भारत की पहली लड़ाका कौम : काली-कुमाऊँ के ‘पैका’ और उड़ीसा के ‘पाइका’ योद्धा
काली-कुमाऊँ के ‘पैका’ और उड़ीसा के ‘पाइका’ योद्धा: भारत की पहली लड़ाका कौम, जो कभी हिमालय से ओड़िसा तक फैली थी -लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही’ हिमालय की गोद में बसे कुमाऊँ की पुरानी राजधान... Read more
गुमदेश के मेरे पुरखों के किस्से
गुमदेश के मेरे पुरखों के किस्से –बटरोही मेरा जन्म अल्मोड़ा जिले की मल्ला सालम पट्टी के छानागाँव में हुआ था. पुरखे बताते थे कि कई पीढ़ी पहले वे लोग भारत-नेपाल की सीमा पर बहने वाली काली... Read more
मोत्दा-च्चा-बड़बाज्यू की दैहिक कहानी का अंत
फरहत का परिवार हमारे पड़ोस में रहता था. चूल्हे-चौके की तमाम गोपनीयता के बावजूद दोनों परिवार लगभग एक ही छत के नीचे थे. ब्रिटिश प्रशासकों ने तालाब के किनारे के बाज़ार बनाए ही उन भारतीयों के लिए... Read more
मोत्दा-च्चा-बड़बाज्यू की दास्तान
यह विचित्र किस्म का नाम एक ही व्यक्ति का है, जिसमें एक साथ तीन रिश्तों के संबोधन पिरोए गए हैं. दो संबंध तो स्पष्ट हैं, बड़ा भाई और चाचा, मगर तीसरा शब्द ‘बड़बाज्यू’ कुमाऊनी का है, जिसका अर्थ है... Read more
अंग्रेज़ों के द्वारा बसाए गए नैनीताल जैसे पहाड़ी शहरों की चर्चा बिना बंपुलिस के संभव ही नहीं है. बचपन में हमें हैरानी होती थी कि जंगल के बीचों-बीच पत्थर की दीवारों और टीन की छतों वाले, बाहर से... Read more
कब बन जाते हैं आदमी के दो चेहरे
इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार – पंद्रहवीं क़िस्त क्या आपने इलाचंद्र जोशी के ‘प्लेंचेट’ और परामनोविज्ञान का नाम सुना है? 1965-66 के दौरान ‘धर्मयुग’ में संपादक धर्मवीर भारती ने परा-मन... Read more
असंख्य पाठ्यपुस्तकों के बीच अदृश्य हिंदी पाठक अगर आप देश-विदेशों में हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर जायेंगे तो जरूर चकरा जायेंगे. बीते कुछ सालों से हिंदी पढ़ने का फैशन कम होता जा... Read more
“मैं तो अनाथ हो गया!” – रोते हुआ लक्ष्मण सिंह बिष्ट ने कहा. लक्ष्मण सिंह पिछले 30-35 सालों तक डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट जी की विभिन्न यात्राओं में उनके सबसे भरोसेमन्द सहयोगी व स... Read more
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