अद्वितीय होता है कुमाऊं-गढ़वाल का झोई भात
वो कढ़ती है, ये झोलती है: पहाड़ की झोली 15 साल की उम्र में पहली बार जब गांव में एक महीने से अधिक रहने का सुयोग प्राप्त हुआ तो बोडी ( ताई के लिए गढ़वाली संबोधन) दोपहर के भोजन में रोज झोली यानी... Read more
पहाड़ी मूले का थेचुवा खाइए जनाब, पेटसफा चूरन नहीं
कल सुबह सब्जी लेने मंडी में पहुंचा तो देखा कि पहाड़ी मूला/ मूली बाजार में आ चुका है. अभी बाजार में नया-नया है तो दाम के मामले में खूब इतरा-इठला रहा है. दुकानदार एक रुपया भी कम करने को त... Read more
तराई-भाबर की लीची न खाई तो क्या खाया
लीची आ गई हैं. बाग-बगीचों में, वहां से तोड़कर बाजारों में और मेरे घर पर भी. लीची मेरा प्रिय फल रहा है. इतना प्रिय कि पहले एक बैठकी में पांच किलो तक उदरस्थ कर लेता था और अब भी कम से कम दो किल... Read more
पहाड़ के जायके – 1 पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद वर्ष 1990-91 में पत्रकारिता की सांस्थानिक नौकरी में चला गया. पहले जिला चमोली के मुख्यालय गोपेश्वर और उसके बाद मेरठ. अखबारों की नौकरी में... Read more
Popular Posts
- उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल
- अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन
- नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम
- रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता
- यम और नचिकेता की कथा
- अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे