त्रिशूल के नीचे एक चोटी पर लेता मैं अपनी विपरीत दिशा में खड़ी एक चट्टान का दूरबीन से निरीक्षण कर रहा था.मैं सभी हिमालयी बकरियों से ज्यादा सधे हुए क़दमों वाले ‘थार’ का जायजा ले रहा था. उस खड़ी चट्टान के बीच एक कगार पर मुझे एक थार और उसका बच्चा सोते दिखे. (The Temple Tiger and More Man-eaters of Kumaon)
कुछ देर में मादा थार खड़ी हुए और अपने शरीर को फैला दिया और अपने बच्चे को दूध पिलाने लगी. दो मिनट बाद थार ने बच्चे से दूध छुड़ा दिया और कगार के साथ कुछ कदम आगे की तरफ बढ़ी. एक पल रुकने के बाद वह एक दूसरी तंग कगार पर कूद पड़ी, जो करीब 15 फीट नीचे थी. अकेला छूटने पर बच्चा बैचैनी से आगे-पीछे कूदता हुआ अपनी मां को देखता रहा. लेकिन वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि अपनी मां के पास कूदकर पहुँच जाये. क्योंकि कुछ ही इंच चौड़ी इस कगार के नीचे हजार फीट की गहरी खाई थी.
त्रिशूल का पिशाच : जिम कॉर्बेट
दूरी की वजह से मैं यह नहीं सुन सकता था कि क्या मां अपने छौने को नीचे कूदने को प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन जिस तरह उसने अपना सर पीछे अपने बच्चे की तरफ घुमाया हुआ था उससे लगता था कि वह ऐसा कर रही है. बच्चे की बढती हुई चंचलता देखकर मां को डर लगा कि वह कोई गलत कदम न उठा ले, माता थार चट्टान के ऊपरी हिस्से की एक छोटी सी दरार के सहारे ऊपर चढ़ी और अपने बच्चे के पास जा पहुंची. वहां पहुंचकर वह इसलिए लेट गयी क्योंकि वह उसे दूध नहीं पिलाना चाहती थी. कुछ देर बाद वह उठी और बच्चे को एक मिनट तक फिर दूध पिलाया. इसके बाद वह पुनः कगार के कोने में खड़ी हुई और दोबारा नीचे कूद गयी. बच्चा इस बार भी आगे-पीछे कूदता रहा लेकिन छलांग मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. माता थार ने लगभग आधे घंटे तक सात बार इसी प्रक्रिया को दोहराया. आखिर बच्चे ने खुद को किस्मत के हवाले किया और नीचे कूदकर सुरक्षित अपनी मां की बगल में जाकर खड़ा हो गया. इस बार मां ने उसे ईनाम में पेट भर दूध पीने को दिया.
इस प्रक्रिया के जरिये वह अपने बच्चे को यह पाठ पढ़ाना चाहती थी कि उसकी मां जहां भी उसे ले जाएगी उसके पीछे जाना पूरी तरह सुरक्षित है. मां का यह अनंत धैर्य और उसके बच्चों की यही असंदिग्ध आज्ञाकारिता ही सभी जंगली जानवरों के बच्चों को आने वाली जिंदगी की चुनौतियों के लिए परिपक्व बनाती है.
(जिम कॉर्बेट के किताब ‘द टैम्पल टाइगर एंड मोर मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊँ’ का एक अंश)
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