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राज्य स्थापना दिवस विशेष – 1

उत्तराखण्ड शब्द मैंने पहली बार कक्षा तीन में ईजा बाबू के झगड़े में सुना था. बाबू की थल में परचून की दुकान थी. जो उन दिनों कई दिनों तक बंद रही थी. बाबू रोज देर शाम नशे में धुत्त घर आते और अक्सर माँ को समझाते की आज की मत सोच हमारा राज्य उत्तराखंड बनेगा तो हमारे बच्चों के लिये स्कूल बनेगा गाँव में ही, गांव से थल तक पक्की सड़क होगी, आदमियों के लिये ही नहीं जानवरों तक के लिये गांव में अस्पताल होगा. फिर जब ईजा पूछती और तुम्हारी शराब तो बाबू कहते जब राज्य में शराब की दुकान ही नि होगी तो पियेगा कहां से आदमी.

राज्य बनने के दो साल बाद एक बार हमारे स्कूल में चैकिंग वाले सैप ( साहब ) आये थे उन्होंने सुबह प्रार्थना के समय सब बच्चों के सामने मुझसे से सवाल पूछा हमारे राज्य का क्या नाम है? सही उत्तर मालूम होने के बावजूद मेरे मुंह से न जाने क्यों उत्तराखण्ड निकला. इस जवाब के लिये बाद में अगले दो दिन प्रार्थना सभा में तिरंगे के नीचे में मुर्गा बनाया गया.

इन दो सालों में बाबू की थल की दूकान लगभग पूरी तरह ख़त्म हो चुकी थी और वह शराब के भयंकर लती हो चुके थे. गांव में सड़क, अस्पताल का तो अता – पता नहीं लेकिन तल्ला गांव में सरकारी शराब की दुकान जरुर खुल गयी थी. शराब की अति के कारण बाबू राज्य बनने के आठ एक साल बाद निकल गये.

ईजा ने मुझे बड़े जतन करके पिथौरागढ़ डिग्री कालेज से बीएससी करा दी ट्यूशन पढ़ाकर मैंने बीएससी को एमएससी में तब्दील किया और तलाश शुरू की नौकरी की.
मुझे हमेशा से पहाड़ प्यारा था और मैं अपनी पूरी जिंदगी इन्हीं पहाड़ों में गुजारना चाहता था. जिसके दो तरीके थे एक या तो अपना कोई बिजनेस या उत्तराखण्ड सरकार की नौकरी. बिजनेस में बाबू का हाल देख चूकी मां पहले विकल्प के लिये कभी तैयार नहीं होती ना ही मेरे पास इसके लिये ढेले भर के पैसे ही थे. सो मैंने रुख किया उत्तराखण्ड सरकार की नौकरी की तलाश की.

आज के दिन मुझे खुद याद नहीं मैंने उत्तराखण्ड सरकार की कितनी विज्ञप्तियों के लिये आवेदन कर दिये हैं. एक परीक्षा में न्यूनतम तीन साल का समय लगता है. उसपर भी कभी भी कैंसिल होने का खतरा हमेशा रहता है. डेढ़, दो, आधा, पौना से पहले मेरा सलेक्सन रुकता था अब यही डेढ़, दो, आधा, पौना शाम को मुझे चाहिये होते हैं.

यह लेख हमें हमारे फेसबुक पेज पर लक्ष्मण सिंह से प्राप्त हुआ है. राज्य स्थापना दिवस पर हमें ऐसे ही कुछ अन्य लेख भी प्राप्त हुये हैं. जिनमें से कुछ हम प्रकाशित कर रहे हैं.

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Girish Lohani

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