मर्तोली के बुग्यालों में चौमास में चरने वाले घोड़े और खच्चर गुलामी भूल जाते हैं
जब हम रालम और जोहार के लिए पिथौरागढ़ से निकले तो बरसात अपने चरम पर थी और रोड जगह जगह टूटी हुई थी. नाचनी से आगे हरडिया पर हमारी जीप कीचड़ में धंस गयी जिसे निकालने की कवायत में हमारे जूते बुरी... Read more
महान हिमालय का छोटा लेकिन खतरनाक शिकारी चुथरौल : सुरेन्द्र पवार का फोटो निबंध
यलो थ्रोटेड मार्टिन प्रतिदिन शिकार करने वाले जीवों में से एक है जिसे स्थानीय भाषा में चुथरौल भी कहा जाता है. यह जीव 16 साल तक जिन्दा रहता है. पीले और भूरे रंग के इस जीव का भार 1.6 से 5.7 किल... Read more
नहर देवी में एक छोटे से बाड़े में पैतीस चालीस लोगों के बीच दब कर जैसे-तैसे रात बिताने के बाद अगले दिन भी मौसम ने कोई राहत नहीं दी. कुछ लोग जो नीचे को जाने वाले थे वह बोगड्यार के लिए निकल गए... Read more
छिपलाकेदार: फूलों की घाटी और ब्रह्म कमल के मैदान
नेपाल व तिब्बत से सटे सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ की मुनस्यारी व धारचूला तहसील के बीच स्थित है छिपलाकेदार. हिमाच्छादित चोटियों को पृष्ठभूमि में लिए 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित यह नैसर्गिक बुग्य... Read more
हिमालय की सुन्दरतम चिड़ियों में एक है सेटर ट्रेगोपन : सुरेन्द्र पवार का फोटो निबंध
कुमाऊँ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों के आसपास के जंगलों में देर शाम और सुबह एक बच्चे के रोने की आवाज आती है जिसे सुनकर लगता है कि या तो वह आदमी का बच्चा है या बिल्ली का. आज भी गाँव वाले कहते हैं... Read more
Popular Posts
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत
- वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
- ऐपण बनाकर लोक संस्कृति को जीवित किया
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’