पहाड़ के गांवों में श्यूं-बाघ के किस्से
श्यूं-बाघ? द ऽ, श्यूं-बाघों के तो किस्से ही किस्से ठैरे मेरे गांव में. मुझे जैंतुवा ने कई बार रात में जंगल से आती ‘छां’ फाड़ने की गज्यांठि की जैसी घुर्र, घुर्र, घुर्र की आवाज सुना कर बताया,... Read more
फिर कि भौ उर्फ उत्तरकथा
“पूरी कथा सुना दी हो देबी तुमने तो.” “पूरी कथा? अभी कहां पूरी हुई?” “क्यों रिटायरमेंट तो हो गया?” “रिटायमेंट हो गया तो क्या हुआ? वह तो नौकरी से रिटायरमेंट हुआ, जिंदगी की कथा तो चल ही रही ठैर... Read more
मुक्त आकाश का पंछी
कहो देबी, कथा कहो – 46 पिछली कड़ी – कुमारस्वामी और काम के वे दिन वह दिन था 2 जून 2003, जब मैंने दिल्ली अंचल में नौकरी की नई पारी शुरू की. बैठने के लिए तीसरी मंजिल पर एक अलग केबिन मिल गया. पहल... Read more
कुमारस्वामी और काम के वे दिन
कहो देबी, कथा कहो – 45 पिछली कड़ी – कहां थे मेरे उजले दिन “हां, तो कहो देबी. फिर क्या हुआ? तुम किसी नाटक की बात कर रहे थे?” “हां तो सुनो, मैं नाटक की बात करने आला अफसर हरवंत सिंह जी के... Read more
कहां थे मेरे उजले दिन
कहो देबी, कथा कहो – 44 पिछली कड़ी – तोर मोनेर कथा एकला बोलो रे सांझ ढल गई थी और अंधेरा घिरने के साथ-साथ ट्रेन से दिखाई देते गांवों और नगरों में बिजली की बत्तियां जगमगाने लगीं. शताब्दी ट... Read more
तोर मोनेर कथा एकला बोलो रे
कहो देबी, कथा कहो – 43 पिछली कड़ी – और भी थे इम्तिहां वे निराशा के दिन थे. मन खिन्न रहता था. प्रमोशन के इंटरव्यू में सैलेक्शन क्या नहीं हुआ कि आसपास की फ़िजा ही बदलने लगीं. कल तक के कई स... Read more
और भी थे इम्तिहां
कहो देबी, कथा कहो – 42 पिछली कड़ी- समय के थपेड़े ज़िंदगी जम कर इम्तिहां ले रही थी और हम थे कि दमखम से इम्तिहां देते चले जा रहे थे. शायद सरदार अंजुम के शब्दों में भीतर कहीं मन में हम भी सोचते थे... Read more
समय के थपेड़े
कहो देबी, कथा कहो – 41 पिछली कड़ी- कहो देबी, कथा कहो – 40 कई बार सोचता था कि समय आखिर कितनी परीक्षा लेगा? लखनऊ में ही तनाव से इतना तंग आ चुका था कि इस्तीफा लिख कर सदा जेब में रखता था, यह सोच... Read more
देबी के बाज्यू की चिट्ठियां
कहो देबी, कथा कहो – 40 पिछली कड़ी- कहो देबी, कथा कहो – 39 वह दौर और वे दिन! कितना कुछ याद आता है. गांव से आने वाली बाज्यू की वे चिट्ठियां जो बड़े-बड़े अक्षरों में वे अपने हाथ से लिख कर भेजते थे... Read more
दिल्ली फिर एक बार
कहो देबी, कथा कहो – 39 पिछली कड़ी- कहो देबी, कथा कहो – 38 तो, परिवार को साल भर के लिए लखनऊ में अकेला छोड़ कर मैं दिल्ली आ गया. समय के साथ कितनी बदल गई थी दिल्ली! पहली बार सन् 1958 में उसे तब द... Read more
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