॉलेज से स्नातक तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय अल्मोड़ा परिसर से विधि में स्नातक हैं. फिलहाल हल्द्वानी में ही प्रैक्टिस करते हैं.

 पहाड़ के लोगों को बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने वाली ख़ास बंदूक

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Sudhir Kumar

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