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कभी ऐसा भी एक गुप्त संगठन था अल्मोड़ा में

सारे देश की तरह कुमाऊँ में भी जहाँ अधिकतर लोग महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलकर स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे, वहीं यहाँ के नवयुवकों ने अपने ढंग से कुछ ऐसे कार्य किये जिनसे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भी चौंक गयी और राज कर्मचारियों की नींद हराम हो गयी. हालांकि नवयुवकों का यह संगठन मुख्य धारा में न रहते हुए भी अज्ञात रहा और इसके कारनामे भी जनता के बीच कम आ सके. अंगरेजी शासन को उहाड़ फेंकने के लिए कुमाऊं क्र अल्मोड़ा में कुछ विद्यार्थियों ने एक संगठन बनाया था जिसका नाम था वीर बालक समाज. (Veer Balak Samaj Almora)

1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ कुमाऊं में राष्ट्रीय आन्दोलन का काफी जोर था. उस समय राष्ट्रीय नेताओं के आह्वान पर हजारों लोग सत्यग्रह करते हुए जेल गए. ठीक उसी समय अल्मोड़ा में वीर बालक समाज की स्थापना हुई. (Veer Balak Samaj Almora)

आरम्भ में इस संगठन को एक क्लब के रूप में चलाया गया जिसकी बैठकें हरेक रविवार को होती थीं. इस संगठन में मुख्यतः वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, कवि-गोष्ठियां, या किसी विषय पर भाषण इत्यादि आयोजित किये जाते थे. राष्ट्रीय आन्दोलन पर भी कभी-कभार चर्चा होती थी और कभी-कभी किसी नेता या कार्यकर्ता की गिरफ्तारी पर उसे जेल तक नारे लगाते हुए पहुंचाना भी इसके सदस्यों का काम था. बच्चों का भीड़भाड़ में शामिल हो जाया स्वाभाविक समझ कर इस तरफ पुलिस का ध्यान कम ही जाता था.

कुछ ही दिनों में कई लोगों की सहायता से अच्छी पुस्तकें भी संस्था को मिलने लगीं. संस्था ने एक नाटक खेलने का निर्णय लिया. हरीश चन्द्र जोशी वकील द्वारा लिखा गया नाटक ‘नीच’ इस के लिए चुना गया. संगीत निर्देशन का कार्य प्रख्यात ध्रुपद गायक चंद्रशेखर पन्त ने किया जो बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर बने. इन्हीं लोगों के प्रभाव के चलते रैमजे स्कूल का हॉल भी मिल गया जो इस स्कूल के मिशनरी होने के चलते एक मुश्किल काम था. नाटक खेला गया और सराहा गया लेकिन राष्ट्रीय भावना के समावेश की बात कहीं नहीं आई. अलबत्ता नवयुवकों को इसके मंचन से बड़ी प्रेरणा मिली.

तब उस संस्था के भीतर एक और गुप्त संस्था ने जन्म लिया जिसका मुख्य उद्देश्य था सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकना. ऐसे कुछ युवकों को छांटा गया जो देश के लिए कुछ भी कर और सह सकने का माद्दा रखते हों. इन नवयुवकों को मिलाकर एक गुप्त संगठन बनाया गया जिसमें एक शपथ पत्र पर अपने खून से हस्ताक्षर करने पर ही सदस्यता मिल सकती थी.

वीर बालक समाज की अन्य गतिविधियाँ यथावत चलाती रहीं पर ऐसा पुलिस की आँखों में धूल झोंकने के लिए किया जाता था. उस समय वीर बालक समाज के सभापति थे भुवन चन्द्र जोशी और सचिव थे देवी दत्त जोशी हेडमास्टर. इसके संरक्षकों में रमेश चन्द्र पन्त और संगीतज्ञ चंद्रशेखर पन्त शामिल थे.

