कुमाऊं की रामलीला का विस्तृत इतिहास
सांस्कृतिक परम्परा की दृष्टि से उत्तराखण्ड एक समृद्ध राज्य है. समय-समय पर यहां के कई इलाकों में अनेक पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं. लोक और धर्म से जुड़े इन उत्सवों की आस्था समाज के साथ बहुत ग... Read more
आखिर क्यों भूल गये हम ‘कालू महर’ को
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उत्तराखण्ड के काली कुमाऊं यानि वर्तमान चम्पावत जनपद का अप्रतिम योगदान रहा है. स्थानीय जन इतिहास के आधार पर माना जाता है कि लोहाघाट के निकटवर्ती सुई-बिसुंग इलाके क... Read more
कुमाऊं का स्वतंत्रता संग्राम
उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की प्रारंभिक शुरुआत 1857 के दौर में एक तरह से काली कुमाऊं (वर्तमान चम्पावत जनपद ) से हो चुकी थी. वहां की जनता ने अपने वीर सेनानायक कालू महरा की अगुवा... Read more
ज्ञान पंत की रचनाओं में बसता है समूचा पहाड़
हाल ही के वर्षो में ’बाटुइ’ शीर्षक से प्रकाशित कविता संग्रह कुमाउनी साहित्य में रुचि रखने वालों लोगों के लिए एक नायाब कृति के रुप में उभर कर आई है. वरिष्ठ रचनाकार ज्ञान पंत द्वारा इस संग्रह... Read more
लोक गायिकाओं का समृद्ध इतिहास रहा है पहाड़ में
पहाड़ के लोक में महिला लोक गायिकाएं पहले भी रही हैं जिनमे कुछ ने संचार माध्यमों से प्रसिद्धि पाई तो कुछ ने गुमनामी में रहकर भी यहां के लोक को अपनी गायन कला से सजाने और संवारने का अद्भुत कार्... Read more
भारतीय संस्कृति में नदियों को सर्वोच्च सत्ता के रुप में आसीन करने और उसे देवत्व स्वरुप प्रदान करने की अलौकिक परिकल्पना रही है. लोक में यह मान्यता प्रबल रुप से व्याप्त है कि नदियों का स्वभाव... Read more
सत्तर के दशक में लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र से पर्वतीय इलाके के लोगों लिए एक कार्यक्रम प्रसारित होता था उत्तरायण. यह कार्यक्रम तकरीबन एक घण्टे चला करता था. तब उत्तरायण के माध्यम से पहाड़ के गी... Read more
गेहूँ की नई नस्ल पैदा कर देने वाले उत्तराखण्ड के किसान योद्धा नरेन्द्र सिंह मेहरा से मिलिए
कुमाऊं अंचल के प्रवेश द्वार हल्द्वानी शहर से सटा हुआ गौलापार क्षेत्र खेती, बागवानी और पशुपालन की दृष्टि से बहुत समृद्ध माना जाता है. प्रशासनिक इकाई की दृष्टि से गौलापार क्षेत्र नैनीताल जनपद... Read more
फूलदेई छम्मा देई दैण द्वार भरी भकार
मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है. पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके... Read more
डाण्डी कांठी में बसन्त बौराने लगा है
भारतीय संस्कृति में नदी, पहाड़, पेड़-पौंधे पशु-पक्षी, लता व फल-फूलों के साथ मानव का साहचर्य और उनके प्रति संवेदनशीलता का भाव हमेशा से रहा है. प्रकृति और मानव के इस अलौकिक सम्बन्ध को स्थानीय... Read more
Popular Posts
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा
- विसर्जन : रजनीश की कविता
- सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं
- भू विधान व मूल निवास की लहर
- उत्तराखंड हिमवंत के देव वृक्ष पय्यां
- मुखबा गांव का आतिथ्य
- प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
- प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
- असोज की घसियारी व घास की किस्में
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
- परम्परागत घराट उद्योग
- ‘गया’ का दान ऐसे गया
- कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
- यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
- कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
- शो मस्ट गो ऑन
- सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल