भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की
30 अगस्त 1923 को जन्मे मशहूर गीतकार शैलेन्द्र का असल नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र था. (Remembering Lyricist Shankar Shailendra) 1947 में भारतीय रेलवे की माटुंगा, मुम्बई वर्कशॉप में एक एप्र... Read more
छलिया मेरा नाम
हिंदुस्तान के बंटवारे की पृष्ठभूमि पर कई फ़िल्में बनी हैं. ऐसी ही एक फ़िल्म थी ‘छलिया’ (1960). फ्योदोर दोस्तोवस्की के नॉवेल ‘वाइट नाइट्स’ पर आधारित. पार्टीशन में कई परि... Read more
हरसिल का डाकखाना
उत्तराखंड के हरसिल में 60 के दशक में खुला गया था आखिरी छोर का डाकखाना. यह सीमान्त डाकखाना भारत तिब्बत सीमा पर तैनात सेना और दुर्गम गावों की संचार जरूरतें पूरा करने के लिए खोला गया था. जीर्णो... Read more
गीतकार शैलेन्द्र को याद करने का दिन है आज
30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में जन्मे थे गीतकार शंकर शैलेन्द्र. उनका मूल गांव धुसपुर बिहार के आरा जिले में पड़ता है. उनके पिता केसरीलाल राव रावलपिन्डी के ब्रिटिश मिलिट्री हस्पताल में ठेकेदारी... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
