पितृपक्ष: वीरेन डंगवाल की कविता
पितृपक्ष -वीरेन डंगवालमैं आके नहीं बैठूंगा कौवा बनकर तुम्हारे छज्जे परपूड़ी और मीठे कद्दू की सब्ज़ी के लालच मेंटेरूँगा नहीं तुम्हेंन कुत्ता बनकर आऊँगा तुम्हारे द्वाररास्ते की ठिठकी हुई गायक... Read more
प्यार करते हैं नवीन सागर लालच और नफरत की ऑंधी हैफोटू में गॉंधी हैऔर बाजार ही बाजार है. ऐसे में वह दिन आता हैजब युद्ध जरूरी हो जाता हैनजरें बचाते हुएकहते हैं युद्ध अब जरूरी है. वह दिन आता हैज... Read more
पहली बार उनका नाम प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन से सुना था कि बाबा साहेब आंबेडकर की पत्रकारिता पर उनके रिसर्च के गाइड वीरेन डंगवाल थे. फिर जीवन में वीरेन दा लगातार आते चले गए. उनकी कविताएँ आईं... Read more
हर कवि की एक मूल संवेदना होती है जिसके इर्द-गिर्द उसके तमाम अनुभव सक्रिय रहते हैं. इस तरह देखें तो वीरेन के काव्य व्यक्तित्व की बुनियादी भावना प्रेम है. ऐसा प्रेम किसी भी अमानुषिकता और अन्या... Read more
बिटिया कैसे साध लेती है इन आँसुओं को तू
कहने को तो वीरेन डंगवाल हिंदी के एम.ए.पीएच.डी और लोकप्रिय, बढ़िया प्राध्यापक थे, एक बड़े दैनिक के सम्पादक भी रहे, लेकिन इस सब से जो एक चश्मुट छद्म-गंभीर छवि उभरती है उससे वह अपने जीवन और कृत... Read more
अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा
अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर खड़ा होना मैंने सीख लिया है. घबराओ मत मैं क्ष... Read more
पूरा अपना ही है देहरादून : राजेश सकलानी की कविता
देहरादून निवासी युवा कवि राजेश सकलानी के पिछले कविता संग्रह पुश्तों का बयान का में कवि और उसकी कविता के बारे में हिन्दी के वरिष्ठ कवि और टिप्पणीकार असद ज़ैदी का कहना है: राजेश सकलानी की कविता... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
