साधो हम बासी उस देस के – 8 –ब्रजभूषण पाण्डेय (पिछली कड़ी : बावन सेज, तिरसठ आँगन, सत्तर ग्वालिन लूट लिए) चौधरी मास्टर परमानेंट शिक्षक नहीं थे. लेकिन इस विद्यालय में वो सत्ताईस सालों से प... Read more
बावन सेज, तिरसठ आँगन, सत्तर ग्वालिन लूट लिए
साधो हम बासी उस देस के – 7 –ब्रजभूषण पाण्डेय (पिछली कड़ी : स्वस्थ बातचीत का वर्जित विषय ) साँकल फिर झनकी ‘सर मे आई कम इन?’ त्रिभुवन गुरूजी ने आँख उठा कर निहारा. ‘क्या... Read more
साधो हम बासी उस देस के – 5 -ब्रजभूषण पाण्डेय (पिछली कड़ी : बार्क मतलब खाली भौंकना नहीं होता उर्फ़ कैस्केडिंग इफ़ेक्ट की बारीकियां) जमुना परसाद उन दोनों को फ़ुल इग्नोर मारते हुए अपनी चेयर पर रूल... Read more
साधो हम बासी उस देस के – 4 -ब्रजभूषण पाण्डेय पिछली कड़ी : यह क्रांतिकारी दिन था मेला बीत चुका था. परेवा झमटहवा पीपर की ओर, किसान गेहूँ बुआई के लिए सिवान की और और हम मस्ती भरी अनियमित जीवन शैल... Read more
यह क्रांतिकारी दिन था
साधो हम बासी उस देस के – 3 -ब्रजभूषण पाण्डेय टुच्ची और हमारी सारी उम्मीदें तो बस ग्रू के करम पर टिकी थीं. सो उसकी ख़ुशी में ख़ुश होने का सफल दिखावा करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई दूसरा चारा... Read more
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