इस गुप्त संगठन के सदस्यों की संख्या आठ या नौ थी. इनमें हरीश चन्द्र पन्त, सुरेन्द्र तिवारी, मोहन उप्रेती, गणेश दत्त जोशी, हरीश चन्द्र जोशी, भुवन चन्द्र जोशी, रेवाधर जोशी और अयोध्या प्रसाद अग्रवाल पहलवान शामिल थे.

संगठन के द्वारा तय किया गया कि लोगों में जागृति फैलाने के उद्देश्य से ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी पर्चा छपाया जाय. इस कार्य के लिए एक गुप्त प्रेस की व्यवस्था पर भी विचार किया गया. सदस्यों ने तय किया कि अल्मोड़ा में उस समय की सबसे अच्छी प्रेस इन्द्रा प्रिंटिंग वर्क्स से टाइप चुराए जाएं. एक रात को चोरी की इस घटना को अंजाम दिया गया और अक्षरों को जोड़कर पैम्फलेट छापे गए.

पर्याप्त संख्या में पर्चे छप जाने के बाद दिसम्बर की एक सर्द रात को सारे शहर में इन्हें चिपका दिया गया. उन पर्चों में – ‘आग जलेगी – ब्रिटिश साम्राज्यवाद के नाश के लिए’ जैसी इबारत लिखी हुई थी और उन पर सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी का नाम छद्म रूप से लिखा गया था जो कि सरदार भगत सिंह की पार्टी का नाम था.

दूसरे दिन सारे शहर में तहलका मच गया. सारे सरकारी कर्मचारियों को उन पर्चों को दीवार से खुरचने के काम में लगा दिया गया. घटना का विवरण देश के अनेक समाचारपत्रों में छपा. बड़े अधिकारी परेशान हुए और तत्कालीन प्रांतीय सरकार भी इससे विचलित हुई.

इस बीच मुहर्रम की रात को रैमजे स्कूल की साइंस लैब से बम निर्माण की सामग्री चुराई गयी. इसके अलावा वीर बालक समाज ने एक और साहस और जोखिम भरा काम कर डाला. सरकारी कार्यालयों से यूनियन जैक उतार कर तिरंगा फहरा दिया गया. इनमें थाना अल्मोड़ा और राजकीय इंटर कॉलेज का भवन भी शामिल थे. यह कार्य 31 जनवरी 1942 को किया गया.

जब सुबह लोगों ने सरकारी भवनों पर तिरंगा देखा तो उन्हें विश्वास होने लगा कि शीघ्र ही कोई बड़ी शक्ति यहाँ आकर विदेशी हुकूमत को उखाड़ फेंकेगी.

इस कार्यक्रम के बाद सरकारी खजाना लूटने और हथियार हासिल करने की योजना बनी लेकिन इसी बीच पुलिस की सरगर्मियां बढ़ गयी थीं. कई गुप्तचर बुलाये गए और सभी लोगों और विद्यार्थियों पर कड़ी नजर रखी जाने लगी. यहाँ तक कि वीर बालक समाज के सदस्यों के अभिभावकों को भी डराया-धमकाया जाने लगा. पुलिस को वीर बालक समाज की गतिविधियों पर शक हो गया था और उसके हर कार्यक्रम पर निगाह रखी जाने लगी. परिणामतः इसके सदस्य बहुत विचलित हो गए. समाज की तरफ से होली की बैठकें भी आयोजित की गईं लेकिन गुप्तचर विभाग वहां भी सतर्कता से मौजूद रहा.

