रोपाई से जुड़ी परम्पराओं पर एक महत्वपूर्ण लेख
आज भले ही हमारे खेत बंजर हो रहे हैं. हम गुणी-बानरों की बात कहकर खेती छोड़ रहे हों पर एक समय वह भी था जब खेती के लिए लोग नौकरी छोड़कर घर आ जाते थे. मैंने कई लोग देखे हैं कि तीन भाई हों तीनों... Read more
असौज का नाम आते ही पहाड़ में बुतकार लोगों की बाजुएं फड़कने लगती हैं और कामचोरों की सास मर जाती है. पहाड़ में कृषि का कार्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है इसलिए सबसे ज्यादा आफत महिल... Read more
गले में पाटी लटकाकर स्कूल जाने की याद
लोग अपने कालेज के दिन याद करते हैं. जवानी के दिनों पर चर्चा करते हैं पर मुझे लगता है पहाड़ी लोग अपने स्कूल के समय को याद करते हैं. उसमें भी हमारी कलम-दवात और पाटी (तख्ती) वाली पीढी. अगर दिन... Read more
पहाड़ों में ‘धिनाली’ और उससे जुड़ी लोक मान्यतायें
धिनाली कुमाऊनी का एक शब्द है जिसका सामान्य मतलब होता है- दूध, दही, घी, मठ्ठा, मक्खन आदि यानि दूध और दूध से बने पदार्थ डेयरी उत्पाद पर पहाड़ के सन्दर्भ में यह शब्द बहुत व्यापकता लिये हुए है.... Read more
‘ह्यून’ पहाड़ों में सर्दी का मौसम
ह्यून यानि कि सर्दी का मौसम. पहाड़ों के मुख्य तीन मौसम – रूड़, चौमास, ह्यून में सबसे अच्छा मौसम ह्यून का ही होता है. हालांकि इस मौसम में कुछ जटिलतायें भी हैं. मंगसीर, पूस और माघ का महि... Read more
पहाड़ में कौतिक की बेमिसाल यादें
कौतिक का मतलब होता है मेला. मेले तो हर जगह लगते हैं और हर मेले का अपना सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और व्यापारिक महत्व रहा है. कुमाऊं गढ़वाल के कई मेले प्रसिद्ध हैं. इन मेलों पर शिरकत करके पहाड़ के... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
