लोक में रचे बसे रंग और पहाड़ की कलाकारी
पहाड़ में अपनी भावनाओं को रेखाओं, आकृतियों का रूप दे उनमें रंग भर जीवंत कर देना हर घर-आँगन, देली-गोठ और देबता की ठया में दिखाई देता. इसमें हाथ का सीप होता. कुछ नियम कायदों के संग सीधी सादी म... Read more
गंगोलीहाट की डॉ. सविता जोशी जो गुड़गांव में गेरु और बिस्वार से ऐपण बना कर देश और दुनिया में अपनी संस्कृति को लोकप्रिय बना रही हैं
ऐपण हमारी परवरिश का एक हिस्सा रहा है जो बाद में केवल महिलाओं और लड़कियों तक सीमित रह गया. ऐपण का मतलब है लीपना. लीप शब्द का अर्थ है अंगुलियों से रंगने से है. गेरु की पृष्ठभूमि पर बिस्वार अथवा... Read more
कुमाऊं की पारंपरिक चित्रकला ऐपण
दीवाली का त्यौहार नजदीक ही है. इस त्यौहार में कुमाऊ के सभी घरों को ऐपण से सजाया जायेगा. ऐपण एक पारंपरिक कुमाऊनी चित्रकला है. इस लोक चित्रकला का सभी स्थानीय धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण... Read more
Popular Posts
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो