लोक कथा : श्राद्ध की बिल्ली
किसी जमाने की बात है. एक गांव में सास-बहू रहा करते थे. जैसा की पहाड़ों के हर घर में होता है कि लोग पालतू जानवर रखा करते हैं. सास-बहू ने भी एक बिल्ली पाल रखी थी. वह बिल्ली हमेशा कभी सास तो कभ... Read more
लार से भस्म कर देने वाला राक्षस: कुमाऊनी लोककथा
पहाड़ से निकलने वाली नदी किनारे एक सुंदर सी बसावट हुआ करती थी. नदी वार और पार गांव वाले ही खेती करते और जहां से नदी निकलती उस पहाड़ के घने बियावन से लकड़ी ले आया करते. घुप्प अंधेरे वाले जंगल... Read more
नास्तिक : कुमाऊनी लोककथा
एक व्यक्ति ने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे. (kumaoni folklore Ivan Minayev) पहला सवाल था — आप ऐसा क्यों कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है. मुझे तो वह दिखाई नहीं देता है. मुझे दिखाओ कि प... Read more
क़ीमती सलाह : कुमाऊनी लोककथा
एक अमीर आदमी के दो बेटे थे, जब वे बड़े हुए तब उसने दोनों को अपना व्यापार शुरू करने के लिये चार हज़ार रुपए दिए. बड़ा बेटा व्यापार करने चल दिया लेकिन छोटे बेटे ने उन रुपयों से एक जानेमाने फ़क़... Read more
हिट तुमड़ि बाटे-बाट, मैं कि जानूं बुढ़िया काथ : कुमाऊं की एक लोकप्रिय लोककथा
किसी गांव में एक बुढ़िया थी. बूढी और निर्बल बुढ़िया एक अकेले घर में रहती थी. एक साल जाड़ों के दिनों बुढ़िया को लगा कि शायद वह इस साल मर जायेगी. मृत्यु के भय से उसने सोचा कि क्यों न अपनी बेटी के... Read more
भीमसिंह, नरसिंह और हरसिंह की कथा
1875 ईस्वी में एक रूसी भारतविद इवान पाव्लोविच मिनायेव अल्मोड़ा आया जहाँ वह तीन महीने रहा. इन तीन महीनों में उसने कुमाऊनी भाषा सीखी और स्थानीय लोगों से यहाँ की लोक कथाएं और दन्त-कथाएं सुनी. 1... Read more
Popular Posts
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत
- वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
- ऐपण बनाकर लोक संस्कृति को जीवित किया
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’