इन मुश्किल दिनों में फिजिक्स की मुफ्त ऑनलाइन क्लासेज लगा रहे हैं खलीफा अध्यापक मनमोहन जोशी
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में विद्यार्थियों की पढ़ाई का बहुत नुकसान हो रहा है. इसकी भरपाई के लिए नगरों-कस्बो और गाँवों के अनेक विद्यालय अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन क... Read more
हाल ही में गाँव सूर्याजाला, नैनीताल में 16वीं नेशनल माउंटेन बाइक चैम्पियनशिप सम्पन्न हुई. चैम्पियनशिप में उत्तराखण्ड की साइकिलिस्ट पूनम राना खोलिया ने 2स्वर्ण पदक हासिल किये. प्रस्तुत है अंत... Read more
पीली कोठी, जज फ़ार्म और हल्द्वानी के बाकी मोहल्लों के नाम रखे जाने की कहानी
हल्द्वानी में पीली कोठी एक बड़ा क्षेत्र है लेकिन इसकी शुरुआत एक कोठी से हुई थी. इलाहाबाद से होम्योपैथिक डॉक्टर जयदत्त गुरु रानी 1928 में हल्द्वानी आकर रहने लगे थे. शुरू में मुखानी चौराहे पर... Read more
हल्द्वानी शहर के निकट कई अन्य बस्तियां भी हुआ करती थीं. जो अब विकसित हो गई हैं. गोरा पड़ाव में गोरे अपना पड़ाव डाला करते थे. भोटिया पड़ाव में जाड़ों में जोहार शौका यानी भोटिया समुदाय अपनी भे... Read more
हल्द्वानी को व्यापार केंद्र बनाने के लिए हेनरी रैमजे ने काशीपुर से व्यवसायियों को बुलाया
कालाढूंगी चौराहे पर एक पेड़ के नीचे कालू सैयद या कालू सिद्ध बाबा के नाम पर लोग गुड़ चढ़ाते हैं. कहते हैं पहले यहां मुस्लिम भी मन्नतें मनाने आया करते थे, लेकिन जब से यहां घंटे, घड़ियाल बजने लग... Read more
लोहाघाट का मडुवा और थल-मुवानी का लाल चावल : सब मिलने वाला हुआ भगत जी की चक्की में
नैनीताल रोड में एम. बी. कॉलेज के दाएं दुर्गा सिटी सेंटर से आगे जगदम्बा मंदिर में आप अक्सर हाथ जोड़ते होंगे. अब आगे बढ़ फिर सीधे हाथ जाते रहिए. एक तरफ नहर कवरिंग तो बाएं हाथ छोटी मंझली कई कई... Read more
हल्द्वानी के कुछ पुराने परिवार
[पिछली क़िस्त: लॉर्ड हार्डिंग ने बनवाया था काठगोदाम का वह बेजोड़ गौला पुल] हरिदत्त जोशी अपने परिवार की परंपरा को बनाये रखते हुए समाजसेवा में भी अग्रणी रहे. वह आर्य समाजी थे. राम मंदिर की धर्मश... Read more
अक्टूबर जैसा अक्टूबर आया ही नहीं इस बार पहाड़ों में
पहाड़ों में पर्यटन का दूसरा बड़ा सीजन होता है अक्टूबर सीजन. एक ज़माने में इस दौरान आने वाले बंगालियों की बड़ी संख्या के कारण इसे बंगाली सीजन कहे जाने की शुरुआत हुई. बंगाल में इस दौरान चल रही दुर... Read more
[पिछली क़िस्त: 24 अप्रैल 1884 को सबसे पहले रेल पहुंची थी काठगोदाम में] काठगोदाम में गौला नदी पर सन 1913-14 में लार्ड हार्डिंग ने 350 फीट लंबा बहुत आकर्षक धनुषाकार पुल बनवाया. जिसमें नीचे से... Read more
[पिछली क़िस्त: 1888 में अंग्रेजी मिडिल स्कूल की तरह शुरू हुआ था हल्द्वानी का एम. बी. कॉलेज] लकड़ी का कारोबार यहाँ बहुतायत में होता था तथा काठगोदाम में काठबांस की चौकी थी. पहाड़ों से गौला में ‘... Read more
Popular Posts
- डी एस बी के अतीत में ‘मैं’
- शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया
- अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक
- शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?
- वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा
- देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी
- चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था
- उत्तराखंड में भूकम्प का साया, म्यांमार ने दिखाया आईना
- हरियाली के पर्याय चाय बागान
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत