बूढ़ी सास और उसकी बहू की कथा
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ो में घने जंगलों के बीच एक पहाड़ी गांव था. ठेठ गांव के बीच में घर होना ही था, वैसे ही जैसे पहाड़ियों के घर होते हैं – मिट्टी पत्थर से चिने पतली पठाली (स्लेट) से ढके तिकोने... Read more
रोपणी के खेत से जीतू को हर ले गयी आंछरियां
इन दिनों पहाड़ के गांवों के खेतों में रोपाई अर्थात रोपणी की जा रही है. अषाढ़ के महीने की छः गते की रोपणी को लेकर आज भी पहाड़ के लोक में माना जाता है कि इस दिन रोपणी के सेरे (रोपाई के खेत) मे... Read more
खड़ महराज और शिवजी की कथा
गीता गैरोला लेकर आई हैं एक और गढ़वाली लोक कथा. लम्बी अनुपस्थिति फागुन बीत गया. सूरज की गर्मी ने अपनी तपस को बढ़ा दिया. जाड़ों के ठंडक की सीलन भाप बनकर आसमान की तरफ दौड़ लगाने लगी. सारी प्रकृति ख... Read more
काफल पाक्यो, मील नी चाख्यो
इन दिनों जब घाम थोड़ा सा गुनगुना हो जाता है. बर्फ पहाड़ों से उतर कर गधेरों में भर जाती है. पहाड़ों की ठंडी नम जमीनें नन्हे-नन्हे कोंपलों से हरिया जाती है. चमकीली हरी मुलायम पत्तियों के बीच में... Read more
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