जब तक इस प्रकार की घटनाएं अल्मोड़ा में चल रही थीं तब समाज के गुप्त संगठन ने तय किया कि कुछ समय तक अन्य कार्यक्रमों को स्थगित रखते हुए देश के अन्य क्रांतिकारियों से संपर्क किया जाए. इस कार्य हेतु धन की आवश्यकता थी अतः तय किया गया कि सभी गुप्त सदस्य अपने-अपने घरों से सोना चुराकर लाएं जिसे बेचकर बाहर जाने का कार्यक्रम तय हुआ. बाहर जाने वाली टीम के लिए गणेश दत्त जोशी, हरीश पन्त, हरीश जोशी और अयोध्याप्रसाद का चयन हुआ. तय हुआ कि जिस तरह पहाड़ के लड़के जिस तरह अक्सर घरों से भाग जाया करते थे वैसे ही यह कार्य भी किया जाए. अल्मोड़ा में रह गए सदस्यों ने सरकारी काम पर निगाह रखते हुए उसकी सूचना इन लोगों तक पहुंचाने का काम करना था.

जो टीम बाहर गयी उसने लखनऊ जाकर क्रांतिकारियों का पता लगाना शुरू किया. इस बीच गणेश दत्त जोशी के पिता अपने पुत्र की खोज में लखनऊ जा पहुंचे. पिता से सामना होने पर गणेश दत्त जोशी ने कहा – “आप कौन हैं, मैं आपको नहीं जानता!” और चकमा देकर भाग गए.

इस बीच क्रांतिकारियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करते हुए यह दल कानपुर पहुंचा जहां उनकी मुलाक़ात क्रांतिकारी श्री निगम से हुई. श्री निगम ने दो-तीन दिन उनसे बातचीत करने के बाद सलाह दी कि वे बिना ज्ञान अर्जित किये ऐसे कार्यों में सफल नहीं हो सकते. उन्होंने नवयुवकों को राय दी कि बचे हुए पैसे से कुछ अच्छी किताबें खरीद लें. दल ने ऐसा ही किया और वापस अल्मोड़ा आ गया.

जब अन्य सदस्यों ने उन्हें किताबों के ढेर के साथ देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. किताबें छिपाकर रख दी गईं. कुछ दिनों बाद जब पं. चंद्रशेखर पन्त को पता चला कि किताबें चोरी किये गए सोने से मिले पैसों से खरीदी गयी हैं तो उन्होंने कहा कि चोरी से खरीदी गयी पुस्तकें ज्ञान नहीं दे सकतीं. इन किताबों को जला दिया गया. चुराए गए टाइप पहले ही नदी में बहाए जा चुके थे.

इसी बीच अगस्त क्रान्ति का बिगुल बज गया. अनेक नेता बंदी बना लिए गए.गणेश दत्त जोशी जिन पर शक पहले से ही था, कमिश्नर के घायल हो जाने की घटना के बाद वैसे ही पकड़ लिए गए और उन्हें लम्बी सजा हुई. हरीश पन्त भी पकड़े गए.

अयोध्याप्रसाद अग्रवाल को भी बंदी बना लिया गया लेकिन इन सभी को राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण बंदी बनाया गया था. वीर बालक समाज के कारनामों के बारे में सरकार को तब भी कुछ पता नहीं चल सका. इसके साथ ही समाज के गुप्त संगठन के कार्यकर्ता रेवाधर जोशी को भी राजकीय इंटर कॉलेज से निकाल दिया गया लेकिन चार माह बाद उन्हें वापस ले लिया गया. इस प्रकार वीर बालक समाज टूटने की कगार पर आ गया. कुछ दिनों तक रविवारीय गोष्ठियां चलीं लेकिन पुलिस बहुत तंग करने लगी थी. राष्ट्रीय नेता सभी जेलों में बंद थे और अभिभावकों ने अपने बच्चों पर कड़ी निगाह रखना शुरू कर दिया. कुछ महीनों बाद अनेक सदस्य उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले गये.

इस प्रकार यह वीर बालक समाज जिसने अल्मोड़े और कुमाऊं की राष्ट्रीय धारा में अपना विशिष्ट सहयोग देकर लोगों को जागृत किया, तथा जिसके कार्यों से ब्रिटिश सरकार भी सकते में आ गयी, राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण सहयोग देकर विदा हो गया.

-लक्ष्मी लाल वर्मा

(‘पुरवासी’ के 1992 के अंक से साभार)  

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