उत्तराखण्ड की अनूठी विवाह परम्पराएँ
बहुप्रचलित पूर्णतः वैदिक अनुष्ठान, संस्कार तथा स्थानीय रीति-रिवाज के साथ किये जाने वाले अंचल विवाह परम्परा के अलावा भी उत्तराखण्ड की विशेष विवाह परम्पराएँ हुआ करती थीं. इस तरह के विवाह विशेष... Read more
चुड़कानी, कढ़ाही और बारिश
जब कभी कोई डॉक्टर मेरे खून की जांच करता है,तो उसमें निर्बाध प्रवाह, कुछ भांग, जखिया, गंद्रायणी जैसी खुशबू पाता है, हालांकि खून में लौह तत्व की खुशबू ज्यादा होती है, पर अपन का तो ऐसे ही है. ब... Read more
जाड़ों में पहाड़ों की रसोई में एक स्पेशल परोसे जाने का रिवाज है. इस थाली में बड़ी, भांग की चटनी, ठठ्वाणी, भांग के नमक में सनी मूली शामिल है. आज आपको बताते हैं इस थाली के सबसे महत्वपूर्ण हिस्... Read more
विकराल भूत भी डरते हैं सिसौणे की सब्जी से
सिसौण कहो या कंडाली- ये सब्जी हिम्मत वाली इस बार के पहाड़ी जायके को पढ़ने से पहले अपने अंदर हिम्मत जुटा लीजिए, क्योंकि यह सब्जी नाम से लेकर काम तक हिम्मत वाली ही है. पहले तो हिंदी में इसका न... Read more
बड़े-बड़े गुण वाला बड़ी का साग
हिमाचल वाला किस्सा यहां भी दोहराया गया. फर्क सिर्फ ये है कि शिमला में शर्मा जी थे और यहां हल्द्वानी में वर्मा जी. आउटगोइंग गर्मी, इनकमिंग बरसात के दिनों में एक दिन शर्मा जी रात को शिमला के प... Read more
कुमाऊं में पारम्परिक विवाह प्रथा
पुरातन काल से ही भारतीय हिन्दू समाज में विवाह को जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है. विवाह स्त्री – पुरुष का मिलन मात्र नहीं अपितु एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जहां से मानव वंश को आगे ब... Read more
सैणी हो या मैंस, सबकी पसंद चैंस
चैंस कह लो, चैंसा या फिर चैंसू. नाम अलग-अलग अंचलों में कुछ फर्क के साथ अलग हों, लेकिन इसका स्वाद अस्कोट से बड़कोट तक पूरे उत्तराखंड में एक जैसा मिलेगा. थोड़ा उड़द की दाल का लसलसापन, कुछ इसको... Read more
भांग की चटनी – चटोरे पहाड़ियों की सबसे बड़ी कमजोरी
चंदू की चाची को चांदनीखाल में चटनी चटाई जूनियर कक्षाओं में बाल मंडली ने अनुप्रास अलंकार का एक घरेलू उदाहरण ईजाद किया-था “ चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदनी चौक में चांदी की चम... Read more
अद्वितीय होता है कुमाऊं-गढ़वाल का झोई भात
वो कढ़ती है, ये झोलती है: पहाड़ की झोली 15 साल की उम्र में पहली बार जब गांव में एक महीने से अधिक रहने का सुयोग प्राप्त हुआ तो बोडी ( ताई के लिए गढ़वाली संबोधन) दोपहर के भोजन में रोज झोली यानी... Read more
पहाड़ी मूले का थेचुवा खाइए जनाब, पेटसफा चूरन नहीं
कल सुबह सब्जी लेने मंडी में पहुंचा तो देखा कि पहाड़ी मूला/ मूली बाजार में आ चुका है. अभी बाजार में नया-नया है तो दाम के मामले में खूब इतरा-इठला रहा है. दुकानदार एक रुपया भी कम करने को त... Read more
Popular Posts
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता