पहाड़ और फ़ौज का सम्बन्ध बहुत पुराना और अन्तरंग रहा है. पहले विश्वयुद्ध के समय से ही कुमाऊँ-गढ़वाल के वीरों की बहादुरी के असंख्य किस्से-कहानियां अब किंवदंतियों का हिस्सा बन चुके हैं.
अमूमन पहाड़ के ये फ़ौजी दूरस्थ-दुर्गम गाँवों के निर्धन परिवारों के बाशिंदे होते हैं जिन्हें रोजी-रोटी की तलाश दूर-दराज सीमान्त इलाकों में ले आयी होती है. इन के घरों में बूढ़े-माँ बाप होते हैं, पिता को सतत याद करते बच्चे होते हैं, प्रतीक्षारत पत्नियां-प्रेमिकाएं होती हैं और चचा-चाची-ताई-ताऊओं और भुली-भुलाओं से भरा पूरा एक पूरा कुनबा होता है जो कितने ही तानों बानों से बुना गया होता है जिनके सूत्र आर्थिक से लेकर भावनात्मक स्तरों पर बहुत गहरे जुड़े होते हैं.
वर्ल्ड म्यूजिक डे: उत्तराखंड की न्यौली
भारतीय सेना में उत्तराखंड के युवाओं का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहता है. प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही उत्तराखंड के युवा सेना में शामिल होते आये हैं. उत्तराखंड के वीरों के शौर्य और पराक्रम की अनेक कहानियां इतिहास में दर्ज हैं. आधुनिक भारत के इतिहास में ऐसा शायद ही कोई युद्ध होगा जिसमें उत्तराखंड के वीरों की दास्तानें अमर न हुई हों.
पहाड़ी समाज और इन फौजियों का सम्बन्ध इस कदर प्रगाढ़ रहा है कि इस थीम को लेकर असंख्य लोकगीत, कविताएं और कहानियां बुने जा चुके हैं.
रितुरैण या ऋतुरैण: चैत के महीने में गाये जाने वाले लोक गीत
2017 में टॉक ऑफ़ द टाउन्स यू ट्यूब चैनल ने एक गीत रिलीज किया. गीत के बोल थे मेरी ड्यूटी बोर्डर ओ आकाश का तारा. यह गीत 2017 सबसे हिट गढ़वाली गीतों में रहा. इस गीत को गाया था बालीवुड के मशहूर गायक उदित नारायण ने.
एक फ़ौजी की आपबीती को वाणी देता यह यह गीत भी बॉर्डर-बीमार माँ-अकेलेपन की उसी थीम पर आधारित है जिस के बारे में ऊपर लिखा गया है.
सुनिए ‘मेरि ड्यूटि बौडरा’
मेरि ड्यूटि बौडरा ओ आकाश का तारा.
घर में छू मेरि ईजा भौतै बिमारा
पहाड़ की घसियारिनों के गीतों को देश भर में गुंजा देने वाली इस गायिका की पहली पुण्यतिथि है आज
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